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PM मोदी से लेकर राहुल तक की जुबां पर OBC; 2023-24 के चुनावों के लिए इतना जरूरी कैसे हुआ ये समुदाय

OBC Vote Factor 2023-24 Assembly Lok Sabha Elections: इस साल के आखिर में और अगले साल में देश में चुनावी समर है। चुनाव को लेकर धीरे-धीरे राजनीतिक पार्टियों की रणनीति सामने आने लगी है। देश की राजनीतिक पार्टियों की रणनीति में एक बार कॉमन दिख रही है, वो है OBC वोटर्स को लेकर इनकी चिंता! […]

OBC Vote Factor 2023-24 Assembly Lok Sabha Elections: इस साल के आखिर में और अगले साल में देश में चुनावी समर है। चुनाव को लेकर धीरे-धीरे राजनीतिक पार्टियों की रणनीति सामने आने लगी है। देश की राजनीतिक पार्टियों की रणनीति में एक बार कॉमन दिख रही है, वो है OBC वोटर्स को लेकर इनकी चिंता! बात सत्ता पक्ष की हो या फिर विपक्ष की, दोनों ही ओबीसी वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुट गए हैं। ऐसे में सवाल ये कि आखिर 2023-24 में होने वाले विधानसभा और आम चुनाव के लिए ओबीसी वोटर्स इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गए? आखिर ओबीसी वोटर्स का समीकरण क्या है, देश के किस राज्य में कितने फीसदी ओबीसी वोटर्स हैं? देश में बकवर्ड क्लास यानी ओबीसी वोटबैंक काफी महत्व रखता है। इसका महत्व कितना है, ये इस बात से समझा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले ही पीएम मोदी से लेकर राहुल गांधी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, मायावती सभी की जुबां पर ओबीसी समुदाय का नाम है। कुछ दिनों पहले BJP की अगुवाई वाली NDA ने अपने पुराने साथियों को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में दोबारा शामिल किया था, ये वे दल हैं, जो अलग-अलग राज्यों के ओबीसी वोटर्स पर खासा प्रभाव रखते हैं। इससे पहले 2024 के आम चुनाव और इससे पहले इस साल के आखिर में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर यूपीए ने अपना नाम बदल लिया और भाजपा विरोधी 25 से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों को लेकर I.N.D.I.A गठबंधन बना लिया।

ऐसे शुरू हुई ओबीसी वोटर्स को साधने की कोशिश

हाल ही में केंद्र में सत्ता पर बैठी भाजपा ने संसद के स्पेशल सेशन में महिला आरक्षण बिल पास करवाया। इसके तुरंत बाद ही केंद्र सरकार को घेरने के लिए विपक्षी गठबंधन ने बिल के समर्थन के साथ OBC कोटे का मुद्दा उछाल दिया। अब पक्ष विपक्ष ओबीसी के नाम पर एक दूसरे को आइना दिखा रही हैं। I.N.D.I.A गठबंधन के तमाम नेता महिला आरक्षण में OBC कोटे को नजरअंदाज करने से नाराज हैं। खासकर, राहुल गांधी देश की ब्यूरोक्रेसी के नाम पर मोदी सरकार पर हमलावर हैं। राहुल गांधी ने हाल ही में कहा था कि देश को चलाने वाले 90 ब्यूरोक्रट्स में से 3 ओबीसी सेक्रेटरी हैं। इसके जवाब में मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रियों ने मोर्चा संभाला और उन्हें अपना ज्ञान बढ़ाने की सलाह दे दी।

ओबीसी वोट बैंक में भाजपा लगा चुकी है सेंध

हिंदू और हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनीतिक पहचान रखने वाली भाजपा ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी कर चुकी है। कई चुनावी सर्वे रिपोर्ट्स के मुताबिक, भाजपा दूसरी पार्टियों से ज्यादा ओबीसी समर्थन हासिल करती नजर भी आई है। एक सर्वे के मुताबिक, 2019 में ओबीसी समुदाय के 54 फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी का समर्थन किया था, जो किसी भी दूसरी पार्टी के मुकाबले कहीं ज्यादा था। इसके विपरीत भाजपा की इस लहर में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ओबीसी वोट बैंक को साधने में विफल रही और 2019 के लोकसभा चुनाव में मात्र 5 सीटों पर सिमट गई। बिहार में तो ओबीसी वोटबैंक के जरिए राजनीति करने वाले नीतीश और लालू यादव की पार्टियां खाता भी नहीं खोल पाई। हालांकि, 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 32.3% वोट शेयर के साथ 111 सीटें मिलीं, जबकि बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी RJD, तब की BJP-JDU गठबंधन को मात देते हुए 23.5% फीसदी वोट शेयर के साथ 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।

ओबीसी वोटबैंक को लेकर कांग्रेस की रणनीति साफ!

संसद से हाल ही में महिला आरक्षण बिल के तुरंत बाद ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की बात करते ही कांग्रेस का स्टैंड क्लियर हो गया कि पार्टी आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में खुद को ओबीसी वोटर्स का बड़ा हितैषी बताने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। राजनीतिक विशलेषकों की मानें तो महिला आरक्षण बिल में ओबीसी कोटे की मांग कांग्रेस ने ऐसे ही नहीं की है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश के ज्यादातर राज्यों में किसी भी पार्टी और उनके कैंडिडेट्स की किस्मत ओबीसी वोटर्स ही तय करते हैं। इसे आंकड़ों के हिसाब से समझें, तो देश में करीब 45% OBC समुदाय की आबादी है। राज्यवार OBC आबादी की बात करें तो... बिहार में 61% उत्तर प्रदेश में 54% राजस्थान में 48% गुजरात में 47% मध्य प्रदेश में 50% छत्तीसगढ़ में 45% आंध्र प्रदेश में 52% तमिलनाडु में 71% तेलंगाना में 48% कर्नाटक में 62% और केरल में 69% OBC आबादी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले किसी भी पार्टी के लिए OBC मुद्दे को नजरअंदाज करना नामुमकिन है। 2014 और 2019 में लगातार दो बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाली भाजपा पर ओबीसी समुदाय ने जमकर प्यार लुटाया है। रिपोर्ट्स की मानें तो 2009 से ओबीसी समुदाय का झुकाव भाजपा की ओर बढ़ा है। ऐसे में भाजपा के लिए भी ओबीसी कोटे की मांग को नजरअंदाज आसान नहीं है। पिछले तीन लोकसभा चुनावों में ओबीसी वोट प्रतिशत की बात करें तो...
  • 2009 में 22% ओबीसी वोट बीजेपी को मिला था, जबकि कांग्रेस को 24% ओबीसी वोट हासिल हुआ था। वहीं, क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को 54% फीसदी ओबीसी का साथ मिला था।
  • 2014 में 34 प्रतिशत ओबीसी वोट बीजेपी के साथ गया था, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 15% ओबीसी वोट हासिल हो सका था। वहीं, क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को 51% फीसदी ओबीसी का साथ मिला था।
  • 2019 में बीजेपी के लिए ओबीसी का वोट प्रतिशत तेजी से बढ़ते हुए 44% तक पहुंच गया। वहीं, कांग्रेस को 2019 में भी सिर्फ 15% ओबीसी वोट मिल सका, जबकि क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को मिलने वाला वोट प्रतिशत भी घटकर 41% हो गया।
अब 2023 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव, 2024 में लोकसभा के चुनाव के बाद 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में हर पार्टी, ओबीसी के साथ-साथ हर समुदाय को साधने की तैयारी कर रहा है।


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