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विकास और सिद्धांत नहीं, फ्री की रेवड़ी और हिंदुत्व की बिसात हैं पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन सभी राज्यों में अभी से चुनावी माहौल बनाए जा रहे हैं, लेकिन ट्रेडिशनल राजनीति यानि सिद्धांत और वैचारिक राजनीति से इतर हर राज्य में फ्रीबीज का डंका राजनैतिक दलों की तरफ से बजाया जा रहा है। इसके अलावा इन सभी राज्यों में, उनकी […]

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन सभी राज्यों में अभी से चुनावी माहौल बनाए जा रहे हैं, लेकिन ट्रेडिशनल राजनीति यानि सिद्धांत और वैचारिक राजनीति से इतर हर राज्य में फ्रीबीज का डंका राजनैतिक दलों की तरफ से बजाया जा रहा है। इसके अलावा इन सभी राज्यों में, उनकी आबादी के मुताबिक धार्मिक डंका बजाया जा रहा है। यानि बीजेपी, कांग्रेस सभी पार्टियां विकास के एजेंडे पर नहीं, बल्कि फ्रीबीज पर धर्म की तड़का लगा रहे हैं। खास बात ये है देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने एक नहीं, कई मौके पर फ्री की रेवड़ी को देश और राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बता चुके हैं। ये अलग बात है कि केंद्र अभी सबसे अधिक फ्री को योजना चला रहा है और उसे जनकल्याणकारी योजनाओं का नाम दिया जा रहा है। वैसी बीजेपी भी फ्री की योजना के जरिये ही मध्यप्रदेश में सत्ता में वापसी चाह रही है। ऐसा लगता है अब चुनावी राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा वैचारिक नही बल्कि फ्री की रेवड़ी और हिंदुत्व का एजेंडा बन गया है। खासकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सरकारों ने फ्री की रेवड़ी के लिए अपना खजाना खोल दिया है। वही इन राज्यों के विपक्ष की मुश्किल बढ़ गई है, वो विपक्ष में हैं लिहाजा राज्य के खजाने पर उनका शिकार नहीं है, इसलिए वो भी सत्ता में आने के बाद चांद- सितारे लाकर जनता को देने का वादा कर रहे हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में कौन कितना बांट सकता है या सत्ता में आने पर कितना बांटने का वादा कर सकता है, यही चुनाव का मुख्य एजेंडा है। चुनाव से जुड़ी बाकी मुद्दे और काम पार्टियों के लिए अधिक मायने नहीं रख रही हैं। दिल्ली, पंजाब, हिमाचल और कर्नाटक में फ्री की रेवड़ी के वादों ने जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। लिहाजा तमाम राजनीतिक दल फ्री के वादों की बौछार मंच से करते सुने जा रहे है। राज्यों के विकास का एजेंडा अब फ्री की पॉलिटिक्स में पीछे छूट गया है।

तेलंगाना में धर्म और फ्री की राजनीति

सबसे पहले दक्षिण के राज्य तेलंगाना की जिक्र कर लेते हैं। जहा बीआरएस के चंद्रशेखर राव की सरकार है। बीजेपी और कांग्रेस वहां अभी तक दुसरे और तीसरे नंबर के पार्टी की भूमिका की लड़ाई लड़ रहे हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने पिछले साल अपने राज्य के एतिहासिक लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। जिस पर करीब 18 सौ करोड़ रुपए खर्च हुए। किए। इसके उद्घाटन के मौके पर हजारों पुजारियों ने अनुष्ठान किया । चंद्रशेखर राव व्यक्तिगत तौर पर भी मंदिरों में दान के लिए जाने जाते है। अब बीजेपी ,कांग्रेस और बीआरएस के नेताओ में धर्म की राजनीति में एक दूसरे को पछाड़ देने की राजनीति तेज हो गई है। बीजेपी गाहे बगाहे राज्य में योगी आदित्यनाथ जैसे अपने फायर ब्रांड नेता को भेज कर राज्य में धर्म की राजनीति पर परवान चढ़ने के लिए भेजते रहती है। इधर कांग्रेस भी कर्नाटक में जीत के बाद राज्य में काफी सक्रिय हो गई है वो अपने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कार्यक्रमों के जरिए राज्य में दलित कार्ड खेलने का प्रयास कर रही है। वही अमित शाह भी अक्सर राज्य का दौरा कर वहा चंद्रशेखर राव की सरकार पर तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते रहते हैं। यानी राज्य की राजनीति में तमाम दल धर्म और जाति दोनो का तड़का लगाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी बीच राव ने अलग दाव खेल दिया ,केसीआर ने स्वतंत्रता दिवस पर किसानों के कर्ज माफी का एलान कर दिया और लगे हाथ उनके आदेश पर 9 लाख 2 हजार 843 किसानों का 5809.78 करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया गया ,सरकारी खजाने से ये पैसे किसानों के खाते में भेज दिए गए जो कर्ज माफी के तहत बैंकों तक पहुंच गए।

