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युवा शक्ति: आधी हकीकत, आधा फसाना, भारत में नौकरी के मौके कम या बिना हुनर वाली भीड़ ज्यादा?

News 24 Editor in Chief Anurradha Prasad Special Show: गोल्ड एक ऐसी बेशकीमती धातु है, जिसकी कीमत हमेशा बढ़ती रहती है। जिस देश और व्यक्ति के पास जितना अधिक Gold होता है, उसे उतना ही संपन्न माना जाता है। लेकिन, एक और दौलत है- जो किसी राष्ट्र की तरक्की की बुलंद कहानी तैयार करने में […]

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News 24 Editor in Chief Anurradha Prasad Special Show: गोल्ड एक ऐसी बेशकीमती धातु है, जिसकी कीमत हमेशा बढ़ती रहती है। जिस देश और व्यक्ति के पास जितना अधिक Gold होता है, उसे उतना ही संपन्न माना जाता है। लेकिन, एक और दौलत है- जो किसी राष्ट्र की तरक्की की बुलंद कहानी तैयार करने में अहम भूमिका निभाती है, वो है किसी भी मुल्क की यूथ पॉपुलेशन- यानी युवा आबादी। ये भी एक ऐसी संपदा है, जिसे अगर सही तरीके से और समय पर इस्तेमाल नहीं किया गया, तो देश की तरक्की संभव नहीं है।

युवा शक्ति में संभावनाएं मौजूद

भारत के साथ सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये है कि यहां दुनिया में सबसे अधिक युवा आबादी है। अगर इस विशालकाय युवा शक्ति की क्षमताओं का सही तरीके से इस्तेमाल हुआ, तो आजादी के 100वें साल के लिए भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का जो टारगेट सेट किया गया है- उसे समय से पहले ही पूरा किया जा सकता है। ऐसे में आज हम आपको ये बताने की कोशिश करेंगे कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में किस तरह की युवा आबादी दमदार भूमिका निभा सकती है? हमारे देश की युवा शक्ति में कितनी संभावनाएं मौजूद हैं? इसे किस तरह तराश कर देश की तरक्की में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है? क्या अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ने भर से भारतीयों का जीवनस्तर जर्मनी, जापान, ब्रिटेन जैसा हो जाएगा? ऐसे सभी सुलगते सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे अपने खास कार्यक्रम 'युवा शक्ति...आधी हकीकत, आधा फसाना में।'

पढ़े-लिखे बेरोजगारों की फौज

दुनिया के किसी भी देश की तुलना में भारत में युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इसे अर्थशास्त्री बड़ी ताकत के रूप में देखते हैं। दलील दी जाती है कि एक्टिव वर्किंग पॉपुलेशन किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है। बोझ बिल्कुल नहीं, लेकिन भारत जैसे देश में इसे परिस्थितियों के हिसाब से अलग-अलग लेंस से देखा जाता रहा है। आज की तारीख में हमारे देश की 68 फीसदी आबादी 15 से 64 वर्ष के बीच की है। 10 से 24 साल के बीच की आबादी 26 प्रतिशत है, लेकिन इस विशाल युवा आबादी के साथ एक बड़ा सच ये भी है कि हमारे यहां पढ़े-लिखे बेरोजगारों की फौज भी लंबी-चौड़ी है।

लेबर फोर्स का सिर्फ 5 फीसदी हिस्सा ही स्किल ट्रेनिंग से गुजरा

भले ही प्रधानमंत्री मोदी अपनी तीसरी पारी में भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी जीडीपी बनाने का वादा कर रहे हों, लेकिन एक कड़वा सच ये भी है कि हमारी लेबर फोर्स का सिर्फ 5 फीसदी हिस्सा ही Formal Skill training से गुजरा है। असंगठित क्षेत्र से जुड़ी बहुत बड़ी लेबर फोर्स बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के काम कर रही है। विकसित देशों से तुलना करें तो भारत इस मामले में बहुत पीछे दिखेगा। दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी स्किल्ड लेबर फोर्स है, तो जापान में 80 और जर्मनी में 75 फीसदी। दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति अमेरिका की 52% लेबर फोर्स फॉर्मल ट्रेनिंग के साथ मैदान में डटी हुई है। ऐसे में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में पहली बड़ी चुनौती अपनी युवा आबादी को ज्यादा से ज्यादा स्किल्ड बनाने की है। https://youtube.com/live/2cP-i7SX0e0?feature=share India Skill Report 2021 के मुताबिक 47 फीसदी बीटेक में रोजगार लायक स्किल नहीं थी। यही हाल एमबीए डिग्री होल्डर का भी रहा। आईटीआई से डिग्री लेकर जॉब मार्केट में घूमने वाले 75 फीसदी युवाओं में भी स्किल की भारी कमी देखी गई। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत के लेबर मार्केट में एंट्री लेने वाले हर तीन में से दो युवा बेरोजगार हैं। इस समस्या को दो तरह से देखा जा सकता है- पहला, क्वालिटी एजुकेशन की कमी। दूसरा, इकोनॉमी बढ़ने के साथ इंडस्ट्री में आए बदलाव। ऐसे में इकोनॉमी में आए ट्रांसफॉर्मेशन के हिसाब से देश की विशालकाय युवा आबादी को स्किल्ड और रीस्किल्ड करने का बड़ी चुनौती है ।

