Aravalli Hills Controversy: अरावली की पहाड़ियों को लेकर छिड़े विवाद में अब सुप्रीम कोर्ट की एंट्री हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में स्वत: संज्ञान लिया है और 3 जजों की बेंच को मामला सौंपा है. सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की बेंच मामले की सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला में खनन के लिए नए पट्टों पर रोक लगा दी है. यह रोक तब तक रहेगी, जब तक कि खनन के लिए प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती.
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केंद्र सरकार ने तय की पर्वतमाला की नई परिभाषा
बता दें कि हाल ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट ने दुनिया की सबसे पुरानी और 700 किलोमीटर लंबी अरावली हिल्स की नई परिभाषा तय की थी. इसमें कहा गया था कि 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली की पहाड़ियां माना जाएगा. बाकी पहाड़ी हिस्से को हटा दिया जाएगा. हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि नई परिभाषा से पर्वतमाला को कोई खतरा नहीं होगा, लेकिन फिर भी नई परिभाषा का विरोध किया जा रहा है.
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पर्वतमाला का 90 प्रतिशत हिस्सा खत्म होने का खतरा
क्योंकि विशेषज्ञों का कहना है कि नई परिभाषा के बाद अरावली के 90 प्रतिशत हिस्से को हटाया जा सकता है. केंद्र सरकार ने अरावली पर्वतमाला के वैज्ञानिक महत्व को जाने बिना, सार्वजनिक सलाह लिए बिना नई परिभाषा तय की है, जिससे हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले अरावली के बड़े हिस्से खनन के खतरे में पड़ सकते हैं. यह पर्वतमाला दिल्ली और इससे सटे नोएडा को राजस्थान के रेगिस्तान की धूल-मिट्टी से बचाती है, लेकिन इसे ध्यान में रखे बिना फैसला किया गया.
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विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली पर्वतमाला का एरिया कम होने से अवैध खनन बढ़ेगा. रेगिस्तान का विस्तार और ज्यादा होगा. भूजल स्तर गिरने से पानी की कमी होगी. रेगिस्तान की धूल-मिट्टी दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा को भी प्रदूषित करेगी. जैव विविधता का विनाश होगा और गर्मी बढ़ेगी.