कहां बनती है मतदान के बाद उंगली पर लगने वाली स्याही, 28 देशों में सप्लाई की जाती, इतिहास काफी रोचक
Election Ink: वोट डालने के बाद उंगली पर लगी स्याही के साथ सेल्फी आपने भी जरूर ली होगी। किसी भी चुनाव में वोटिंग के बाद अंगुली पर एक स्याही लगा दी जाती है, जिससे वोट कर चुका शख्स दोबारा मतदान न कर पाए। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि यह स्याही कहां बनती है और इसका क्या इतिहास है। यह स्याही कैसे बनाई जाती है और क्या इसे कोई भी बना सकता है। आपके मन में ऐसे कई सारे सवाल होंगे। तो, आइए जानते हैं आपके सारे सवालों के जवाब।
देश में एक मात्र कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड कर्नाटक सरकार की पीएसयू है, जिसके पास इस स्याही को बनाने का अधिकार है और साल 1962 के बाद से लेकर अब तक हुए देश के सभी चुनावों में इसी फैक्ट्री से तैयार हुई स्याही का इस्तेमाल किया गया है।
क्या है कंपनी का इतिहास
इस कंपनी की शुरुआत मैसूर के बडियार महाराजा कृष्णदेवराज ने वर्ष 1937 में की थी। इस अमिट स्याही बनाने वाली कंपनी एमपीवीएल का इतिहास वाडियार राजवंश से जुड़ा है। इस राजवंश के पास खुद की सोने की खान थी। कर्नाटक के मैसूर में वाडियार राजवंश का राज था। महाराजा कृष्णराज वाडियार आजादी से पहले यहां के शासक थे। वाडियार ने साल 1937 में पेंट और वार्निश की एक फैक्ट्री खोली, जिसका नाम मैसूर लैक एंड पेंट्स रखा। जिस समय देश आजाद हुआ यह फैक्ट्री कर्नाटक सरकार के पास चली गई। इसके बाद वर्ष 1989 में इस फैक्ट्री का नाम मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड रख दिया गया। इसी फैक्ट्री को एनपीएल ने अमिट स्याही बनाने का ऑर्डर दिया था। यह फैक्ट्री आज तक यह स्याही बना रही है।
कैसे बनती है यह अमिट स्याही
इस स्याही को बनाने के लिए कौन सा केमिकल या नेचुरल कलर इस्तेमाल होता है, इसे पूरी तरह से गोपनीय रखा जाता है या ये कहें कि खुद चुनाव आयोग केमिकल कंपोजिशन तैयार कर फैक्ट्री को देता है। इस स्याही को जैसे ही उंगलियों पर नाखून और चमड़े पर लगाया जाता है, उसके 30 सेकंड्स में ही इसका रंग गहरा होने लगता है। इसको लेकर कंपनी का दावा है कि एक बार उंगलियों पर लगने के बाद आप चाहे जितनी कोशिश कर लें ये स्याही हट नहीं सकती है।
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कई देशों के लोग करते हैं इस्तेमाल
एमपीवीएल की बनी अमिट स्याही का प्रयोग सिर्फ भारत में ही नहीं होता। बल्कि, दुनियाभर के कई सारे देश एमपीवीएल से यह अमिट स्याही खरीदते हैं और अपने यहां चुनावों में इसका उपयोग करते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 28 देश एमपीवीएल से यह स्याही खरीदते हैं। इन देशों में दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, मलेशिया, मालदीव, कंबोडिया, नेपाल, घाना, पापुआ न्यू गिनी, अफगानिस्तान, तुर्की, नाइजीरिया, बुर्कीना फासो, बुरुंडी, टोगो और सिएरा लियोन भी शामिल हैं।
पहली बार कब हुआ था प्रयोग
पहली बार वर्ष 1962 में हुए चुनावों में एमपीवीएल कंपनी द्वारा बनाई इस अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया। तब से लगातार इस स्याही का उपयोग चुनावों में हो रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस स्याही का निशान 15 दिनों से पहले नहीं मिटता है।
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