नहीं मिल रही है ट्रेंड वर्क फोर्स  

एक विरोधाभास ये भी है कि देश में बेरोजगार युवाओं की शिकायत रहती है कि उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है, तो इंडस्ट्री की शिकायत रहती है कि उन्हें काबिल, पूरी तरह ट्रेंड वर्क फोर्स नहीं मिल रही है। हमारी शिक्षा प्रणाली की रूपरेखा ही कुछ ऐसी रही है। जिसमें ज्यादातर युवाओं को कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद हाथों में बीए या एमए की डिग्री तो मिल गई, लेकिन उस डिग्री के आधार पर बड़ी मुश्किल से नौकरी मिल पाती है। ऐसे में देश की ज्यादातर यूनिवर्सिटीज की छवि बेरोजगार पैदा करने वाले कारखाने की बन गई है। ज्यादातर विकसित देशों में बेसिक एजुकेशन के बाद सेकेंडरी और हायर एजुकेशन में वोकेशनल कोर्सेज पर जोर रहा है। इससे स्किल्ड वर्कफोर्स तैयार करने में मदद मिलती है। दुनिया के साथ कदमताल के मकसद से नई शिक्षा नीति में व्यावहारिक और व्यावसायिक पढ़ाई पर खासतौर से फोकस किया गया है। जिससे देश की बड़ी आबादी को Skilled बनाया जा सके।

क्या जापान और जर्मनी से भारत की तुलना करना ठीक? 

Skilled आबादी भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने और आर्थिक असमानता की खाई को पाटने में अहम भूमिका निभा सकती है। इतना ही नहीं, ग्लोबल जॉब मार्केट में भी अपने लिए बेहतर संभावनाएं तलाश सकती है। पिछले साल ही SBI की एक रिसर्च ने अनुमान लगाया था कि भारत 2027 तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को पीछे छोड़ देगा। 2029 तक जापान से बड़ी भारत की अर्थव्यवस्था हो जाएगी, लेकिन क्या जापान और जर्मनी से भारत की तुलना करना ठीक रहेगा क्योंकि, भारत की आबादी जहां एक अरब चालीस करोड़ है। वहीं जर्मनी की आबादी आठ करोड़ और जापान की 12 करोड़ है। ऐसे में भारत भले ही अर्थव्यवस्था के आकार के में मामले में जर्मनी और जापान जैसे देशों को पीछे छोड़ दे, लेकिन क्या जर्मनी और जापान जैसा जीवन स्तर हमारे देश के लोगों का हो पाएगा? क्या भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति आय जर्मनी और जापान जैसी हो पाएगी? इसे समझना भी जरूरी है।

भारत और चीन एक ही धरातल पर

भारत की तुलना जर्मनी, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों से तो करना तर्कसंगत नहीं रहेगा, लेकिन, आबादी के मामले में भारत और चीन एक ही धरातल पर खड़े हैं। मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर स्किल्ड पॉपुलेशन तक में भारत से चाइना बहुत आगे है। जीडीपी से लेकर प्रति व्यक्ति आय तक में भी चाइना भारत से बहुत आगे है। 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का जो सपना संजोया जा रहा है, उसी सपने के बीच हमारे सामाजिक ताने-बाने में एक ऐसा वर्ग भी तेजी से तैयार हो रहा है, जिसके पास कोई काम नहीं है।

सरकारी योजनाएं बना रहीं निकम्मा 

वो काम करना भी नहीं चाहता है। ऐसे वर्ग की तुलना उस परजीवी से भी कर सकते हैं- जो किसी दूसरे जीव या पौधों से चिपककर अपनी जिंदगी की जरूरतों को पूरा करता है। इस परजीवी वर्ग को पालने-पोसने में फ्रीबीज यानी रेबड़ी कल्चर बड़ी भूमिका निभा रहा है। मुफ्त की सरकारी योजनाएं बड़ी युवा और कामकाजी आबादी को निकम्मा बना रही हैं। ऐसे में लोक कल्याणकारी राज्य की दुहाई देने की जगह... उस मैकेनिज्म पर गंभीरता से काम होना चाहिए, जिससे खाली बैठी युवा आबादी को ज्यादा से ज्यादा Skilled बनाया जा सके और उनकी क्षमताओं का इस्तेमाल देश निर्माण में किया जा सके। कार्यक्रम की शुरुआत में हमने Gold का जिक्र किया। गोल्ड को भी समय-समय पर चमकाने की जरूरत पड़ती है। जिस तेजी से साथ दुनिया में तेजी से बदलाव हो रहा है। हर सेक्टर का स्वरूप बदल रहा है, उसमें समय-समय पर युवा शक्ति की Skills को भी चमकाने की जरूरत है।


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