‘दोनों IAS अफसरों को फौरन रिहा किया जाए…’, SC ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, जानें पूरा मामला
Supreme Court
UP News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यूपी के दो आईएएस अफसरों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। इन अफसरों पर आरोप है कि इन्होंने रिटायर्ड न्यायाधीशों के लिए सुविधाएं मुहैया कराने वाले हाईकोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया। अवमानना का दोषी मानते हुए 19 अप्रैल को हाईकोर्ट के आदेश पर दोनों अफसरों को हिरासत में लिया गया था। इस फैसले के खिलाफ यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया है। हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव के खिलाफ जमानती वारंट भी किया था।
मीलॉर्ड, ये तो बेहद अजीब है...
गुरुवार को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज योगी सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ में पेश हुए। उन्होंने आईएएस अफसरों को हिरासत में लिए जाने की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि मीलॉर्ड, यह तो बेहद अजीब है।
उन्होंने बताया कि दो अधिकारी - वित्त सचिव एसएमए रिजवी और विशेष सचिव (वित्त) सरयू प्रसाद मिश्रा अभी भी हिरासत में हैं। इसके अलावा ASG ने बताया कि आदेश सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संघ द्वारा दायर एक रिट याचिका में पारित किए गए थे।
अब 28 अप्रैल को सुनवाई
इसके बाद जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने राज्य की अपील पर नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की है। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख तक हाईकोर्ट के 4 अप्रैल और 19 अप्रैल के आदेश पर रोक रहेगी। साथ ही हिरासत में लिए गए अधिकारियों को तत्काल रिहा किया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को इसकी सूचना तत्काल फोन पर ही दी जाए।
हाईकोर्ट ने अफसरों को गिरफ्तार करने का दिया था आदेश
दरअसल, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 4 अप्रैल को हाईकोर्ट के रिटायर्ड जजों की सुविधाओं को लेकर एक आदेश दिया था। हफ्ते भर में जवाब दाखिल करने के लिए कहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना का कारण बताओ नोटिस जारी किया और अदालत में मौजूद दो आईएएस अधिकारियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने तथ्यों को दबाने का लगाया था आरोप
एएसजी नटराज ने कोर्ट को बताया कि जिस मुद्दे पर हाईकोर्ट को राज्य से अनुपालन की आवश्यकता थी, वह वित्त से संबंधित मामला था। जिसके लिए राज्यपाल की सहमति की भी आवश्यकता थी। राज्य ने इस हफ्ते की शुरुआत में उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया था। जिसमें बताया गया था कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को लाभ के संबंध में एक प्रस्ताव कानून विभाग द्वारा वित्त विभाग को भेजा गया था। हाईकोर्ट ने सरकार पर तथ्यों को दबाने और अदालत को गुमराह करने का आरोप लगाया क्योंकि हलफनामे में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए भत्तों की मांग के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं देने के कारणों का खुलासा नहीं किया गया था।
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