Special: बैंकिंग सेक्टर ने कैसे लिखी भारत की तरक्की की बुलंद कहानी?
Anurradha Prasad, Editor in Chief News 24
नई दिल्ली: किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक तरक्की में पूंजी की बड़ी भूमिका होती है। पूंजी मुहैया कराने में मुल्क का बैंकिंग सेक्टर अहम भूमिका निभाता है। पिछले कुछ महीनों में हमने अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर में आए भूचाल की खबरें देखी। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के ईको-सिस्टम में चल रहे कई बड़े बैंक डूब गए। यूरोप के भी बैंकों का बड़ा बुरा हाल है, लेकिन भारत में तस्वीर दूसरी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सातवें रोजगार मेले में 70 हजार से ज्यादा युवाओं को जॉइनिंग लेटर बांटते हुए भारत के भीतर बैंकिंग सेक्टर की मजबूती पर बहुत जोर दिया। देखिए न्यूज 24 की एडिटर इन चीफ अनुराधा प्रसाद के साथ स्पेशल शो- 'कितने बदल गए भारतीय बैंक।'
पिछले 9 साल में बदल गई देश में बैंकिंग की तस्वीर
पीएम मोदी ने बताया कि पिछले नौ वर्षों में देश में बैंकिंग की तस्वीर कितनी बदल गई है। ऐसे में आज आपको देश के बैंकिंग सेक्टर में समय समय पर आते बदलावों से रू-ब-रू कराने का फैसला किया है। ये 100 % सच है कि अब लोगों को पैसा जमा करने और निकालने के लिए घंटों बैंकों के बाहर लंबी लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ता। ये भी सच है कि मोबाइल बैंकिंग के जरिए सैकंडों में पैसे का लेनदेन किया जा सकता है। ये भी सच है कि बिजनेस, पढ़ाई या दूसरी जरूरतों के लिए बिना बैंकों के चक्कर काटे आसानी से लोन मिल जाता है, लेकिन ये सब कैसे हुआ? देश के बैंकिंग सेक्टर के चाल, चरित्र और चेहरे में बदलाव की कहानी किन पड़ावों से गुजरते हुए इस मुकाम तक पहुंची है।
कितने बदल गए भारतीय बैंक ?
आज की तारीख में ऐसा बालिग युवा खोजना मुश्किल है जिसका बैंक में खाता न हो। ऐसे लोग खोजना भी मुश्किल है जिनके खाते से जुड़ी लेन-देन की जानकारी उनके मोबाइल फोन पर मैसेज के रूप में न पहुंचती हो। इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन रखने वाले लोग UPI के जरिए हमेशा अपना बैंक अपने साथ लेकर चलते हैं। ऐसे में पिछले तीस-चालीस वर्षों के दौरान पूरी दुनिया में तकनीक में आए बदलावों के साथ हमारे देश का बैंकिंग सेक्टर भी बदला है।
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कमजोर आदमी का भी देश के बैंकिंग सिस्टम से रिश्ता जोड़ा
2014 में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी ने जन-धन योजना के जरिए समाज के आर्थिक रूप से कमजोर से कमजोर आदमी का भी देश के बैंकिंग सिस्टम से रिश्ता जोड़ दिया। पीएम मोदी अपने चिर परिचित अंदाज में कह रहे हैं कि पिछली सरकारों में बैंकिंग घोटाला हुआ और हमने 2014 के बाद बैंकिंग इंडस्ट्री को फिर से खड़ा करने की कोशिश की। ऐसे में सबसे पहले ये समझने की कोशिश करते हैं कि पिछले एक दशक में हमारा बैंकिंग सिस्टम कितना बदला है?
