Adultery-Gay Sex फिर से होगा ‘क्राइम’!, संसदीय पैनल ने बनाया कानून सुधार का ड्राफ्ट
Bharatiya Nyaya Sanhita
Parliament Panel May Suggest To Government Adultery-Gay Sex Again Criminalise: देश में समलैंगिकता को एक बार फिर से क्राइम की कैटेगरी में डाला जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति व्यभिचार (Adultery) और पुरुषों, महिलाओं व ट्रांस सदस्यों (Gay Sex) के बीच गैर सहमति से यौन संबंध को फिर से अपराध की श्रेणी में लाने की सिफारिश कर सकती है। समिति भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बदलने के लिए तीन विधेयकों का अध्ययन कर रहा है।
समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृजलाल
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कई कानूनों को रद्द कर दिया था। साथ ही संसद में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम तीन विधेयक पेश किए थे। इन विधेयकों को अगस्त में आगे की जांच के लिए समिति को भेजा गया था। समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृज लाल हैं।
विपक्ष के विरोध पर रिपोर्ट रोकी
शुक्रवार को समिति की बैठक हुई, लेकिन ड्राफ्ट रिपोर्ट रोक दी गई। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधी रंजन चौधरी के साथ पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन और डीएमके के एनआर एलंगो आदि विपक्षी नेताओं ने ड्राफ्ट पर फिर से विचार करने के लिए तीन महीने के विस्तार की मांग की। अगली बैठक 6 नवंबर को होगी।
आगे जानिए क्या-क्या हो सकते हैं प्रस्ताव?
व्यभिचार: सूत्रों का कहना है कि व्यभिचार को फिर से एक आपराधिक अपराध बनाया जाए। इसके लिए या तो 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए गए कानून को बहाल किया जाए या एक नया कानून पारित किया जाए।
5 साल पहले आया था ऐसा फैसला: 2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने फैसला सुनाया था कि व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए। यह एक नागरिक अपराध का आधार हो सकता है। व्यभिचार कानून में 5 साल की सजा का प्राविधान था।
रिपोर्ट में यह सिफारिश करने की संभावना है कि व्यभिचार पर हटाए गए प्रावधान को वापस लाए जाने पर लिंग-तटस्थ बना दिया जाएगा। जिसका मतलब है कि पुरुष और महिला को सजा का सामना करना पड़ सकता है। समिति का मानना है कि विवाह संस्था की रक्षा के लिए, इस धारा (आईपीसी की 497) को लिंग-तटस्थ बनाकर संहिता में बरकरार रखा जाना चाहिए।
धारा 377 पर भी चर्चा: समिति ने कथित तौर पर धारा 377 पर भी चर्चा की। धारा 377 ब्रिटिशकालीन कानून है। जिसमें समलैंगिकता को अपराध माना जाता था और इसे पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी रद्द कर दिया था।
समिति ने अपराधमुक्त करने का किया था विरोध
माना जा रहा है कि समिति सरकार को सिफारिश करेगी कि आईपीसी की धारा 377 को फिर से लागू करना और बनाए रखना अनिवार्य है। इससे पहले समिति ने धारा 377 और धारा 497 को अपराध की श्रेणी से हटाने का विरोध किया था।
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