Household Consumption Expenditure Survey Report: देश के नीति आयोग ने भारतीयों द्वारा किए जाने वाले मासिक प्रति व्यक्ति खर्च (MPCE) पर हुए सर्वे की रिपोर्ट जारी की है।
अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के बीच हुए खर्चे का डाटा लेकर सर्वे किया गया था, जिस आधार पर स्टडी करके घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) रिपोर्ट तैयार की गई।
इसमें खुलासा हुआ है कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग शहरियों की तुलना में ज्यादा घरेलू खर्च कर रहे हैं और खर्च भी 2011-12 की तुलना में 2022-23 में 10 साल में दोगुना हो गया है।
मासिक खर्च में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी घटी
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) में अनाज-दालों की हिस्सेदारी 2022-23 में घटकर 46.4% हो गई, जो 2011 में 52.9% थी। 2004-05 में 53.1% और 1999-2000 में 59.4% थी। अनाज-दालों के अलावा अन्य चीजों पर खर्च 47 से बढ़कर 53.6 प्रतिशत हो गया है। यह खर्च अंडा, मांस, मछली खरीदने पर किया जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शहरी भारत में घरेलू खर्च में अनाज-दालों जैसे खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है, लेकिन यह गिरावट ज्यादा नहीं है। 1999-2000 में यह भागीदारी 48.1%, 2004-05 में 40.5%, 2011-12 में 42.6% थी और नई रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में 39.2% है। वहीं खाने-पीने की चीजों के अलावा अन्य चीजों पर खर्च 57.4 से बढ़कर 60.8% हो गया है। खर्च भी कपड़ों, टेलिविजन, फ्रिज और मनोरंजन के साधनों पर किया जा रहा है।
ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कुल खाद्य उपभोग व्यय में अनाज और दालों की हिस्सेदारी कम हो गई है। दूध, मांस, मछली पर खर्च बढ़ गया है।
फलों-सब्जियों, पोषक तत्वों (विटामिन और खनिज) से भरपूर खाद्य पदार्थों पर ज्यादा खर्च किया गया। ग्रामीण और शहरी भारतीयों ने 2022-23 में पहली बार अनाज-दालों के मुकाबले फलों और सब्जियों पर ज्यादा खर्च किया।
सब्जियों पर खर्च अनाज से अधिक हुआ और फलों पर दालों से ज्यादा खर्च किया गया। यह खर्च भी ग्रामीण भारत में शहरियों से ज्यादा खर्च किया गया, जो 2022-23 में 10.59% और शहरी भारत में 9.11% है।
ग्रामीणों ने अंडे, मछली, मांस खरीदने में ज्यादा खर्च किया। शहरी बने बनाए खाद्य पदार्थों, पेय पदार्थों और पके हुए खाने पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। 2022-23 में शहरों में यह आंकड़ा 27.16% और ग्रामीण भारत में 20.74 प्रतिशत है।