Explainer: टनल में फंसे मजदूरों को बचाने के लिए कैसे चला बचाव अभियान?
Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 4.5 किमी लंबी सिल्कयारा-बारकोट सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने के बाद टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया है। इस अभियान में बचावकर्मियों ने दिन-रात एक करके काम किया, जिसका नतीजा आज देखने को मिला। मजदूरों को बाहर आने के बाद पूरा देश खुशी से झूम रहा है। यहां बचाव कर्मियों की पूरी मेहनत की कहानी है।
रैट-माइनर्स ऑपरेशन कैसे कर रहा है काम?
सोमवार, 27 नवंबर की रात तीन रैट-माइनर का एक समूह पाइप के जरिए मलबे तक पहुंच गया। इसमें एक ने खुदाई की, दूसरे ने मलबा ट्रॉली में डाला और तीसरे ने ट्रॉली को एक शाफ्ट पर रखा जिसके माध्यम से उसे बाहर निकाला गया। औसतन, वे प्रति घंटे 0.9 मीटर खुदाई करने में सक्षम रहे। अधिकारियों ने कहा कि रैट-माइनर्स के एक समूह को लगभग हर घंटे 3 के नए समूह से बदल दिया जाता था। मंगलवार दोपहर 3 बजे तक, उन्होंने श्रमिकों तक पहुंचने के लिए 12-13 मीटर की ड्रिलिंग कर ली थी। रैट-माइनर को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से लाया गया था।
मजदूरों को कैसे बाहर निकाला जा रहा है?
अधिकारियों के अनुसार, एक बार ड्रिलिंग हो जाने के बाद, सुरंग बनाने के लिए चौड़े पाइपों को मलबे के माध्यम से धकेला जाता है। एक बार ऐसा हो जाने के बाद, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की एक टीम, ऑक्सीजन किट पहने हुए, श्रमिकों के लिए व्हील-फिटेड स्ट्रेचर, एक रस्सी और ऑक्सीजन किट लेकर पाइप के माध्यम से अंदर गए। इसके बाद डॉक्टरों और पैरामेडिक्स को व्हील-फिटेड स्ट्रेचर पर अंदर भेजा गया, जिसके बाद उन्होंने फंसे हुए श्रमिकों के हेल्थ की जांच की। स्ट्रेचर को दोनों तरफ से रस्सियों से बांधा गया था। एक-एक कर मजदूरों को बाहर निकाला जाएगा। एनडीआरएफ कर्मी सुरंग से बाहर आने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे। पूरा ऑपरेशन तीन घंटे तक चलेगा।
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श्रमिकों के पास कैसे पहुंचा था खाना?
फंसे हुए लोगों तक 4 इंच के पाइप के जरिए संपीड़ित हवा के जरिए खाना भेजा जा रहा था। 20 नवंबर को बचावकर्मियों ने खाना भेजने के लिए छह इंच का बड़ा पाइप लगाया। पहले वाले पाइप का इस्तेमाल कर फंसे हुए लोगों तक मेवे और भुने हुए चने जैसी खाने की चीजें भेजी जा रही थीं। नए पाइप के माध्यम से बचावकर्मी मजदूरों के लिए चपाती, सब्जियां और फल जैसे ठोस खाद्य पदार्थ भेज रहे हैं। भोजन को दूसरी ओर भेजने के लिए बेलनाकार बोतलों और रस्सी से जुड़ी एक विशेष ट्रे का उपयोग किया जाता था।
बरमा मशीनों ने कैसे किया कार्य?
टनल में फंसे मजदूरों को बचाने के लिए ऑगर मशीनों का भी इस्तेमाल किया गया, जिसे बरमा बिट के रूप में जाना जाता है। शुक्रवार को मशीन में लगे ब्लेड टूटने से पहले इसने 55 मीटर तक ड्रिल किया था।
सिल्क्यारा सुरंग ऑपरेशन में, अमेरिकन ऑगर 600-1200, हाई पावर वाली क्षैतिज ड्रिलिंग (Horizontal Drilling) का उपयोग किया गया था। इसका निर्माण अमेरिकी कंपनी अमेरिकन ऑगर्स द्वारा किया गया है।
ड्रिलिंग के दौरान बरमा मशीनों द्वारा लाए गए मलबे या सामग्री को आम तौर पर बरमा के डिजाइन का उपयोग करके हटा दिया जाता है। बरमा मशीन न केवल ट्रिल करता है बल्कि यह खोदी गई सामग्री को बाहर भी निकालने का का काम करता है।
मशीन से ड्रिल किए गए एक मीटर को ड्रिल करने में एक घंटा और पाइपों में फिट करने में 4-5 घंटे लग गए। बरमा मशीन का उपयोग करके 900mm और 800mm पाइप डाले गए थे और सुरंग बनाने के लिए दो पाइपों को वेल्ड किया गया था।
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