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Mahilaon Ka Agnipath : हिंसा की आड़ में महिलाओं को सॉफ्ट टारगेट बनाने वाली मानसिकता से कब मिलेगी आजादी ?

Mahilaon Ka Agnipath : पिछले ढाई महीने से मणिपुर (Manipur Crisis) के हालात कैसे हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। लेकिन, वहां के एक वायरल वीडियो ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और बुलंद गणतंत्र का सिर झुका दिया। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान एक महिला प्रत्याशी का आरोप है कि उसे […]

Mahilaon Ka Agnipath : पिछले ढाई महीने से मणिपुर (Manipur Crisis) के हालात कैसे हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। लेकिन, वहां के एक वायरल वीडियो ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और बुलंद गणतंत्र का सिर झुका दिया। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान एक महिला प्रत्याशी का आरोप है कि उसे निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया। आरोप सीधे-सीधे टीएमसी कार्यकर्ताओं पर है। ये भी विचित्र स्थिति है कि इतनी जघन्य और शर्मनाक घटना के बाद राजनीति इसका वीडियो, उसका वीडियो पर आ गई है। वायरल वीडियो का फ्रेम टू फ्रेम विश्लेषण पीड़ित महिलाओं के साथ एक तरह का अन्याय है। लेकिन, इतने गंभीर मुद्दे पर चुप्पी साध लेना, उससे भी बड़ा गुनाह है। जिस देश में नवरात्रि में कन्या पूजन की परंपरा है। जहां देवी में शक्ति का वास बताया जाता है। उसी भारतवर्ष में हिंसा या दंगा की स्थिति में महिलाएं सॉफ्ट टारगेट क्यों बनती हैं? जिस मणिपुर के निर्माण में वहां की महिलाओं का बड़ा योगदान माना जाता है जहां की संघर्षशील महिलाएं सूबे में कई आंदोलनों की अगुवा रहीं, जहां की महिलाओं ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल एक्ट के खिलाफ प्रचंड प्रदर्शन से पूरी दुनिया को हैरान कर दिया, जहां की मैरी कॉम के मुक्के का दम पूरी दुनिया ने देखा है। जहां की इरोम चानू शर्मिला ने 16 साल तक भूख हड़ताल किया। जहां के जर्रे-जर्रे से राधा-कृष्ण के प्रेम की धुन निकलती है, जहां की रासलीला के मंचन में कृष्ण से ज्यादा रोल राधा का रखा जाता है वहां महिलाओं के ऐसा अनर्थ, ऐसा पाप क्यों ? क्या वहां की सामाजिक व्यवस्था के बीच महिलाओं को लेकर कोई फॉल्ट लाइन गुजर रही है ? देश के दूसरे हिस्सों में भी किसी भी तरह के खून-खराबे और हिंसा की स्थिति में पहला शिकार महिलाएं या बेटियां ही क्यों बनती हैं। ऐसे सभी सुलगते सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे आज अपने खास कार्यक्रम- महिलाओं का ‘अग्निपथ’ में। इसी मुद्दे पर देखिए न्यूज 24 की एडिटर-इन-चीफ अनुराधा प्रसाद के साथ स्पेशल शो 'महिलाओं का अग्निपथ'... महाभारत में जिक्र है कि कौरवों और पांडवों के बीच चौसर का खेल हुआ। इसमें पांडू पुत्रों में सबसे बड़े युधिष्ठिर, जिन्हें धर्मराज भी कहा जाता है। उन्होंने दांव पर अपनी पत्नी द्रौपदी को ही लगा दिया। एक से बढ़कर एक धर्म, नीति शस्त्र, शास्त्र में पारंगत लोगों से भरी धृतराष्ट्र की राजसभा में चीरहरण हुआ-तो द्रौपदी का। वो भी कोई साधारण महिला नहीं थी-एक राजा की बेटी थी । अपने समय के सर्वश्रेष्ठ धर्नुधर, गदाधर की पत्नी थी लेकिन, वहां भी तार-तार हुई तो एक महिला की अस्मत। पुरुषों की वर्चस्व की लड़ाई से लेकर सीमाओं के विस्तार की चाह में खून-खराबे की सबसे ज्यादा कीमत महिलाएं हजारों साल से चुकाती आ रही हैं। तलवारों की नोक पर जीते गए साम्राज्यों में महिलाओं के साथ किस तरह के अत्याचार होते थे..