केरल निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पहली बार तिरुवनंतपुरम नगर निगम चुनाव में 45 साल से वामपंथी शासन को समाप्त कर शानदार जीत दर्ज की. इस जीत की हीरो कोई और नहीं बल्कि केरल की पहली महिला पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रहीं श्रीलेखा रहीं, जिन्होंने तिरुवनंतपुरम नगर निगम चुनाव में BJP उम्मीदवार के तौर पर विजय हासिल कर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. अब हर तरफ एक ही चर्चा हो रही है कि आखिर श्रीलेखा कौन हैं, जिन्होंने निकाय चुनाव में ढहाया लेफ्ट का गढ़.
त्रिवेंद्रम कॉरपोरेशन पर दावा
तिरुवनंतपुरम की राजनीति में शनिवार को एक नया अध्याय जुड़ गया. रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर और बीजेपी उम्मीदवार आर श्रीलेखा ने सश्तमंगलम वार्ड से स्थानीय निकाय चुनाव में 700 वोटों के अंतर से शानदार जीत दर्ज की. यह जीत सिर्फ एक सीट की नहीं, बल्कि उस राजनीतिक इतिहास की है जिसमें बीजेपी पहली बार त्रिवेंद्रम कॉरपोरेशन पर दावा ठोंकती नजर आ रही है.
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कौन हैं आर श्रीलेखा ?
1987 बैच की आईपीएस अधिकारी रहीं आर. श्रीलेखा ने 2020 में पुलिस सेवा से सेवानिवृत्ति ली थी. उनकी जीत के साथ ही अब यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि अगर बीजेपी गठबंधन (एनडीए) को बहुमत मिलेगा, तो उन्हें त्रिवेंद्रम की पहली बीजेपी मेयर बनने का मौका मिल सकता है. यह एक ऐसी यात्रा होगी जहां यूनिफॉर्म से निकलकर वह राजधानी की ‘फर्स्ट सिटिजन’ का पद संभालेंगी.
कितनी पढ़ी-लिखी हैं आर श्रीलेखा?
आर श्रीलेखा का जन्म 25 दिसंबर 1960 को तिरुवनंतपुरम में प्रोफेसर एन. वेलायुधन नायर और बी. राधम्मा के घर हुआ था. उन्होंने कॉटन हिल गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल से पढ़ाई की और फिर विमेन्स कॉलेज और यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट से इंग्लिश लिटरेचर में स्नातक और परास्नातक की डिग्री हासिल की. कॉलेज के दिनों में उन्हें अध्यापन में रुचि थी, जिसके चलते उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर लेक्चरर की.
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रिजर्व बैंक में भी किया काम
बाद में उन्होंने रिजर्व बैंक में भी काम किया, जहां वेतन और सुविधाएं बेहतर थीं. लेकिन उनके भीतर की सेवा भावना ने उन्हें एक नया रास्ता दिखाया. जनवरी 1987 में उन्होंने पुलिस सेवा जॉइन की और केरल कैडर की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनीं. अपने शुरुआती वर्षों में उन्होंने कई कठिन चुनौतियों का सामना किया. एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया था कि पहले दस साल उन्हें सिस्टम और मानसिकता से दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ी क्योंकि उस वक्त पुलिस सेवा में महिलाओं के लिए माहौल बहुत अनुकूल नहीं था.