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‘असंवैधानिक, इंफॉर्मेशन एक्ट का उल्लंघन’; 7 पॉइंट में पढ़ें Electoral Bonds पर सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला

Electoral Bonds Supreme Court Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुना दिया है। पढ़ें CJI चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा?

नागरिकता संशोधन कानून पर CJI चंद्रचूड़ अहम फैसला सुना सकते हैं।
Electoral Bonds Supreme Court Verdict Highlights: इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। 7 साल बाद ही सही लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले विवाद सुलझ गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भाजपा की मोदी सरकार को झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को रद्द कर दिया है। इस पर बैन लगाया है। स्कीम को सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन बताया है। चीफ जस्टिस DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5-सदस्यीय पीठ ने फैसला सुनाया। पीठ में उनके अलावा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति BR गवई, न्यायमूर्ति JB पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी थे।

पढ़ें फैसले में क्या-क्या कहा गया?

1. चीफ जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने कहा कि केस में 2 अलग-अलग फैसले लिए गए हैं और दोनों सर्वसम्मति से लिए गए हैं। एक फैसला उन्होंने खुद लिया और दूसरा जस्टिस संजीव खन्ना ने लिया है। 2. CJI ने कहा कि चुनावी बॉन्ड राजनीति में काले धन के इस्तेमाल को रोकने का एकमात्र जरिया नहीं हो सकते। दूसरे विकल्पों पर विचार किया जा सकता था। 3. चुनावी बॉन्ड से सूचना के अधिकार का उल्लंघन होगा, जबकि नागरिकों को संविधान के तहत अधिकार है कि वे सरकार के आय स्त्रोतों के बारे में जानें। सरकार के पास पैसा कहां से आता है, यह जानने का उन्हें अधिकार है। 4. चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक हैं। अगर यह पारदर्शी स्कीम थी तो भाजपा सरकार को इसे संविधान के नियमों के अनुसार सदन में पेश करना चाहिए था। राज्यसभा में पेश करके प्रोसेस के साथ पास कराकर लोकसभा में पेश करना चाहिए था। चर्चा करके, आपत्तियां लेकर, सुझावों पर अमल करना चाहिए था। 5. देश की जनता को पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों को किस कंपनी ने फंड दिया है, ताकि वे अपने मताधिकार का इस्तेमाल पूरी स्पष्टता के साथ कर सकें। 6. चुनावी बॉन्ड के लिए आयकर कानून, जनप्रतिनिधित्व कानून, कंपनी एक्ट में साल 2017 में जो संशोधन किया गया, वह असंवैधानिक है। इनके कारण चुनावी बॉन्ड से मिले चंदे की जानकारियां सीक्रेट बन जाती हैं। 7. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया चुनावी बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को मिले चंदे की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दे। 6 मार्च तक यह जानकारी चाहिए। 13 मार्च तक चुनाव अयोग इस जानकारी को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करे।   क्या थे चुनावी बॉन्ड स्कीम के प्रावधान? साल 2017 में ऐलान और साल 2018 में अधिसूचना, लेकिन मनी बिल बनाकर पारित कर दिया गया। राज्यसभा में पेश किए बिना बिल पास कराने को विपक्ष ने भाजपा सरकार की मानमानी बताया। इतना ही ही बिल पारित कराने के लिए अपनी मर्जी से 5 कानूनों में संशोधन भी कर दिए। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इसमें सरकार को सहयोग दिया। चुनावी बॉन्ड SBI की 29 ब्रांच से खरीदा जा सकता है। इसकी कीमत एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकती है, लेकिन इसमें राजनीतिक दल को चंदा देने का नाम छिपा लिया जाता है, जिस पर विपक्ष को आपत्ति है।


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