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G-20 Summit 2023: भारत मंडपम में ‘नटराज’ भी करेंगे विदेशी मेहमानों का स्वागत, लगाई गई 22 फीट ऊंची प्रतिमा

G-20 Summit 2023: भगवान शिव के नटराज रूप की 22 फीट ऊंची प्रतिमा जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए बनाए गए भारत मंडपम में लगाई जा चुकी है। प्रतिमा के लिए 6 फीट ऊंचा चबूतरा भी बनाया गया है। ऐसे में कुल मिला कर ऊंचाई 28 फीट हो गई है। ये प्रतिमा तमिलनाडु के स्वामीमलाई जिले […]

Statue of Natraj
G-20 Summit 2023: भगवान शिव के नटराज रूप की 22 फीट ऊंची प्रतिमा जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए बनाए गए भारत मंडपम में लगाई जा चुकी है। प्रतिमा के लिए 6 फीट ऊंचा चबूतरा भी बनाया गया है। ऐसे में कुल मिला कर ऊंचाई 28 फीट हो गई है। ये प्रतिमा तमिलनाडु के स्वामीमलाई जिले के कलाकारों ने बनाई है।

कांसे समेत कई अन्य धातुओं से बनती हैं प्रतिमाएं

यहां पर बता दें कि जिले के कलाकार पीढ़ी दर पीढ़ी नटराज और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाते आ रहे हैं।चोल वंश के शासन काल से स्वामीमलाई जिले में कांसे, तांबे, पीतल, पंचधातु और अष्टधातु से मूर्तियां/प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। चोलवंश के काल में यहां की मूर्तिकला अपने चरम पर थी।

प्रतिमा बनाने में इस्तेमाल हुई है कावेरी नदी की मिट्टी

दिल्ली के प्रगति मैदान में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के लिए बनाए गए भारत मंडपम में ये नात्ताज भी शोभित हो चुके हैं। मोम, राल, कावेरी नदी की मिट्टी और लोहे की तारों से नटराज बनाए गए हैं। इसमें अष्टधातू का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें तांबा, जिंक, लेड यानी शीशा, टीन ट्रेस क्वांटिटी, चांदी, पारा ट्रेस क्वांटिटी और लोहे का इस्तेमाल किया गया है। [caption id="attachment_330852" align="alignnone" ] नटराज की  विहंगम प्रतिमा[/caption]

बेहद आकर्षक बनी है नटराज की प्रतिमा

कलाकारों के मुताबिक, इस धातु को 1000 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पिघलाया जाता है। प्रतिमा बनाने की प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है। भारत मंडपम के लिए बनाई गई नटराज की प्रतिमा को बहुत सुंदर और आकर्षक बनाया गया है। इसे बनाने वाले कलाकारों का कहना है कि स्वामीमलाई के मूर्ति निर्माण इतिहास में आज तक इतने विशाल और ऊंचे नटराज नहीं बनाए गए हैं। [caption id="attachment_330850" align="alignnone" ] प्रगति मैदान में लगी नटराज की प्रतिमा[/caption] यहां बनाई जाने वाली मूर्तियों/प्रतिमाओं की विशेष बात यह है कि ये भारत के प्राचीन शिल्प शास्त्र ग्रंथों के नियमानुसार बनाई जाती हैं। इसके साथ ही 1100 से साल भी ज्यादा पुरानी विरासत कलाकार अपनी अगली पीढ़ी को सौंपते आए रहे हैं। यही वजह है कि यह कला आज जिंदा है।


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