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Explainer: क्या है Gen-Z का EVM ट्रैकर? एक क्लिक में मिलेगा 65 हजार ईवीएम का ट्रैकिंग डाटा

चुनाव आयोग के लिए दो Gen-Z वरदान साबित होते दिख रहे हैं। केरल के दो छात्रों ने ईवीएम ट्रैक नामक सॉफ्टवेयर तैयार किया है। केरल के स्थानीय चुनाव के लिए इसके प्रयोग को चुनाव आयोग ने मंजूरी दे दी है। एक क्लिक में यह ईवीएम को ट्रैक कर लेगा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

Gen-G EVM

बिहार चुनाव में एक मतदान केंद्र से ईवीएम की हेरा फेरी की शिकायत सामने आई थी। इससे पहले भी कई बार ईवीएस से छेड़छाड़, ईवीएम को बिना अनाधिकारिक रूप से कहीं ले जाने की शिकायतें सामने आती रही हैं लेकिन अब इन सभी शिकायतों पर ब्रेक लग सकता है।

इन दिनों चर्चा में चल रहे Gen-Z ने कमाल कर दिया। चुनाव आयोग के सबसे बड़े काम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को मैनेज करना, को बेहद आसान कर दिया है। अब ईवीएम का लेखा जोखा रखने के लिए पेन पेपर की छुट्टी हो गई है। एक सॉफ्टवेयर की मदद से एक क्लिक पर 65 हजार ईवीएम मशीन को ट्रैक कर सकेंगे। इससे चुनाव आयोग के अधिकारियों को काफी मदद मिलेगी। एक बार में सभी ईवीएम मशीन की लोकेशन, बनाने की तारीख, मैंटीनेंस जैसी जानकारी सामने आ जाएगी।

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बता दें कि केरल में स्थानीय चुनाव होने वाले हैं। इसके लिए 'ईवीएम ट्रैक' नामक साफ्टवेयर के प्रयोग को मंजूरी मिल गई है। 3 सफल ट्रायल के बाद राज्य चुनाव आयोग ने डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू कर दिया है। 'ईवीएम ट्रैक' सिस्टम को तिरुवनंतपुरम निवासी 19 साल के बीटेक स्टूडेंट आशिन सी अनिलि और कोडकारा निवासी जेसविन सुंसी ने मिलकर बनाया है।

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ईवीएम सलाहकार और ट्रेनर एल सूर्यनारायणन ने प्रोजेक्ट तैयार करने में दोनों छात्रों की काफी मदद की। प्रोजेक्ट पर बात करते हुए सूर्य नारायण ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक ईवीएम के लिए एक शेयर डेटाबेस तैयार करना था। बताया कि निर्माण की तारीख जैसी छोटी-छोटी जानकारियां जुटाना मुश्किल था। पहले स्तर की जांच के दौरान, हमने बारकोड स्कैन किए और प्राथमिक डेटाबेस तैयार किया। इस स्तर के बाद ही मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। आगे बताया कि केरल में त्रि-स्तरीय चुनाव प्रणाली लागू है, इसलिए दोनों को अलग-अलग लाइनें बनानी पड़ीं और फिर उन्हें एकीकृत करना पड़ा।

ईवीएम ट्रैक सिस्टम अब राज्य चुनाव आयोग को हैदराबाद से मशीनों के आने के समय से ही उनकी निगरानी करने की सुविधा देगा। आशिन ने बताया कि किसी जिले या पंचायत में ईवीएम की आवाजाही पर तुरंत नजर रखी जा सकती है। जिन कामों के लिए पहले कागज-कलम की जरूरत होती थी, अब वे दो क्लिक में हो सकते हैं।

शुरुआत में यह सॉफ्टवेयर आवंटन और आवाजाही पर नजर रखने जैसी साधारण सुविधाओं पर केंद्रित था। फिर मतदान के दिन निगरानी सहित एक संपूर्ण प्रणाली में विस्तारित हो गया। सूर्यनारायणन ने कहा कि अब हम यह पता लगा सकते हैं कि कौन सी मशीन काम करना बंद कर चुकी है, उसे किससे बदला गया है, और कौन सा स्टॉक आसानी से उपलब्ध है।

कमाल की है बात है कि दोनों छात्र आशिन सी अनिलि और जेसविन सुंसी पहली बार वोट डालेंगे। इसी बीच राज्य चुनाव आयोग पहली बार ईवीएम के लिए एक ट्रैकिंग सिस्टम शुरू करने जा रहा है। एक प्रोजेक्ट 2 साल पहले चुनाव आयोग के सामने पेश किया गया था लेकिन तब तक अटका रहा।

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ईवीएम सलाहकार और ट्रेनर एल सूर्य नारायणन ने कहा कि इस प्रोजेक्ट का आईडिया 2 साल पहले चुनाव आयोग के सामने पेश किया गया था लेकिन किसी वजह से नहीं हो सका। बाद में उनकी मुलाकात एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के छात्रों आशिन और जेसविन से हुई। सूर्य नारायणन ने कहा कि दोनों बच्चों ने हैकथॉन और अन्य परीक्षों में बेहतर प्रदर्शन किया था। मुझे पता था कि यह एक बहुत बड़ा काम है, लेकिन उन्होंने इसे बेहद सरल तरीके से अंजाम दिया।

वहीं आशिन ने बताया कि उन्होंने तुरंत इस प्रोजेक्ट के लिए हां कर दी। इसके बाद पूरे जुनून के साथ महीनों तक उनकी रातें जागती रहीं। जेसविन ने बताया कि कैसे सूर्य नारायणन ने घंटों हर छोटी-बड़ी बात समझाने में बिताए ताकि उन्हें पूरी तरह से समझ आ जाए कि वे क्या बना रहे हैं। आशिन ने कहा कि हमने अपना पहला वोट भी नहीं डाला था। मुझे नहीं पता था कि बैलेट पेपर या कंट्रोल यूनिट क्या होता है। उन्होंने (सूर्य नारायणन) हमें सब कुछ सिखाया।


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