क्या हारकर भी बाजीगर कहलाएगा विपक्ष INDIA, जानें क्या है अविश्वास प्रस्ताव और लोकसभा में लाने का मकसद?
Pm Narendra Modi
No-Confidence Motion: मणिपुर में जातीय संघर्ष पर चर्चा की बढ़ती मांग के बीच केंद्र की मोदी सरकार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है। हालांकि संख्या बल में NDA की ताकत ज्यादा है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि अगर विपक्ष के पास संख्या नहीं है तो अविश्वास प्रस्ताव लोने का मकसद क्या है? क्या NDA को चिंता करने की जरूरत है?
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने विपक्षी गठबंधन INDIA की तरफ से केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसे 26 जुलाई को लोकसभा स्पीकर ने स्वीकार किया था। विपक्ष ने मणिपुर हिंसा के बीच सदन में जारी गतिरोध के बीच अविश्वास प्रस्ताव का मुद्दा उठाया है। मणिपुर में 150 से अधिक लोग मारे गए हैं। 55 हजार लोग शरणार्थी कैंपों में रहने को मजबूर हैं। मंगलवार और बुधवार को लोकसभा में चर्चा होनी है। पीएम मोदी 10 अगस्त गुरुवार को लोकसभा में जवाब दे सकते हैं।
क्या है अविश्वास प्रस्ताव?
किसी भी सरकार को चलने के लिए संसदीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अनुपालन करना होता है। कोई सरकार तभी काम कर सकती है, जब उसका लोकसभा में बहुमत हो। अविश्वास प्रस्ताव का इस्तेमाल हमेशा विपक्ष करता है। उसे लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है तो कोई भी सदस्य लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है। यह केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है। राज्यसभा में नहीं।
लोकसभा के प्रक्रिया एवं आचरण नियम के तहत सदस्य को सुबह 10 बजे से पहले प्रस्ताव की लिखित सूचना देनी होती है, जिसे सदन में स्पीकर द्वारा पढ़ा जाता है।
कम से कम 50 सदस्यों को प्रस्ताव का समर्थन करना होगा और स्पीकर प्रस्ताव पर चर्चा की तारीख की घोषणा करेगा। आवंटित तिथि प्रस्ताव स्वीकार होने के दिन से 10 दिनों के भीतर होनी चाहिए। यदि नहीं तो प्रस्ताव विफल हो जाता है और प्रस्ताव पेश करने वाले सदस्य को इसके बारे में सूचित करना पड़ता है।
यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो सत्ता में मौजूद पार्टी को सदन में अपना बहुमत साबित करना होगा। यदि सरकार ऐसा करने में विफल रहती है तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है।
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क्या मोदी सरकार के पास संख्या है?
बिलकुल है। लोकसभा में 543 सदस्य हैं। बहुमत का आंकड़ा 272 का है। अकेले भाजपा के पास 303 सदस्य हैं। जबकि बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के पास 331 सदस्य हैं। वहीं, विपक्षी INDIA गठबंधन में 144 सदस्य हैं। इसके अलावा के चंद्रशेखर राव की बीआरएस, वाईएस जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) और नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (बीजेडी) की संयुक्त ताकत 70 है। केंद्र सरकार को YSRCP के 22 और BJD के 12 सांसदों का समर्थन मिला है।
विपक्ष का मकसद क्या है?
जब विपक्ष के पास नंबर नहीं है तो इस अविश्वास प्रस्ताव का मतलब क्या है? ये मौजूं सवाल है। दरअसल, अविश्वास प्रस्ताव का उपयोग सत्तारूढ़ सरकार पर सवाल उठाने, उसकी विफलताओं को उजागर करने और सदन में उन पर बहस करने के लिए एक रणनीतिक टूल के रूप में किया गया है।
सियासी जानकार कहते हैं कि विपक्ष भले न जीते, लेकिन वह आगामी चुनावों में मोदी सरकार पर हमलावर होने में एक टूल की तरह इस अविश्वास प्रस्ताव को इस्तेमाल करेगा। वह बार-बार इस बात को दोहराएगा कि डबल इंजन की सरकार फेल है।
विपक्ष को मालूम है कि उसका अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा। ऐसे में वह पीएम मोदी को मणिपुर के मुद्दे पर संसद में बोलने के लिए मजबूर करना चाहता है। यही वजह है कि अविश्वास प्रस्ताव पेश करने वाले कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा था कि मणिपुर के भाइयों और बहनों को यह संदेश जाना चाहिए कि पीएम मोदी भले ही मणिपुर को भूल गए हों, लेकिन दुख की इस घड़ी में INDIA गठबंधन उनके साथ खड़ा है और हम संसद के अंदर उनके अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
क्या मोदी सरकार पहले भी अविश्वास मत से घिरी?
हां। 2014 के बाद ये दूसरी मर्तबा है, जब मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। आखिरी अविश्वास प्रस्ताव का सामना एनडीए सरकार को 2018 में करना पड़ा था। तब आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी। प्रस्ताव 199 वोटों से हार गया था। दावा किया गया था कि केंद्र आंध्र प्रदेश को पर्याप्त धन मुहैया कराने में विफल रहा है। 126 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, वहीं 325 सांसदों ने इसे खारिज कर दिया था।
लोकसभा में 12 घंटे तक जोरदार बहस हुई थी। भाषण के बाद राहुल गांधी पीएम के पास गए और उन्हें गले लगा लिया था। इसके बाद वह अपनी सीट पर लौट आए और अपने कांग्रेस सहयोगियों को आंख मारी थी।
प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को दो अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा था। 17 अप्रैल 1999 को जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद उनकी सरकार एक वोट से पहली बार हार गई थी। हालांकि, वे भाजपा को सत्ता में वापस लाए और 2003 में अपनी सरकार के खिलाफ दूसरा अविश्वास प्रस्ताव जीता।
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