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लड़ाकू विमान MiG-21 को आखिरी सलाम, एयरफोर्स चीफ ने उड़ाकर दी विदाई, पढ़ें 62 साल के शौर्य की कहानी

MiG-21 Fighter Jet Farewell: भारतीय वायुसेना से आज लड़ाकू विमान मिग-21 की सेवाएं खत्म हो गई हैं और एयरफोर्स चीफ ने फाइटर जेट को आखिरी बार उड़ाकर इसे अंतिम विदाई दी. इस दौरान देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद रहे.

1963 से लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना में सेवाएं दे रहे हैं.

Bids Farewell to MiG 21: भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान MiG-21 आज विदा हो गए. सुबह 11 बजे चंडीगढ़ एयरपोर्ट से लड़ाकू विमान ने आखिरी बार उड़ान भरी. खुद एयरफोर्स चीफ AP सिंह ने 23 स्क्वाड्रन के 6 फाइटर जेट के साथ उड़ान भरी और इस फ्लाई पास्ट में स्क्वाड्रन लीडर प्रिया शर्मा ने भी हिस्सा लिया. इसके साथ ही भारतीय वायुसेना में MiG-21 की सेवाएं खत्म हो गईं. वहीं विमान की जगह तेजस LCA मार्क-1A लेगा. MiG-21 के विदाई समारोह में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, CDS अनिल चौहान समेत तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने शिरकत की.

MiG-21 कब बना भारतीय वायुसेना का हिस्सा?

बता दें कि लड़ाकू विमान MiG-21 भारतीय वायुसेना की 'रीढ़ की हड्डी' कहलाता है. यह भारत का पहला सुपरसोनिक फाइटर जेट था, जिसे भारत में उस समय के रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन लेकर आए. 1961 में रूस और भारत के बीच MiG-21 सीरीज के विमानों को लेकर डील हुई थी. 1962 में एयरफोर्स में विमानों की 2 स्क्वाड्रन शामिल हुईं. अप्रैल 1963 में पहली बार इंडियन एयरफोर्स में विमान को कमीशन किया गया. 1967 से MiG-21 को भारत में ही असेम्बल किया जा रहा था भारतीय कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को यह जिम्मेदारी मिली हुई थी. 1980 तक भारत ने 872 MiG-21 लड़ाकू विमान खरीदे, जिनमें से करीब 400 हादसे का शिकार हुए. हादसों के कारण इन विमानों का अब कम इस्तेमाल किया जा रहा था.

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1965 की जंग से ऑपरेशन सिंदूर तक दी हैं सेवाएं

बता दें कि MiG-21 फाइटर जेट ने 1965 में भारत और पाकिस्तान के युद्ध से लेकर पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर तक में सेवाएं दी. आखिरी समय में इस फाइटर जेट ने पाकिस्तान के F-16 लड़ाकू विमान को ढेर किया था. पहले फाइटर जेट को ऊंचाई वाले इलाकों में दुश्मन का विनाश करने के लिए इस्तेमाल किया गया, लेकिन बाद में जमीनी हमले के लिए इस्तेमाल किया गया. यह विमान ध्वनि की स्पीड (332 मीटर प्रति सेकेंड) से भी ज्यादा तेज गति से उड़ सकता है. इसकी रफ्तार मैक-2 की स्पीड तक पहुंच जाती है. इसलिए यह कुछ सेकंड में ऊंचाई पर पहुंचने में सक्षम है.

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इन ऑपरेशन में MiG-21 ने दिखाया अदम्य साहस

बता दें कि MiG-21 लड़ाकू विमान ने सबसे पहले 1965 में भारत और पाकिस्तान की जंग में हिस्सा लिया था. पाकिस्तानी वायुसेना के अमेरिकी फाइटर जेट को ढेर किया था. 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में विमान ने पाकिस्तान के कई एयरबेस तबाह किए थे. 1999 के कारगिल युद्ध में विमान ने रात में उड़ान भरकर कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों पर बने दुश्मन के ठिकाने तबाह किए थे. साल 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक करते समय ग्रुप कैप्टन अभिनन्दन वर्धमान ने मिग-21 बायसन से उड़ान भरी थी और पाकिस्तान के लड़ाकू विमान F-16 विमान को ढेर किया था. साल 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी मिग-21 में उड़ान भरकर पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकाने ध्वस्त किए गए थे.

MiG-21 क्यों कहलाते हैं 'उड़ता ताबूत'?

बता दें कि 62 साल में 400 से ज्यादा लड़ाकू विमान हादसे का शिकार हुए, जिसमें 200 से ज्यादा पायलट शहीद हुए. इसलिए MiG-21 लड़ाकू विमान को ‘उड़ता ताबूत’ और ‘विडो मेकर’ कहा जाता है. हादसे का कारण यह है कि विमान करीब 60 साल पुराना हो चुका है तो इसकी टेक्नोलॉजी भी पुरानी हो चुकी है, जिस वजह से इसके कलपुर्जे बूढ़े हो गए हैं, जिनका रख-रखाव करना अब मुश्किल था.


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