Sharmistha Ghosh: दिल्ली की ये ‘चायवाली’ चर्चा में, कभी ब्रिटिश काउंसिल में करती थीं जॉब
Sharmistha Ghosh: अमेरिकी लेखक वॉल्टर इलियास डिज्नी की एक लाइन मशहूर है, जिसमें वे कहते हैं कि हमारे सभी सपने सच हो सकते हैं, अगर हम उन्हें पूरा करने का साहस रखते हैं। ये लाइन दिल्ली की शर्मिष्ठा घोष (Sharmistha Ghosh) पर बिलकुल सटीक बैठती है।
पिछले पांच सालों में भारत में स्टार्टअप्स ने जबरदस्त तरीके से रफ्तार पकड़ी है। इनमें कई एंटरप्रेन्योर ऐसे हैं जिन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए लाखों रुपये की नौकरी तक छोड़ दी। इनमें से कुछ कहानियों से प्रेरणा लेकर शर्मिष्ठा घोष ने भी कुछ अलग करने की ठानी है।
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क्या है शर्मिष्ठा घोष का सपना
शर्मिष्ठा घोष के पास अंग्रेजी लिटरेचर में मास्टर डिग्री है। इन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए ब्रिटिश काउंसिल में अपनी नौकरी तक छोड़ दी। फिलहाल, शर्मिष्ठा अपने सपने को पूरा कर रही हैं और दिल्ली कैंट के गोपीनाथ बाजार में चाय की दुकान चला रही हैं।
शर्मिष्ठा की कहानी को भारतीय सेना के सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर संजय खन्ना (Brigadier Sanjay Khanna) ने अपने लिंक्डइन पर शेयर किया है। लिंक्डइन पोस्ट के अनुसार, शर्मिष्ठा चायोस की तरह इसे बड़ा बनाने का सपना देखती हैं। शर्मिष्ठा के इस सपने को पूरा करने में उनकी एक दोस्त भावना राव भी उनका साथ दे रही हैं। दोनों शाम को चाय की दुकान पर आती हैं और देर रात तक घर लौटतीं हैं।
ब्रिगेडियर खन्ना बोले- इसके लिए जुनून और ईमानदारी जरूरी
शर्मिष्ठा घोष की स्टोरी शेयर करने वाले ब्रिगेडियर खन्ना ने कहा कि अपने सपने को साकार करने के लिए जुनून और ईमानदारी होनी चाहिए। मैं बहुत से युवाओं से मिला हूं जो निराशा में हैं और नौकरी की तलाश में हैं। मुझे लगता है कि किसी को उच्च योग्यता वाली नौकरी की जगह कमाई और सफलता के लिए छोटे तरीकों और साधनों के बारे में सोचना चाहिए।
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ब्रिगेडियर खन्ना के पोस्ट पर यूजर्स ने दी प्रतिक्रिया
ब्रिगेडियर खन्ना के पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए एक यूजर ने कहा कि मैं आपकी इस भावना से पूरी तरह सहमत हूं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। इसे पूरा करने के लिए एक सपना और जुनून होना महत्वपूर्ण है। शर्मिष्ठा घोष और भावना राव की कहानी वास्तव में प्रेरणादायक है।
एक अन्य यूजर ने कमेंट किया, "जिन महिलाओं का परिवार आर्थिक रूप से उन पर निर्भर नहीं है, ऐसी महिलाएं आसानी से ऐसा कदम उठा सकती हैं। लेकिन जिसका परिवार आर्थिक रूप से उन पर निर्भर है, वह इस तरह का रिस्क नहीं ले सकतीं हैं। हां, लोग हमदर्दी दिखाएंगे, लेकिन पैसा नहीं मिलेगा।'
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