छत्तीसगढ़ में हिंदुत्व और किसान कार्ड

हिंदुत्व और जनकल्याणकारी योजनाओं में छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं है। कांग्रेस ने एलान किया कि गाय और राम कांग्रेस के थे। जिसे बीजेपी ने भुनाया है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बघेल ने गोधन इम्पोरियम बनवाया है। भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ को भगवान श्रीराम के ननिहाल के रूप में स्थापित कर रहे हैं। वो राम वन गमन पर्यटन सर्किट भी बनवा रहे हैं, राज्य में नौ प्रमुख स्थानों पर 50 फीट की भगवान श्रीराम की प्रतिमा लगाई गई है,रायपुर से 25 किलोमीटर दूर चंदखुरी में माता कौशल्या के प्राचीन मंदिर को भव्य रुप दिया गया है। कांग्रेस ने यह भी प्रचारित कर रही है कि अपने पूर्व की 15 साल की सरकार के भाजपा ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की। इस चुनाव में कांग्रेस भागवान श्रीराम के सहारे नजर आ रही है।

इससे बीजेपी को कांग्रेस को काउंटर करने में दिक्कत हो रही है। इतना ही नही बघेल की जनकल्याणकारी योजनाएं भी जमीन तक उतरी है और इससे कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिखती हैं। धान का मुद्दा और किसान प्रदेश में बड़ा वोट है। कांग्रेस सरकार ने न्याय योजना के माध्यम से किसानों और कृषि मजदूरों की जेब में पैसा डाला है। प्रदेश के करीब 40 प्रतिशत वोटर युवा है। सरकार ने एक लाख से ज्यादा बेरोजगारों को भत्ता देने का अभियान चुनावी साल में शुरू किया है। सरकार ने प्रतियोगी परीक्षा की फीस समाप्त की, तो युवाओं के लिए भर्तियों के द्वार भी खोले। इसका परिणाम ये है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों ने आधी विधानसभा सीट पर युवा प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है। बीजेपी प्रदेश में केंद्र सरकार की योजनाओं के दम पर ताल ठोंक रहा है। मध्यप्रदेश में बीजेपी कांग्रेस दोनों को हिंदुत्व और रेवड़ी का सहारा

मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के दावेदार कमलनाथ मंदिरों और बाबाओं के चक्कर काट रहे हैं। कमलनाथ भारत को हिंदू राष्ट्र मानते है। उन्होंने बयान दिया कि भारत में 82 फीसदी आबादी हिंदू है तो देश हिंदू राष्ट्र ही है। बीजेपी नेताओं की तरह वे भी बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री का स्वागत कर रहे हैं और उनके चरणों में बैठ रहे हैं। मध्यप्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के नेता राष्ट्रवाद के नारे को मजबूत कर रहे है। इसके अलावा फ्री की रेवाड़ी के वादों का क्या कहना कांग्रेस लगातार वहां फ्री की गारंटी दे रही है। तो सत्ता में बैठे शिवराज लाड़ली बहना योजना के साथ साथ,सबके दाता राम की तर्ज पर समाज का हर वो कोना तलाशा रहे है, जो किसी भी तरह की रेवड़ी से वंचित तो नहीं रह गया है। प्रदेश में रेवडि़यों की बाढ़ सी आ गई है। देनेवाले अधिक है लेने वालों के संख्या कम लग रही हैं।

राजस्थान में रेवड़ी और जाति दोनों कार्ड

राज्यों में धर्म के साथ-साथ जाति की राजनीति भी तेज है। भाजपा केंद्र से लेकर हर राज्यों में ओबीसी का कार्ड खेल रही है तो वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछड़ी जाति के होने की अपनी पहचान को राजनीतिक हथियार बनाए हुए हैं। कांग्रेस पार्टी को राजस्थान में भ्रष्टाचार और आपसी संघर्ष के मुद्दे पर बीजेपी घेर रही है। वही चुनावी साल में अशोक गहलोत ने तो जनकल्याणकारी योजनाओं की बहार ला दी है। मोबाइल फोन से लेकर गैस सिलेंडर तक दिए जा रहे हैं। सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की दीवार भी कांग्रेस कुछ हद तक बांटने में कामयाब रही है। लिहाजा इसका भी लाभ भाजपा को मिलने में मुश्किल आ रही है। भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राज्य में चार परिवर्तन यात्रा चलाने जा रही है। उसका दावा है कि परिवर्तन यात्रा के जरिए गहलोत की सरकार को उखाड़ फेकेंगे।

चुनावी राज्यों में पिछड़ी जाति का कार्ड भी

देश भर में लगभग 50 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी ओबीसी समुदाय की है। लिहाजा मध्य प्रदेश में बीजेपी के वह चेहरे शिवराज सिंह चौहान है, तो छत्तीसगढ़ के कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी पिछड़ी जाति का होने के आधार पर राजनीति साध रहे हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत की पिछड़ी जाति के होने के नाम पर बीजेपी को टक्कर दे रहे हैं। तेलंगाना का अलग मिजाज है वहां हिंदुत्व और फ्री की रेवड़ी की राजनीति उफान पर है।

सबकी विचारधारा एक ,इसलिए फ्री रेवड़ी का सहारा

सभी राजनैतिक दलों के विचारधारा एक समान हो गई है। सभी राजनैतिक दल हिंदुत्व का मुद्दा उठा रहे हैं। सभी राजनैतिक दल अपने ओबीसी और पिछले नेताओं को आगे बढ़ा रहे हैं। इसका मतलब यह है की विचारधारा के मुद्दे पर सभी राजनैतिक दल एक समान हो गए हैं। जनता के लिए भी कौन बेहतर है से अधिक जरूरी अब कौन फायदेमंद है हो गया है, इसलिए ‘मुफ्त की रेवड़ी’ अब चुनाव का मुख्य संसाधन बन गया है। लिहाजा अब अब इस मामले में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची है।


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