Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: कैसा था सरदार पटेल का जीवन सफर, कौन सा तरीका अपनाकर पिरो पाए भारत को एक धागे में
Sardar Vallabhbhai Patel Birth Anniversary: आज यानी 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 148वीं जयंती है। वे भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे। जब देश आजाद हुआ तब यहां छोटी-बड़ी कुल 565 से ज्यादा रियासतें थीं। सबसे बड़ी चुनौती इन्हें एक करना था। इसमें सरदार पटेल की सबसे बड़ी भूमिका थी। पटेल इन सभी रियासतों को जोड़कर भारत के अधीन ले आए। उन्होंने ऐसा तब किया जब इनमें से कई रियासतें भारतीय संघ में शामिल नहीं होना चाहती थीं। उनकी जयंती को हर साल एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आखिर सरदार पटेल ने ऐसा कौन सा तरीका अपनाया जिससे वे ऐसा कर पाए। पूरे भारत को एकता के सूत्र में बांधने के लिए उन्होंने कौन सी बुद्धि और अनुभव का इस्तेमाल किया। पटेल की सूझबूझ से सभी रियासतें भारत में मिल गईं। सबसे खास बात ये रही कि इसमें कोई खून खराबा नहीं हुआ।
बचपन में कठिनाईयों का करना पड़ा सामना
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में एक किसान परिवार में हुआ था। वे पढ़ने में बचपन से ही तेज थे, लेकिन उन्हें पढ़ाई के दौरान अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। 18 साल की उम्र में झावेर बा से उनका विवाह हो गया। जुलाई 1910 में वे इंग्लैंड गए और वहां कानून की पढ़ाई करने लगे। लंदन में बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद 1913 में अहमदाबाद आकर उन्होंने वकालत शुरू की। वे जल्द ही देश के बड़े वकील बन गए। वे गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित थे। गांधीजी से उनकी मुलाकात अक्टूबर 1917 में हुई, जिसके बाद वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
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पटेल ने रियासतों को तीन बातों (रक्षा, विदेश मामले और संचार) के लिए राजी कर लिया। रक्षा मामलों में जल, थल और वायुसेना शामिल थी। इसका मतलब था कि अगर भविष्य में किसी भी रियासत पर किसी दूसरे देश या किसी आतंकी संगठन का हमला होता तो वहां भारतीय डिफेंस फोर्सेज को तैनात किया जाता। विदेश मामलों में किसी दूसरे देश के साथ कोई संधि, किसी अपराधी का प्रत्यर्पण, समर्पण या बाहर रह रहे भारतीयों की नागरिकता से जुड़ी बातें थीं।
कैसे मिली सरदार और लौह पुरुष की उपाधि
आजादी के आंदोलन में पटेल का बड़ा योगदान था। इसमें सबसे पहला और बड़ा 1918 में खेड़ा आंदोलन का योगदान था। गांधीजी की अहिंसा की नीति से प्रभावित होकर वे आजादी के आंदोलनों में भाग लेने लगे। 1928 में बारदोली सत्याग्रह आंदोलन सफल होने के बाद उन्हें 'सरदार' की उपाधि दी गई। महात्मा गांधी ने उनके साहस और व्यक्तित्व को देखकर लौह पुरुष की उपाधि दी थी। आजादी के बाद देश के संविधान निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका थी। वे संविधान सभा के वरिष्ठ सदस्य थे।
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