उनके साथ कैसा सुलूक होता था, इसकी गवाही इतिहास के पन्नों में दर्ज जौहर की घटनाएं भी देती हैं। जहां महिलाएं अपनी आन-बान-शान और अस्मत बचाने के लिए खुद को अग्नि के हवाले कर देती थीं। अगर किसी बात को लेकर सड़क पर दो सामान्य लोगों को बीच झगड़ा हो जाता है तो भी शक्ति प्रदर्शन के लिए एक-दूसरे की मां-बहन या बेटी को भद्दी गालियों के जरिए निशाना बनाया जाना बहुत मामूली बात है। आज की तारीख में महिला अधिकार, महिला सम्मान, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ जैसी बातें चाहे जितनी भी की जाए। पर एक बड़ा सच ये भी है कि महिलाओं को लेकर समाज के नजरिए में बड़ा बदलाव नहीं आया है। महिलाओं को सॉफ्ट टारगेट की तरह ही देखा जाता है। ऐसे में सबसे पहले बात मणिपुर की उस वीभत्स और शर्मनाक घटना की करते हैं। जिससे पूरा देश गुस्से में है और सियासत अपने तरीके से आगे बढ़ रही है । करीब तीस लाख आबादी वाला मणिपुर पिछले ढाई महीने से ऐसी आग में धधक रहा है। जिसमें इंसानियत सबसे ज्यादा जली । इंसानी रिश्ते तार-तार हुए, नफरत की इस ज्वाला में महिलाओं के साथ ऐसा जधन्य अपराध का एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ। जिसने पूरे देश को सन्न कर दिया है। लोग ये सोचने पर मजबूर हो गए क्या मणिपुर में दो समुदायों यानी कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी खूनी जंग में आदमी जानवर से भी बदतर बन चुका है। ये कैसा प्रतिशोध, ये कैसी वर्चस्व की लड़ाई, ये समुदायों के बीच कैसी हिंसा जिसमें महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराई गई। मणिपुर में हिंसा के दौरान का ऐसा वीडियो वायरल होते ही दिल्ली में सियासत उबाल मारने लगी। केंद्र में बीजेपी की सरकार है और मणिपुर में भी बीजेपी की। ऐसे में डबल इंजन सरकार को लेकर निशाना साधने का मौका विपक्षी पार्टियों को मिल गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुनहगार बख्शे नहीं जाएंगे। राजनीति अपने तरीके से आगे बढ़ती है। मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए जघन्य अपराध के वायरल वीडियो पर मंथन के बीच बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान एक महिला प्रत्याशी के साथ ऐसी शर्मनाक घटना सामने आई। जिसने भारतीय लोकतंत्र का सिर झुका दिया। महिला प्रत्याशी ने अपने साथ मार-पीट के बाद निर्वस्त्र कर गांव में परेड कराने का आरोप लगाया। राजनीति तेरा वीडियो, मेरा वीडियो। झूठ और सच में उलझी हुई है। लेकिन, हमारे समाज की कड़वी सच्चाई ये भी है कि मणिपुर हिंसा में शिकार बनी तो महिलाएं। बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान सॉफ्ट टारगेट बनी तो महिला उम्मीदवार। ऐसी कई शर्मनाक घटनाएं महिलाओं और बेटियों के साथ देश के दूसरे हिस्सों में भी हुईं। भले ही उन घटनाओं का चरित्र थोड़ा अलग रहा हो। समाज में हर अच्छी-बुरी घटना में राजनीति अपने लिए संभावना तलाशती रहती है। मणिपुर से बंगाल तक की घटनाओं को भी राजनीतिक दल अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं। पिछले ढाई महीने से जिस तरह मणिपुर जल रहा है। हिंसा की आग में हजारों की तादाद में परिवार विस्थापित हुए हैं। इसका