मोबाइल बैंकिंग से पैसा ट्रांसफर
पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने एक बयान में कहा था कि भारत उन देशों में शामिल है जहां बैंकिंग इंडस्ट्री सबसे मजबूत मानी जाती है, लेकिन 9 साल पहले ऐसे हालात नहीं थे। पिछली सरकार के दौरान हमारे बैंकिंग क्षेत्र ने बड़े पैमाने पर विनाश देखा है। आज हम डिजिटल लेनदेन करने में सक्षम हैं। उनका कहना था कि ये 100 फीसदी सच है कि पिछले 9 साल में भारत में बैंकिंग का तौर-तरीका बहुत हद तक बदल चुका है। लोग मोबाइल बैंकिंग के जरिए धड़ल्ले से लेन-देन कर रहे हैं। चाय की दुकान से लेकर सब्जी मंडी तक में मोबाइल के जरिए पेमेंट लिया जा रहा है। रोजमर्रा के बिल चुकाने का काम UPI की मदद से कुछ सेकेंड में पूरा हो जाता है। इससे लोगों की जिंदगी बहुत ही आसान हुई है ।
डिजिटल लेनदेन को 9 साल पहले लोग असंभव मानते थे
प्रधानमंत्री मोदी 'सबका साथ, सबका विकास' के एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। ऐसे में उन्होंने समाज के आखिरी आदमी तक सरकारी योजनाओं का फायदा पहुंचाने के लिए मजबूत बैंकिंग सिस्टम को माध्यम बनाया। जनधन योजना के जरिए गरीबों के खाते खुलवाए। सरकारी मदद सीधे जरूरत मंदों के खाते तक पहुंचाने का मजबूत मैकेनिज्म तैयार कराया। नतीजा ये रहा कि किसान सम्मान निधि का पैसा हो या रसोई गैस पर सब्सिडी, सभी जरूरतमंदों के खाते में राशि पहुंचने लगी।
बैंकिंग एक्सपर्ट अश्विनी राणा ने हाल में आए रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हुए कहा कि देश में बैंकों का घाटा यानी NPA कम हुआ है और बैंक पहले की तुलना में ज्यादा लोगों को कर्ज बांट रहे हैं। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में देश के बैंकिंग सिस्टम को और पारदर्शी बनाने की दिशा में कई बड़ी पहल हुई है।
पिछले 10 साल में बैंकों का NPA निचले स्तर पर आ गया है
आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 साल में बैंकों का NPA निचले स्तर पर आ गया है। मार्च 2023 की तिमाही में NPA घटकर 3.9 फीसदी तक आ गया है और अगले साल तक इसके 3.6 प्रतिशत पर आ जाने का अनुमान है। इस आंकड़े को देश के बैंकिंग सेक्टर की सेहत के बेहतर संकेत के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पीएनबी घोटाला, यस बैंक में उथल-पुथल और पंजाब एंड महाराष्ट्र बैंक जैसे उदाहरण भी सामने आए हैं। ऐसे में बैंकों में लोगों का भरोसा बढ़ाने के लिए जमाकर्ताओं को 5 लाख रुपये तक की गारंटी मिलती है, लेकिन भारत के बैंकिंग सेक्टर में बदलाव की कहानी समझने के लिए हमें कैलेंडर को पलटते हुए 75 साल पीछे ले जाना होगा।
1947 से 1955 के बीच देश में 361 प्राइवेट बैंक डूब गए
1947 से 1955 के बीच देश में 361 प्राइवेट बैंक डूब गए। हर साल करीब 40 बैंक डूब रहे थे। ग्राहकों के पैसे का कोई खैरख्वाह नहीं था। हालत ऐसे रहे कि किसानों और छोटे कामगारों को नहीं के बराबर कर्ज मिल रहा था। 1967 के आंकड़ों के मुताबिक, ये बैंक कुल लोन का सिर्फ 2.2% हिस्सा किसानों को दे रहे थे। सरकार का तब तक सिर्फ एक ही बैंक था वो था- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, जिसे 1955 तक इम्पीरियल बैंक कहा जाता था।
1955 को इंपीरियल बैंक का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हो गया
बात 1952 की है। इस दौर में एडी गोरवाला कमेटी का गठन किया गया, जिसे बताना था कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि इंपीरियल बैंक को बंद करने से कोई नुकसान न हो। तब भारतीयों के सबसे ज्यादा खाते इसी बैंक में थे। बहुत गुना- भाग के बाद 1955 में पार्लियमेंटरी एक्ट के तहत इंपीरियल बैंक का अधिग्रहण किया गया। 30 अप्रैल 1955 को इंपीरियल बैंक का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हो गया। इसके बाद 1 जुलाई 1955 को एसबीआई की स्थापना की गई।
