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Assam: ‘हिंदुओं के इलाज का खर्च दूसरे धर्म के लोग उठाते हैं’? 10वीं के पेपर में पूछे सवाल से देशभर में छिड़ी बहस

Start New Debate on Secularism: असम राज्य बोर्ड परीक्षा के कक्षा 10वीं के आखिरी पेपर में पूछे गए सवाल ने पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता को लेकर एक नई बहस शुरू कर दी है। चलिए जानते हैं पूरा मामला क्या है।

Start New Debate on Secularism: इस समय देश में धर्मनिरपेक्षता को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। यह बहस कक्षा 10वीं के सोशल साइंस एग्जाम पेपर में पूछे गए एक प्रश्न को लेकर शुरू हुई है। दरअसल, कुछ दिनों पहले असम की कक्षा 10वीं के आखिरी पेपर में एक प्रश्न था कि 'मान लीजिए कि सरकार ने डम्बुक नामक गांव में एक अस्पताल बनाया है। अस्पताल में हिंदुओं का मुफ्त इलाज होता है। दूसरे धर्मों के लोगों को इलाज का खर्च खुद उठाना पड़ता है। क्या भारत जैसे देश में सरकार ऐसे कदम उठा सकती है? अपनी राय दें...।' किसी ने इस प्रश्न की फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी, जिसके बाद से पूरे देश में इस प्रश्न को लेकर बहस शुरू हो गई। सोशल मीडिया पर वायरल हुए असम राज्य बोर्ड परीक्षा के इस प्रश्नपत्र की कई संगठनों ने खुलकर आलोचना की है। वहीं, कुछ नागरिक समाज संगठनों ने इस प्रश्नपत्र को लेकर कहा कि इसके जरिए शिक्षा प्रणाली को सांप्रदायिक रंग देने का एक मौन प्रयास किया गया है।

विरासत है SEBA बोर्ड

गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और असम सिविल सोसाइटी के अध्यक्ष हाफिज रशीद अहमद चौधरी ने कहा कि 'हम वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को जानते हैं, लेकिन उनके एजेंडे में शिक्षा को शामिल करना दुर्भाग्यपूर्ण है। SEBA बोर्ड की एक विरासत है, जिसे राजनीतिक नेताओं को नष्ट नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम पहले से ही सोशल मीडिया के जरिए धार्मिक मुद्दों पर नकारात्मकता को झेल रहे हैं। वहीं, स्कूल की परीक्षा में अगर ऐसे सवाल पूछे गए, तो ये छात्रों को मतभेदों के बारे में सोचने के लिए उकसाएंगे, जो भारतीय समाज के लिए काफी खतरनाक है।'

छात्र संगठनों की चेतावनी

राज्य भर के छात्र संगठनों ने परीक्षा में पूछे गए इस प्रश्न की आलोचना करते हुए राज्य सरकार को एक ज्ञापन सौंपा है। हैलाकांडी के श्रीकिशन सारदा कॉलेज के छात्र संघ के सदस्यों ने शुक्रवार को जिला आयुक्त को एक ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि अगर भविष्य में इस तरह के सवाल दोहराए गए, तो वे विरोध प्रदर्शन शुरू करेंगे।

छात्रों का मानसिक उत्पीड़न

छात्र संघ की सलमा खातून बरभुयान ने कहा कि 'इस तरह के सवाल को पढ़ने के बाद एक गैर-हिंदू छात्र की मानसिक स्थिति के बारे में सोचें। अगर हम इसके खिलाफ लिखेंगे, तो हमें अंक नहीं मिलेंगे और अगर हम अपने दिल की बात मानेंगे, तो हम इसका समर्थन नहीं कर पाएंगे। यह एक तरह का मानसिक उत्पीड़न है।'

10वीं की परीक्षा में APSC के लेवल सवाल

इसी बीच ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) जैसे छात्र संगठनों ने दावा किया कि सोशल साइंस के पेपर के प्रश्न कक्षा 10 के छात्रों के लिए बहुत कठिन थे। ABSU के स्वमाओसर बसुमतारी ने कहा कि सोशल साइंस के प्रश्न लगभग असम लोक सेवा आयोग (APSC) के लेवल के थे, जिसके जवाब के लिए कक्षा 10 के छात्रों को काफी संघर्ष करना पड़ा था। यह भी पढ़ें: Delhi: जल्द बदलेगी यमुना की सूरत, चलेगा क्रूज, सरकार ने बनाया स्पेशल प्लान

पूरी बहस पर क्या बोले शिक्षा मंत्री?

इस पूरी बहस पर असम के शिक्षा मंत्री रनोज पेगू ने कहा कि 'इसे मुद्दा बनाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि शिक्षा विभाग यह जानने की कोशिश कर रहा है कि क्या छात्र भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को समझते हैं। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और छात्रों को इस शब्द को व्यावहारिक रूप से समझने की जरूरत है। ये विषय कक्षाओं में पढ़ाए जाते थे और यह सवाल अचानक नहीं आया। मुझे समझ में नहीं आता कि यह चर्चा का विषय क्यों है?' वहीं, हार्ड क्वेश्चन पेपर को लेकर शिक्षा मंत्री पेगु ने कहा कि अधिकारी शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर जरूरत हुई तो भविष्य में इसमें संशोधन किया जाएगा।


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