सबसे अधिक खामियाजा मणिपुर की महिलाओं को उठाना पड़ रहा है, चाहे वो कुकी समुदाय से ताल्लुक रखती हों या फिर मैतेई समुदाय से। एक ओर महिलाओं के सामने भूख से बिलखते उनके बच्चे हैं, तो दूसरी ओर हिंसा की आग में कभी पति, कभी पिता तो कभी भाई के खोने का डर सताता रहता है। इतना ही नहीं, हिंसा की आड़ में इज्जत पर भी डाके का डर बना रहता है। ये सब उस मणिपुर में हो रहा है, जहां की महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील और संघर्षशील मानी जाती हैं। समाज में हर अच्छी-बुरी घटना में राजनीति अपने लिए संभावना तलाशती रहती है। मणिपुर से बंगाल तक की घटनाओं को भी राजनीतिक दल अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं। पिछले ढाई महीने से जिस तरह मणिपुर जल रहा है। हिंसा की आग में हजारों की तादाद में परिवार विस्थापित हुए हैं। इसका सबसे अधिक खामियाजा मणिपुर की महिलाओं को उठाना पड़ रहा है। चाहे वो कुकी समुदाय से ताल्लुक रखती हों या फिर मैतेई समुदाय से। एक ओर महिलाओं के सामने भूख से बिलखते उनके बच्चे हैं। दूसरी ओर हिंसा की आग में कभी पति कभी पुत्र कभी पिता कभी भाई के खोने का डर सताता रहता है। इतना ही नहीं, हिंसा की आड़ में इज्जत पर भी डाके का डर बना रहता है । ये सब उस मणिपुर में हो रहा है। जहां की महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील और संघर्षशील मानी जाती हैं । वहां की जीवट महिलाओं ने अंग्रेजों को भी झुकने पर मजबूर कर दिया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ही मणिपुरी पुरुषों से जबरन अवैतनिक मजदूरी कराए जाने के अंग्रेजों के आदेश का वहां की महिलाओं ने प्रचंड विरोध किया। जिसे देखते हुए अंग्रेजो को अपना आदेश वापस लेना पड़ा । साल 1939 में भी मणिपुर की महिलाओं ने एक और बड़ा आंदोलन छेड़ा। ये आंदोलन अंग्रेज एजेंट, मणिपुरी महाराजा, मारवाड़ी कारोबारियों के बीच आपसी सांठगांठ से चावल निर्यात के खिलाफ था। इससे मणिपुर के सामान्य लोगों की थाली से चावल गायब होता जा रहा था। क्षेत्र के ज्यादातर हिस्सों में भुखमरी जैसे हालात बने हुए थे । वहां की कृषि व्यवस्था में भी महिलाएं धुरी की भूमिका में रही हैं। मणिपुर की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को संचालित करने में वहां की महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में ये जानना भी जरूरी है कि आजादी के बाद मणिपुर के सामाजिक आंदोलन से लेकर राजनीतिक संघर्ष में महिलाएं कहां खड़ी हैं । मणिपुर की आर्थिक तरक्की में वहां की सामाजिक व्यवस्था में वहां की खेती-बाड़ी में महिलाएं धुरी की भूमिका में रही हैं। घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ बाहर की दुनिया को भी वहां की महिलाओं ने बहुत ही अच्छे से संभाला है। इंफाल का 'इमा कैथल' यानी मदर्स मार्केट पूरे भारत में अपनी तरह का इकलौता ऐसा बाजार है-जहां तमाम दुकानदार महिलाएं ही हैं। इतिहास गवाह रहा है कि 1970 के दशक में मणिपुर की महिलाओं ने किस तरह से शराब और नशीली दवाओं के खिलाफ मोर्चा खोला। रात में शराब की भट्ठियों और दुकानों को आग के हवाले करती थीं और शराब पीने वालों को सजा देती थी । इस समाज सुधार आंदोलन में शामिल ज्यादातर महिलाएं मैतेई समुदाय से ताल्लुक रखती थीं । जब मणिपुर में नागा विद्रोहियों ने अलग होने के लिए आवाज उठाई तो Armed Forces Special Power Act58 लाया गया। जब 