Ramadan and Women Challenges: इस्लाम धर्म में रमजान का महीना बहुत ही पाक महीना कहा जाता है। हर मुसलमान को इस महीने का साल भर इंतजार रहता है। इस पूरे महीने रोजे रखे जाते हैं और खुदा की इबादत की जाती है। रोजे रखना उन 5 फर्जों में से एक हैं, जो इस्लाम के स्तंभ माने जाते हैं।
इस दौरान सारी बुराईयों से बचने और ज्यादा से ज्यादा इबादत करने की सलाह दी जाती है। रमजान में सभी महिलाओं और पुरुषों पर रोजा फर्ज होता है, लेकिन महिलाओं को कुछ दिनों के लिए रोजा न रखने की छूट दी गई है। महिलाएं पीरियड्स के दौरान रोजा नहीं रखती हैं।
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पीरियड्स में महिलाएं
साल में एक बार आने वाले इस रमजान के महीने का हर मुसलमान को इंतजार रहता है। ऐसे में अगर महिलाएं पीरियड्स के दौरान रोजा नहीं रख पाती हैं, तो उनको इसका काफी दुख होता है। सालों से रमजान के दौरान महिलाओं की परेशानियों को लेकर बात होती आ रही है। इस दौरान महिलाएं अपना समय कैसे बिताती हैं? क्या इसके बारे में उनके घर में पता होता है? अगर पता नहीं होता है, तो वह क्या करती हैं? इस तरह के तमाम सवाल उठते आए हैं।
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आपको बता दें कि इस्लाम में महिलाओं को पीरियड्स के दिनों में नमाज पढ़ने और रोजा रखने को लेकर मनाही है। इस दौरान छूटे हुए रोजे वह आगे किसी भी वक्त पूरे कर सकती हैं।
खुलकर बात नहीं कर सकती
रमजान में पीरियड्स को लेकर हमने कुछ महिलाओं से बात की। जिनकी बातें सुनकर लगता है कि इनमे से ज्यादातर के हालात एक जैसे ही हैं। 30 साल की शाजिया (बदला हुआ नाम) का कहना है कि उनको रमजान की शुरुआत से ही पीरिड्स हो रहे हैं। ऐसे में उनके घर पर किसी को नहीं पता कि उन्होंने रोजा रखा है कि नहीं।
इस दौरान वह पूरा दिन घर वालों के सामने रोजेदारों की तरह ही रहीं। शाजिया का कहना है कि कभी हमको इसको बारे में खुलकर बात करना नहीं सिखाया गया। जितना हो सके इस बात को छुपाकर रखा जाता है, यही हम बचपन से देखते आ रहे हैं।
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नमाज पढ़ने के लिए वुजू बनाती हैं
सायमा ने रमजान में पीरियड्स को लेकर एक और दिलचस्प बात बताई। उनका कहना है कि उनके घर में दो भाई और उनके पिता हैं। यानी घर में तीन पुरुष हैं, जो आम दिनों में तो घर से ज्यादातर बाहर ही रहते हैं, लेकिन रमजान में उनका ज्यादातर समय घर में ही गुजरता है। नमाज के वक्त पर अगर उनके पिता को नमाज पढ़ते हुए कोई नहीं दिखता है, तो इसके लिए टोकना उनकी आदत हैं, क्योंकि वह इसको लेकर सख्त हैं।
सायमा का कहना है कि कई बार ऐसा हुआ है कि उनको वुजू बनाकर नमाज पढ़ने की तैयारी करनी पड़ती है, ताकि उनके पीरियड्स का किसी को पता न चले। कुछ महिलाओं को लगता है कि वे अपने परिवार के पुरुषों के सामने अपने पीरियड्स पर खुलकर बात नहीं कर सकती हैं।
कई जगह पर ऐसा भी देखा जाता है कि इन दिनों में महिलाओं को किचन में नहीं जाने दिया जाता है। हालांकि, इस पर उन सभी महिलाओं का कहना था कि उनके साथ ऐसा कुछ नहीं होता है, वह अपने रोजमर्रा के काम करती हैं, किचन में खाना पकाती हैं।
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इस पर अदीबा कहती हैं कि अपनी समस्या न बता पाने के कारण उनको कई नुकसान भी हैं। इस दौरान उनको कितनी भी तकलीफ हो, वह उसमें भी काम करती हैं। उनका कहना है कि रमजान न हो, तो हल्का-फुल्का खाना पका लेते हैं, लेकिन रोजेदारों के लिए पूरी इफ्तार का इंतजाम करना ही पड़ता है।
'इस महीने न हो तो बेहतर'
इन सभी महिलाओं का यही कहना है कि इस महीने में रमजान में पीरियड्स न हो तो बेहतर है। इसके दो कारण हैं, पहला किसी को बता नहीं पाती हैं कि उन्होंने रोजा नहीं रखा है, जिसकी वजह से पूरा दिन रोजेदारों की तरह ही गुजर जाता है। दूसरा कि रमजान एक साल में एक बार आता है, उसमें भी वह 5 दिन रोजे नहीं रख पाती हैं।
इस सब में एक बात का और ध्यान रखना पड़ता है कि अगर घर पर बच्चें हैं, तो उनके सामने भी आप कुछ खा नहीं सकते हैं, क्योंकि उनको लेकर यह डर रहता है कि वह सबके सामने बोल सकते हैं कि इनका रोजा नहीं है। दूसरी तरफ अगर पुरुष का रोजा नहीं है, तो वह घर में आराम से खाना-पीना कर सकता है।
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धीरे-धीरे बदल रही सोच
जिन महिलाओं से बात की है उनमें से कुछ ऐसी भी थीं, जिनके घर में पीरियड्स को लेकर सोच बदली है। उनका कहना है कि उनके माता-पिता के समय पर शायद ऐसा न रहा हो, लेकिन हम अपने भाई और पिता के सामने ये बता देते हैं कि हमारा रोजा नहीं है। उनका कहना है कि इसके लिए ये कहने की क्या जरूरत है कि उनको पीरियड्स हुए हैं।
इस पर राना खान का कहना कि जब उनको पीरियड्स होते हैं, तो वह अपने भाई के साथ बैठकर खाना खा सकती हैं। हालांकि, उनकी बड़ी बहनों के साथ यह नहीं था, लेकिन वक्त के साथ घर वालों की सोच बदलती जा रही है।
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