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क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव? संसद में कैसे होता है पेश, किसे पद से हटाने के लिए है यह प्रक्रिया?

विपक्ष ने मंगलवार को लोकसभा में मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नोटिस पेश किया. महाभियोग प्रस्ताव के बारे में पूरी जानकारी के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट.

What Is An Impeachment Motion: इंडिया गठबंधन के 100 से ज्यादा सांसदों ने मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ मंगलवार को महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा स्पीकर को नोटिस दिया. तमिलनाडु में कार्तिगई दीपम विवाद को लेकर विपक्ष में नाराजगी है. आइए पहले समझते हैं कि महाभियोग प्रस्ताव क्या होता है?

महाभियोग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है. ये प्रस्ताव संविधान के उल्लंघन, दुर्व्यवहार साबित होने पर लाया जा सकता है. संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में इसका जिक्र है. महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में पेश किया जा सकता है. लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव को पेश करने के लिए करीब 100 सांसदों के हस्ताक्षर और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं.

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यह भी पढ़ें: क्या है कार्तिगई दीपम विवाद? जिसे लेकर जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ विपक्ष ने पेश किया महाभियोग प्रस्ताव

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अगर लोकसभा या राज्यसभा के अध्यक्ष इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं तो तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई जाती है जो आरोपों की जांच करती है. तीन सदस्यों की समिति में सुप्रीम कोर्ट के जज, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और एक अध्यक्ष द्वारा चुने गए व्यक्ति को शामिल किया जाता है.

महाभियोग प्रस्ताव अगर दोनों सदनों में पेश किया जाता है तो दोनों स्पीकर मिलकर एक संयुक्त जांच कमेटी का गठन करते हैं. पूरी तफ्तीश के बाद समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को सौंप देती है जिसे बाद में सदन में पेश किया जाता है. अगर जांच में पदाधिकारी दोषी पाया जाता है तो सदन में वोटिंग करवाई जाती है.

प्रस्ताव पास करने के लिए वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो तिहाई का समर्थन मिलना जरूरी है. अगर दोनों सदनों में प्रस्ताव पास हो जाता है तो फाइनल मुहर लगाने के लिए उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, क्योंकि जज को पद से हटाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के हाथ में है. हालांकि भारत में अभी तक किसी जज को महाभियोग प्रस्ताव के जरिए नहीं हटाया गया है क्योंकि अभी तक किसी भी महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई.

कब-कब लाया गया महाभियोग प्रस्ताव?

वी. रामास्वामी महाभियोग का सामना करने वाले पहले जज हैं. उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन सत्ता में मौजूद कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत ना मिलने की वजह से वो रद्द हो गया. कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे जज थे, जिन्हें 2011 में दुर्व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा. ये भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला है जो राज्य सभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा. हालांकि लोकसभा में वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफा दे दिया.

साल 2011 में सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी हुई लेकिन उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया. 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जे बी पार्दीवाला ने जाति से जुड़ी कोई टिप्पणी की थी, जिसके बाद महाभियोग लाने की प्रक्रिया शुरू होने वाली थी लेकिन उन्होंने पहले ही अपना बयान वापस ले लिया. इसी साल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाने वाला था, लेकिन उनकी किस्मत अच्छी रही कि उनपर लगे आरोप साबित नहीं हो सके. तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ 2016 और 2017 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।


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