NDA में शामिल होने की चर्चाओं के बीच RLD चीफ जयंत चौधरी की चुप्पी का राज क्या है?
जयंत चौधरी की पार्टी का एनडीए के साथ जाने की चर्चा है।
दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
RLD Chief Jayant Chaudhary in NDA news: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के विधान सभा में दिए गए भाषण के बीच जयंत चौधरी दो दिन से ट्रेंड कर रहे हैं और खबरों में बने हुए हैं। इसकी वजह पीएम-सीएम का भाषण नहीं है बल्कि जयंत के पाला बदलने की चर्चा आम है। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय लोकदल (RLD) चीफ जयंत INDIA गठबंधन से तलाक लेकर एनडीए के साथ प्यार में जीने-मरने की कसमें कहा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले शुरू हुई इस बहस के बीच यूपी में राष्ट्रीय लोकदल की मुख्य साझेदार समाजवादी पार्टी के लगभग हर बड़े नेता ने सफाई दे दी है कि जयंत कहीं नहीं जा रहे हैं, वे बस भाजपा को हराने का काम करेंगे।
उधर, जयंत ने इस मसले पर कुछ नहीं कहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उनकी अंतिम पोस्ट गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं उपलब्ध है। 19 जनवरी 2024 को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी गठबंधन की बधाई दी तो उसी ट्वीट को जयंत ने आगे बढ़ाया और कहा कि राष्ट्रीय संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर, हमारे गठबंधन के सभी कार्यकर्ताओं से उम्मीद है कि वे अपने क्षेत्र के विकास और खुशहाली के लिए कदम मिलाकर आगे बढ़ें। राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, यह सर्वविदित है। नेतागण इस सच से सामना भी कराते रहते हैं।
NDA में जाने की चर्चा अनायास ही नहीं
हाल ही में इंडिया गठबंधन की नींव रखने वाले नीतीश कुमार ने जब पाला बदला और NDA का हिस्सा बने तो एक बार यह बात फिर सही साबित हुई। अनेक उदाहरण मिलते हैं। यद्यपि, जयंत चौधरी को सुलझा हुआ नेता माना जाता है इसलिए भविष्य को भांपना उनके लिए मुश्किल नहीं है। वे पार्टी चला रहे हैं। उनके पिताजी भी हर सरकार में मंत्री रहे हैं। उनके एनडीए में जाने की चर्चा अनायास नहीं हो सकती है। अगर उन्हें अपना और दल का भविष्य एनडीए के साथ जाने में दिखेगा तो बिल्कुल जा सकते हैं। जानना रोचक होगा कि अगर जयंत पाला बदलते हैं तो उनकी क्या स्थिति बनेगी और नहीं बदलते हैं तो क्या बनने वाली है?
पीएम मोदी नहीं छोड़ेंगे कोई मौका
पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद में कुछ महत्वपूर्ण बातें कही हैं. एक-उनका गठबंधन इस चुनाव में 400 का आंकड़ा पार करेगा. दो-भाजपा अकेले 375 सीटें लेकर आएगी. पीएम ने जिन भी उद्देश्यों के यह बात कही हो लेकिन मतलब साफ है कि वे छोटे दलों को साथ लेकर चलने वाले हैं। वे विपक्ष को कमजोर करने वाला कोई भी फैसला लेने से परहेज नहीं करने जा रहे हैं। राम मंदिर के शोर के बीच यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ का विधान सभा में राम मंदिर, नंदी जी और कृष्ण को लेकर दिया गया बयान सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है। लेकिन यह सब वोट में ही तब्दील होने वाले फैक्ट हैं।
अखिलेश के बजाय NDA के साथ जाने में फायदा
जो बातें हवा में हैं-उसके मुताबिक समाजवादी पार्टी ने उन्हें अधिकतम सात सीटें देने के साथ ही इनमें से कुछ पर अपने प्रत्याशी उतारने की मंशा जताई है। जयंत सपा के समर्थन से राज्य सभा सदस्य हैं। लोकसभा चुनाव की जो स्थिति बनती दिख रही है, उसमें लड़ाई तगड़ी होने वाली है। सात में से चार सीटों पर अगर सपा के कैंडीडेट चुनाव लड़ेंगे तो तय है कि वे अपनी पार्टी का ही ख्याल रखेंगे। ऐसे में अगर बची हुई तीन सीटें रालोद जीत भी जाए तो लोकसभा में उसकी स्थिति बेहद कमजोर होगी। अगर जयंत एनडीए के साथ आते हैं तो जाट लैंड की 27 सीटों में चार-पांच सीटें उन्हें आसानी से मिल सकती हैं। सरकार बनने की स्थिति में एक-दो मंत्री पद भी हाथ लगना तय है। यूपी में रालोद विधायक मंत्री बन सकते हैं। ऐसे में जयंत के लिए यह फैसला मुफीद साबित हो सकता है।
दादा की जमीन पर फसल उगा रहे जयंत
जयंत युवा हैं, सुलझे हैं, उनका बेस पश्चिम उत्तर प्रदेश में है। दादा चौधरी चरण सिंह की बनाई जमीन पर ही वे भी फसल उगा रहे हैं। उन्हें ठीक से पता है कि देश की मौजूदा राजनीतिक सूरत में वे न तो यूपी में और न ही केंद्र में फिलहाल राष्ट्रीय लोकदल की सरकार बना सकते हैं। उन्हें किसी न किसी बड़े दल के साथ साझे की सरकार में ही शामिल होना होगा। इस बात से कोई नहीं इनकार कर सकता कि राजनीतिक दल के रूप में पार्टी को फंड चाहिए। जब दल की मौजूदगी सरकार या सरकारों में होती है तब और जब आप विपक्ष में होते हैं तब, चंदा की आवक में फर्क दिखाई देता है। अब वह समय रहा नहीं कि कार्यकर्ता घर से रोटी-प्याज बांधकर प्रचार करेगा और फिर रात को घर लौट जाएगा। पैसा चाहिए और हर हाल में यह जरूरत है।
जयंत चौधरी संभवतः इसीलिए चुप हैं क्योंकि उन्हें देश में राजनीतिक सूरत स्पष्ट दिखाई दे रही है। देखना रोचक होगा अगर वे एनडीए के साथ जाते हैं या इंडिया गठबंधन के साथ बने रहते हैं? उनकी चुप्पी इस मुद्दे को रहस्यमय बनाती है. जयंत इस बीच अपनों से भी नहीं मिल रहे हैं। बीते 5-6 दिनों से उनकी सेहत खराब बताई जा रही है, लेकिन अब पार्टी के कार्यकर्ता, पदाधिकारी भी मानने लगे हैं कि वे एनडीए में जा सकते हैं क्योंकि नुकसान सिर्फ यह है कि मुस्लिम वोट राष्ट्रीय लोकदल से दूरी बनाएगा और फायदा यह है कि केंद्र से लेकर यूपी तक में पार्टी सरकार में शामिल हो जाएगी।
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