पंजाब और हरियाणा के बीच जल विवाद का मामला नहीं सुलझ पाया और यह केस सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सतलुज-यमुना लिंक कैनाल (SYL) नहर विवाद को लेकर हरियाणा और हरियाणा को सख्त निदेश दिया। अदालत ने कहा कि इस मामले में दोनों राज्य केंद्र सरकार को सहयोग करें।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया निर्देश?
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा से कहा कि दोनों राज्य सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद के संबंध में सौहार्दपूर्ण समाधान तक पहुंचने में केंद्र सरकार को सहयोग करें। अदालत ने कहा कि अगर समाधान नहीं निकला तो सुप्रीम कोर्ट जल विवाद पर 13 अगस्त को सुनवाई करेगा। इस दौरान केंद्र सरकार के साथ पंजाब और हरियाणा ने अदालत में अपनी-अपनी बातें रखीं।
जानें केंद्र सरकार ने क्या कहा?
केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हमने मध्यस्थता के लिए प्रयास किए थे। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने बैठक की और जल बंटवारे पर विचार करने के लिए समिति गठित की गई है। दोनों राज्यों के मुख्य सचिव इस समिति के अध्यक्ष हैं। इस मामले में 1 अप्रैल को एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल किया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में कहा गया है कि दोनों मध्यस्थता के लिए सहमत हो गए हैं।
हरियाणा ने पंजाब पर क्या लगाया आरोप?
हरियाणा सरकार के एडवोकेट जनरल श्याम दीवान ने कहा कि बातचीत से कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है। जहां तक नहर के निर्माण की बात है तो हरियाणा सरकार ने अपने इलाके का काम पूरा कर लिया है। एक अहम मुद्दा है कि पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। पंजाब के सीएम ने आधिकारिक तौर पर कहा कि हम सहयोग नहीं करेंगे, इसलिए वार्ता विफल हो गई है। 2016 से हम प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आगे कुछ नहीं हुआ।
पंजाब सरकार ने क्या दीं दलीलें?
पंजाब सरकार के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने कहा कि डिक्री अतिरिक्त पानी के लिए थी। अभी नहर का निर्माण होना बाकी है। हरियाणा को अतिरिक्त पानी मिलना चाहिए या नहीं? यह मुद्दा ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित है।
जानें क्या है SYL विवाद?
1966 में जब संयुक्त पंजाब से अलग होकर हरियाणा एक अलग राज्य बना था, तभी से दोनों राज्यों के बीच जल विवाद चला आ रहा है। करीब 10 साल तक चले लंबे विवाद के बाद 1976 में पंजाब-हरियाणा के बीच जल विवाद खत्म हो गया। इसके बाद सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर के मामले ने जन्म लिया। इसे लेकर साल 1981 में समझौता हुआ और 1982 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इसका निर्माण कार्य शुरू कराया और अबतक 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। यह मामला तब और तूल पकड़ लिया, जब साल 2004 में पंजाब ने समझौता को मानने से मना कर दिया।