1969 में इंदिरा सरकार ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फैसले पर मुहर लगाई थी
14 जुलाई 1969 में इंदिरा सरकार ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फैसले पर मुहर लगाई थी। उस वक्त के लिहाज से ये बेहद साहसिक फैसला था। कांग्रेस के भीतर बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर आम सहमति नहीं थी। सबसे मुखर विरोध तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई कर रहे थे। इंदिरा सरकार ने प्राइवेट बैंकों की हालत सुधारने से बेहतर समझा कि इन्हें अपने कब्जे में ही ले लिया जाए। इस फैसले के जितने आर्थिक कारण थे उतने ही राजनीतिक कारण भी था। उस वक्त कांग्रेस दो हिस्सों में बंटने को तैयार थी।
90 के दशक में दुनिया में तेजी से बदलाव आया
90 के दशक में दुनिया तेजी से बदल रही थी। वैश्वीकरण और उदारीकरण की हवा के तेज झोंके भारत तक पहुंचने लगे।ऐसे में देश का बैंकिंग सेक्टर भी बड़े बदलाव की मांग कर रहा था। तब पीएम की कुर्सी पर पीवी नरसिम्हा राव थे और वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह। शुरुआती दौर में कांग्रेस सरकार ने छोटे-छोटे बैंकों को लाइसेंस देकर बैंकिंग सेक्टर में सुधार की प्रक्रिया शुरू की। इसके जरिये विदेशी बैंकों, सरकारी बैंकों और प्राइवेट बैंकों को साथ मिलाकर विकास की एक नई कहानी गढ़ने की पहल की गई। बैंकिंग एक्सपर्ट अश्विनी राणा के अनुसार NPA के बोझ तले बैंक त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे थे। ऐसे भंवर से सरकारी बैंकों को निकालने के लिए ठोस मैकेनिज्म तैयार हुआ। जिससे घाटे में चलने वाले बैंक मुफाना कमाने लगे। पहले ही बैंकिंग सेक्टर में सुधार के लिए एम नरसिंहम की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी बैंकों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए समिति ने सुझाव दिया कि सरकार और रिजर्व बैंक को सरकारी और प्राइवेट बैंकों को एक चश्मे से देखना चाहिए।
अप्रैल 2020 में देश के 10 सरकारी बैंकों का विलय हुआ
अप्रैल 2020 में देश के 10 सरकारी बैंकों का विलय कर चार में बदल दिया। प्राइवेट सेक्टर के बैंक भी मर्जर में ताकत देख रहे हैं । ग्राहकों का ज्यादा भरोसा देख रहे हैं। संभवत: इसी सोच के साथ एक जुलाई को HDFC फाइनेंस का भी HDFC बैंक में विलय हो गया। भारत की तरक्की की कहानी का जब भी पन्ना पलटा जाएगा। उसमें बैंकों की भूमिका बहुत चमकदार दिखेगी। आजादी के बाद बैंकिंग सेक्टर को अपने तरीके से मजबूत करने में न पंडित नेहरू ने कोई कसर छोड़ी न इंदिरा गांधी ने न नरसिम्हा राव ने न मनमोहन सिंह और न ही मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। बस समय के साथ बैंकिंग का तरीका बदलता रहा है। अब मोबाइल पर ही एक क्लिक में लाखों का लोन मिनटों में आपके खाते में ट्रांसफर हो जाता है। आज की तारीख में बहुत से ऐसे खाताधारक भी मिल जाएंगे जिन्होंने अपने बैंक की ब्रांच का मुंह नहीं देखा होगा। आने वाले दिनों में जिस तेजी से साथ तकनीक आगे बढ़ेगी उसका असर देश के बैकिंग सेक्टर में भी दिखना तय है। लेकिन, खाताधारकों को साइबर फ्राड से बचाने के लिए अभी बहुत काम करने की जरूत है। आज के इस लेख में बस इतना ही। फिर अगली बार मिलेंगे किसी ऐसे मुद्दे के साथ, जिसे जानना और समझना आपके लिए बहुत जरूरी होगा।
स्क्रिप्ट और रिसर्च: विजय शंकर
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