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किसने किए थे वंदे मातरम् के टुकड़े, सिर्फ 2 लाइनें ही क्यों गाई जाती हैं, क्या थी राष्ट्रगान नहीं बनने की वजह?

Vande Mataram Controversy: वंदे मातरम् पर संसद के शीतकालीन सत्र में 8 दिसंबर को चर्चा होगी, लेकिन कुछ अन्य वजहों से भी वंदे मातरम् गीत सुर्खियों में छाया हुआ है. 1937 में वंदे मातरम् पर हुआ विवाद भी आज तक गरम है, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी भी बयान दे चुके हैं, लेकिन 1937 में वंदे मातरम् पर विवाद क्यों हुआ था और क्या हुआ था? वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत ही क्यों बनाया गया, राष्ट्रगान क्यों नहीं‌?

वंदे मातरम् पर विवाद की जड़ें 150 साल पुरानी हैं और कांग्रेस से जुड़ी हैं.

Vande Mataram Controversy Story: भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् को 150 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन इस पर 1937 से चल रहा विवाद आज भी खत्म नहीं हुआ है. 1937 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच इसे लेकर विवाद हुआ, जिसने देश विभाजन के बीज बोए और देश हिंदू-मुसलमानों में बंट गया. आज भी विवाद की एक वजह मुसलमानों का विरोध ही है, क्योंकि हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के सभी स्कूलों में वंदे मातरम् का गायन अनिवार्य कर दिया तो मुस्लिम नेताओं ने उनके आदेश का विरोध किया.

प्रधानमंत्री मोदी ने भी किया विवाद का जिक्र

7 नवंबर 2025 को वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने 1937 में हुए विवाद पर बयान दिया. फिर केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक में संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्र गीत के ऐतिहासिक महत्व और राष्ट्र-निर्माण में इसकी भूमिका पर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा, जिसे विपक्षी दलों ने SIR और वोट चोरी के मुद्दे से ध्यान भटकाने का जरिया बताया. इस बीच 24 नवंबर 2025 को राज्यसभा सचिवालय ने बुलेटिन जारी करके जय हिंद और वंदे मातरम् के नारे सदन के अंदर और बाहर लगाने पर रोक लगा दी.

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संसद में 8 दिसंबर को होगी राष्ट्रगीत पर चर्चा

उपरोक्त वजहों से संसद के शीतकालीन सत्र में 8 दिसंबर को दोपहर 12 बजे वंदे मातरम् पर चर्चा होगी, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी करेंगे. ऐसे में अगर वंदे मातरम् सुर्खियों में हैं तो उस विवाद को भी जान लेना चाहिए, जिसकी वजह से हिंदू-मुसलमानों में टकराव हुआ. 1950 में संविधान सभा में वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत का दर्ज देते हुए 2 छंद ही गाने का फैसला और ऐलान किया गया. यह भी जान लेते हैं कि वंदे मातरम् को राष्ट्रगान क्यों नहीं बनाया गया‌? वंदे मातरम् और इसकी गाई जाने वाली पहली 2 लाइनों का मतलब क्या है, आइए जानते हैं…

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अक्षय नवमी के मौके पर लिखा गया था गीत

बता दें कि वंदे मातरम् गीत को बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के मौके पर लिखा था. उन्होंने ही इस गीत को अपनी पत्रिका बंगदर्शन में छपे अपने उपन्यास 'आनंद मठ' में प्रकाशित कराया था. 1896 कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में इस गीत को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाया था और तब पहली बार इसे पब्लिकली गाया गया था. इसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में भारत माता के प्रति सम्मान जताने के वंदे मातरम् गाया जाने लगा और इसके नारे लगाए जाने लगे. 1905 में पश्चिम बंगाल विभाजन के दौरान इस गीत का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया.

मुस्लिम लीग को गीत के शब्दों पर थी आपत्ति

1905 में मुस्लिम लीग बनी और हिंदू-मुसलमान मिलकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने लगे, लेकिन मुसलमानों ने आंदोलन के दौरान वंदे मातरम् गाने से इनकार किया. 1923 में कांग्रेस के अधिवेशन में भी वंदे मातरम् के गायन के समय कांग्रेस अध्यक्ष मोहम्मद अली जौहर उठकर चले गए थे. मुसलमानों का कहना है कि वंदे मातरम् के जरिए उन पर हिंदू देवी-देवताओं की पूजा का दबाव डाला जा रहा है. वंदे मातरम् में मंदिर और दुर्गा शब्दों का इस्तेमाल हुआ है. विवाद सुलझाने के लिए सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आजाद और आचार्य नरेंद्र देव की एक कमेटी बनाई गई.

वंदे मातरम् के 2 छंद गाने पर ही बनी सहमति

कमेटी के सुझाव को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कांग्रेस के समक्ष पेश किया और इसे स्वीकार करने का आग्रह किया. तब तक हिंदू समुदाय के लोग मुसलमानों के विरोध हो चुके थे और वंदे मातरम् का इस्तेमाल नारे के रूप में मुसलमानों के खिलाफ करने लगे थे. 1937 में फैजपुर में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के पहले 2 छंद ही गाए गए और हमेशा इसके 2 छंद गाने का ही ऐलान किया गया. इस ऐलान को नियम बनाते हुए 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत घोषित कर दिया.

विरोध के कारण नहीं बन पाया राष्ट्रीय गान

बता दें कि मुस्लमानों के विरोध के कारण ही वंदे मातरम् को राष्ट्रगान नहीं बनाया गया. मौलाना अबुल कलाम आजाद ने धार्मिक भेदभाव पैदा होने की वजह से वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत और जन गण मण को राष्ट्रगान बनाने का सुझाव दिया था, जबकि बाल गंगाधर तिलक ने ‘राष्ट्रीय प्रार्थना’ और अरविंदो घोष ने इसे ‘मंत्र’ कहते हुए राष्ट्रगान बनाने का समर्थन किया. इसे हर सभा में गाने का नियम बना था. सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज वंदे मातरम् के नारे लगाती थी. वंदे मातरम नारा लगाने पर क्रांतिकारियों को जेल में डाला गया या फांसी पर चढ़ा दिया गया था.

वंदे मातरम और पहली 2 लाइनों का मतलब

वंदे मातरम् का अर्थ है कि मां को नमन करता हूं. वंदे संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ नमन करना और मातरम् इंडो-यूरोपीय शब्द है, जिसका अर्थ 'मां' होता है. वंदे मातरम्, सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्, शस्यश्यामलां मातरम् का अर्थ है कि मां! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं, जो सुंदर जल से सिंचित हो, फलों से भरी हो, मंद पवन से शीतल हो, फसलों से हरी-भरी हो. शुभ्रज्योत्सनापुलकितयामिनिं, फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं, सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं, सुखदां वरदान मातरम् का अर्थ है कि चांदनी रातें, खिले हुए फूलों से सजी, मधुर मुस्कान वाली, मधुर वाणी बोलने वाली, सुख और वरदान देने वाली मां.


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