1980 के दशक में पूरे मणिपुर में अफस्पा लागू कर दिया गया। मणिपुर का आम आदमी विद्रोहियों और सेना के बीच संघर्ष में पिसने लगा। जिसकी कीमत सबसे ज्यादा वहां की महिलाओं को चुकानी पड़ रही थी। ऐसे में अफस्पा कानून हटवाने के लिए इरोम शर्मिला ने भूख हड़ताल की जो पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। जो महीना-दो महीना नहीं 16 साल तक चली । वो साल 2004 का था और महीना अप्रैल का । पूरे मणिपुर में मनोरमा थांगजम नाम की महिला के साथ रेप और हत्या का मामला गूंज रहा था। ऐसे में मणिपुर की जुझारू महिलाओं ने असम राइफल्स के हेड क्वाटर्स पर निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया। मणिपुरी महिलाओं के ऐसे तेवरों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। पूरा दुनिया को ये सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि मणिपुर की जमीनी स्थिति क्या है? जब भी मणिपुरी महिलाओं की बात होती है- तो आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट के खिलाफ 16 साल तक भूख हड़ताल करने वाली इरोम शर्मिला का नाम जहन में जरूर आता है। पूरब के बाद अब बात उत्तर भारत की कर लेते हैं। जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है। लेकिन, इस क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं का दर्द भी कम नहीं है। 1980 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद किस तरह फैला ये किसी से छिपा नहीं है। पाकिस्तान की गहरी साजिश की सबसे ज्यादा कीमत जम्मू-कश्मीर की महिलाओं ने चुकाई है। कभी जान देकर, कभी इज्जत देकर, कभी विस्थापित हो कर। इसमें हिंदू भी हैं और मुसलमान भी। कश्मीर की महिलाओं और बेटियों ने एक अलग तरह का आतंकवाद झेला है। आतंकियों ने बंदूक का डर दिखा कर कश्मीर की महिलाओं को ढाल की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की तो सुरक्षाबलों से बचने के लिए महिलाओं और लड़कियों का इस्तेमाल संदेश भेजने से लेकर पत्थरबाजी तक में किया। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियां भी महिलाओं को शक की नज़रों से देखती हैं। इसी तरह सुरक्षा एजेंसियों के सर्च ऑपरेशन के दौरान भी महिलाओं को एक अलग तरह का दर्द झेलना पड़ता है। मणिपुर की जीवट महिलाओं ने अंग्रेजों को भी झुकने पर मजबूर कर दिया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ही मणिपुरी पुरुषों से जबरन अवैतनिक मजदूरी कराए जाने के अंग्रेजों के आदेश का वहां की महिलाओं ने प्रचंड विरोध किया, जिसे देखते हुए अंग्रेजों को अपना आदेश वापस लेना पड़ा था। साल 1939 में भी मणिपुर की महिलाओं ने एक और बड़ा आंदोलन छेड़ा था। ये आंदोलन अंग्रेज एजेंट, मणिपुरी महाराजा, मारवाड़ी कारोबारियों के बीच आपसी सांठगांठ से चावल निर्यात के खिलाफ था। इससे मणिपुर के सामान्य लोगों की थाली से चावल गायब होता जा रहा था। क्षेत्र के ज्यादातर हिस्सों में भुखमरी जैसे हालात बने हुए थे। वहां की कृषि व्यवस्था में भी महिलाएं धुरी की भूमिका में रही हैं। मणिपुर की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को संचालित करने में वहां की महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में ये जानना भी जरूरी है कि आजादी के बाद मणिपुर के सामाजिक आंदोलन से लेकर राजनीतिक संघर्ष में महिलाएं कहां खड़ी हैं। कुछ समय पहले की बात है। दिल्ली में महिला उत्पीड़न