महिला आरक्षण बिल: ‘यह अब तक का सबसे बड़ा जुमला…’, कांग्रेस ने क्यों उठाया ये सवाल?
Congress Question on Women Reservation Bill Delimitation Process
Congress Question on Women Reservation Bill Delimitation Process: नए संसद भवन में मंगलवार को महिला आरक्षण बिल पेश किया गया। बुधवार को इस पर सुबह 11 से शाम 6 बजे तक चर्चा की जाएगी। यानी 7 घंटे इस पर चर्चा होगी। महिला आरक्षण बिल को 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' नाम दिया गया है। बिल में लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। कांग्रेस ने इस बिल पर सवाल उठाए हैं।
जनगणना अब तक नहीं हुई
कांग्रेस ने X पर पोस्ट कर महिला आरक्षण बिल की क्रोनोलॉजी समझने की बात कही। कांग्रेस के पोस्ट के अनुसार, यह बिल आज पेश जरूर हुआ है, लेकिन देश की महिलाओं को इसका फायदा जल्द मिलते नहीं दिखता क्योंकि ये बिल जनगणना के बाद ही लागू होगा। पोस्ट में आगे कहा गया कि 2021 में ही जनगणना होनी थी, जोकि आज तक नहीं हो पाई है। आगे यह जनगणना कब होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है।
इस जनगणना को कभी 2027 तो कभी 2028 कराने की बात कही गई है। जनगणना के बाद ही परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा, तब जाकर कहीं ये बिल लागू होगा। कांग्रेस ने इसे अब तक का सबसे बड़ा जुमला कहा है। कांग्रेस ने इस पोस्ट में आगे कहा- मतलब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले एक और जुमला फेंका है। यह अब तक का सबसे बड़ा जुमला है। मोदी सरकार ने हमारे देश की महिलाओं के साथ विश्वासघात किया है।
इस बिल को लोकसभा में पेश कर दिया गया है। इसे बाद में राज्यसभा में पेश किया जाएगा। महिला आरक्षण विधेयक पर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा- "विधेयक दुर्भाग्य से महिला आंदोलन, नीति निर्माण और विधायी मामलों में अधिक प्रतिनिधित्व करने के लिए किए गए संघर्ष के साथ विश्वासघात है। तिवारी ने आगे कहा- विधेयक का खंड 334 ए कहता है कि आरक्षण संवैधानिक संशोधन विधेयक के पारित होने, फिर परिसीमन के बाद पहली जनगणना के बाद लागू होगा। इसका मतलब किसी भी परिस्थिति में यह आरक्षण 2029 से पहले लागू नहीं होगा।"
क्या है परिसीमन आयोग?
भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार, परिसीमन का अर्थ किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया होता है। परिसीमन का काम एक उच्चाधिकार वाले निकाय को सौंपा जाता है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग कहा जाता है।
बता दें कि देश में ऐसे परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है। सबसे पहले 1952 परिसीमन अधिनियम लाया गया। जिसके बाद आयोग का गठन किया गया। इसके बाद 1963, फिर 1973 और 2002 में परिसीमन अधिनियम लाया गया। भारत में उच्चाधिकार निकाय के आदेशों को कानून के तहत जारी किया गया है और इन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके आदेशों की प्रतियां लोकसभा और राज्य विधानसभा के सदन के सामने रखी जाती हैं, लेकिन उनमें कोई संशोधन करने की अनुमति नहीं होती।
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