के खिलाफ कुछ महिलाएं और छात्राएं प्रदर्शन कर रही थीं। ऐसे में एक प्रदर्शनकारी महिला ने कहा कि रेप एक ऐसी संस्कृति है, जिससे पुरुषवादी समाज ने महिलाओं को काबू में करने के लिए इजात किया है। मेरे हिसाब से किसी महिला के साथ अत्याचार या उत्पीड़न जानवरों से भी बदतर हैवानों की एक बहुत ही घृणित और कुंठित मानसिकता है। जो सामाजिक व्यवस्था में किसी भी हलचल के दौरान बाहर आने लगती है । सबसे पहले महिलाओं को कमजोर समझ कर अपना शिकार बनाने की कोशिश करती है अगर ऐसा न होता तो National Crime Record Bureau के आंकड़ों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में लगातार बढ़ोतरी नहीं होती। 2020 से 2021 के बीच 15.3% महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले में बढ़े हैं। रोजाना रेप के 84 केस दर्ज होते हैं । अगर इसे दूसरी तरह से देखा जाए तो पिछले आधे घंटे से आप ये कार्यक्रम देख रहे हैं-उतनी देर में देश के किसी न किसी हिस्से में दो महिलाओं से रेप के केस दर्ज हो चुके होंगे। तीन घंटे की मूवी जितनी देर में खत्म करते हैं। उतनी देर में देश के किसी न किसी पुलिस स्टेशन में 10 से ज्यादा महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के केस रजिस्टर हो चुके होते हैं । महिलाओं को कदम-कदम पर एक अलग तरह की महाभारत लड़नी पड़ती है। संभवत:, इसलिए युवा गीतकार आलोक श्रीवास्तव एक अजन्मी बेटी के दर्द को शब्दों की गहराई में उतारने की कोशिश करते हैं– आलोक अपने गीत में लिखते हैं-

नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा

नज़र आता है डर ही डर, तेरे घर-बार में अम्मा नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा यहां तो कोई भी रिश्ता नहीं विश्वास के क़ाबिल सिसकती हैं मेरी साँसें, बहुत डरता है मेरा दिल समझ आता नहीं ये क्या छुपा है प्यार में अम्मा नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा मुझे तू कोख में लाई, बड़ा उपकार है तेरा तेरी ममता, मेरी माई, बड़ा उपकार है तेरा न शामिल कर जनम देने की ज़िद, उपकार में अम्मा नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा. उजाला बनके आई हूं जहां से मुझको लौटा दे तुझे सौगंध है मेरी, यहां से मुझको लौटा दे अजन्मा ही तू रहने दे मुझे संसार में अम्मा नहीं आना मुझे इतने बुरे संसार में अम्मा ये एक गीतकार की कल्पना है। कभी बेटियों के साथ कवि मन ज्यादती देखता है- तो ऐसे दर्द भरे गीत के जरिए समाज को सचेत करने की कोशिश करता है, तो कभी महिलाओं को शक्ति स्त्रोत के रूप में देखता है। लेकिन, एक बड़ा सच ये भी है कि बगैर बेटी के इस सृष्टि को बनाए और बचाए रखना भी नामुमकिन है। इसी देश में बेटियों को दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में पूजा जाता है।

समाज की सोच में भी बदलाव जरूरी

मणिपुर में कुकी-मैतेई समुदाय के बीच जारी झड़प के बीच महिलाओं के साथ हुई जघन्य और शर्मनाक घटना के दोषियों को कानून की किताब में लिखी सबसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन, महिलाओं को लेकर समाज की सोच में भी बदलाव आना बहुत ही जरूरी है। किसी भी छोटे-बड़े झगड़े में बात-बिना बात उन्हें निशाना बनाने वाली सोच और मानसिकता को बदलने की जरूरत है ? इसकी शुरुआत स्वयं से ही होनी चाहिए।

स्क्रिप्ट और रिसर्च: विजय शंकर 


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