महिला रिजर्वेशन बिल का नाम ही नहीं, राजनीतिक पार्टियों की रणनीति भी बदली; सभी का एक ही सुर- माई डियर OBC
Congress OBC Caste Census Winning Formula: भारतीय राजनीति में संसद की दीवारें बदलीं। नई संसद में आधी आबादी को राजनीति में बड़ा मुकाम दिलाने के लिए मोदी सरकार ने 'महिला आरक्षण बिल' संसद से पास करा लिया। इस दौरान महिला रिजर्वेशन बिल का नाम बदला गया। इस बिल को अब नारी शक्ति वंदन अधिनियम से जाना जाएगा। बिल के नाम बदलते ही देश की राजनीतिक पार्टियों की रणनीति भी बदल गई। हर पार्टी अब यही कह रही है... माई डियर OBC।
2024 के चुनाव से पहले बिल के शोर ने पार्टियों के बीच पॉलिटिकल फाइट को बेहद रोचक बना दिया है। मोदी सरकार को उम्मीद थी कि सत्ता को चैलेंज देने के लिए तैयार इंडिया गठबंधन को ये बिल परेशान करेगा। कांग्रेस शुरू से इस बिल को अपना बताकर इसके हक में थी, लेकिन इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइडेट जैसी पार्टियां हर बार इस बिल के विरोध में खड़ी हुईं। मगर इस बार बार कांग्रेस ने अपना स्टैंड बदलकर नई नवेली इंडिया अलायंस का साथ भी दिया है और अपने ही गठबंधन की टेंशन भी बढ़ा दी।
इंडिया गठबंधन के घटक दलों के टेंशन की ये है वजह
दरअसल, सोनिया गांधी और राहुल गांधी का संसद में ओबीसी आरक्षण और जातिगत जनगणना की मांग करना ही इंडिया गठबंधन के घटक दलों के लिए टेंशन की वजह है। इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी हो या आरजेडी या जेडीयू, इन पार्टियों की सियासत का आधार ही ओबीसी रहा है। जनता दल से टूटकर जितनी पार्टियां बनीं ज्यादातर का वोट बेस OBC रहा है। नरेंद्र मोदी की नेशनल पॉलिटिक्स में मजबूती दर्ज कराने के बाद ओबीसी वोटर्स में क्षेत्रीय पार्टियों की पकड़ कमजोर हुई। 2014 लोकसभा चुनाव में कई राज्यों के चुनावी नतीजे इसकी झलक है।
2024 चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी हो या आरजेडी या जेडीयू जातीय जनगणना की मांग को लेकर लगातार अपनी मांग को मजबूत कर रहे हैं। कर्नाटक चुनाव में जातीय जनगणना के मुद्दे से कांग्रेस को भी विनिंग फॉर्मूला मिल गया। राहुल गांधी ने हर कार्यक्रम में जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया जो कामयाब भी रहा। पार्टी इस दांव के जरिए कर्नाटक में OBC-दलित समीकरण गढ़ने में कामयाब रही, नतीजा पूर्ण बहुमत की सरकार के रूप में आया। कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान और अन्य राज्यों तक, कांग्रेस के नेता लगातार जातीय जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं और कांग्रेस की यही रणनीति महिला आरक्षण बिल के जरिए संसद में भी नजर आई।
आखिर ओबीसी आरक्षण की बात करने से क्षेत्रीय पार्टियों को क्या खतरा?
अब सवाल ये कि सोनिया और राहुल गांधी का ओबीसी आरक्षण की बात से क्षेत्रीय पार्टियों को कैसे और क्या खतरा? दरअसल, संसद में जातीय जनगणना और ओबीसी की बात करना एक तरह से कांग्रेस के ओबीसी पॉलिटिक्स में उतरने का संकेत है। OBCवोट बैंक में कांग्रेस सेंध लगाने में कितना सफल होगी, ये अलग मुद्दा है। लेकिन OBC पॉलिटिक्स की बुनियाद पर खड़ी समाजवादी, आरजेडी जैसी पार्टियों की सियासत के लिए ये अच्छे संकेत नहीं है।
पीएम मोदी के चेहरे के सहारे बीजेपी ने ओबीसी वोट बैंक में मजबूत सेंध लगाई और कई चुनावी सर्वे रिपोर्ट्स के मुताबिक दूसरी पार्टियों से ज्यादा ओबीसी समर्थन हालिस करती नजर भी आई। एक सर्वे के मुताबिक, 2019 में ओबीसी समुदाय के 54 फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी का समर्थन किया था जो किसी भी दूसरी पार्टी के मुकाबले कहीं ज्यादा था। दूसरी तरफ बीजेपी लहर की वजह से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी पांच सीटों पर सिमट गई और तो और बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी खाता तक नहीं खोल सकी।
समाजवादी और आरजेडी की कोशिशें रंग लाती दिख रही हैं
2019 चुनाव के नतीजों ने सभी दलों के कान खड़े कर दिए। सपा और आरजेडी जैसी पार्टियों ने अपने छिटक रहे वोट बेस को सहेजने के लिए ओबीसी सम्मान को धार देने की रणनीति पर काम शुरू किया। कांग्रेस अपने लिए विनिंग कॉम्बिनेशन की तलाश में जुटी रही, तो दूसरी तरफ एसपी और आरजेडी के नेताओं ने ओबीसी से जुड़े मामलों को लेकर आवाज उठाने का रास्ता चुना। जातीय जनगणना और आरक्षण की मांग को लेकर समाजवादी और आरजेडी की कोशिशें रंग लाती भी नजर आईं।
2022 के यूपी चुनाव में SP को 32.3% वोट शेयर के साथ 111 सीटें मिलीं। वहीं बिहार में RJD भी BJP-JDU गठबंधन के बावजूद 23.5% फीसदी वोट शेयर के साथ 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। यही वजह है कि इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस की तरफ से ओबीसी कोटे का स्टैंड पकड़ते ही साफ हो गया कि कांग्रेस पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों के साथ साथ लोकसभा चुनाव और गठबंधन में खुद को ताकतवर बनाने के लिए बड़ा कदम बढ़ा चुकी है और कांग्रेस की रणनीति बीजेपी के मास्टरस्ट्रोक पर भी भारी पड़ती नजर आ रही है।
महिला आरक्षण बिल में ओबीसी कोटे की फांस के पीछे सबसे बड़ी वजह है ये है कि देश के ज्यादातर राज्यों में ओबीसी समुदाय पार्टी और उनके कैंडिडेट की किस्मत तय करते हैं। आंकड़ों के हिसाब से समझें तो देश में करीब 45% OBC समुदाय की आबादी है।
राज्यवार OBC आबादी की बात करें तो...
बिहार में 61%
उत्तर प्रदेश में 54%
राजस्थान में 48%
गुजरात में 47%
मध्य प्रदेश में 50%
छत्तीसगढ़ में 45%
आंध्र प्रदेश में 52%
तमिलनाडु में 71%
तेलंगाना में 48%
कर्नाटक में 62%
और केरल में 69% OBC आबादी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले किसी भी पार्टी के लिए OBC मुद्दे को नजरअंदाज करना नामुमकिन है।
महिला आरक्षण बिल पर ओबीसी को लेकर घमासान क्यों मचा है?
2017 और 2019 में लगातार दो बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाली बीजेपी पर भी ओबीसी समुदाय ने अपना प्यार लुटाया है और ओबीसी समुदाय का झुकाव 2009 से लगातार बीजेपी की तरफ बढ़ता गया है। ऐसे में विपक्षी दलों के साथ साथ बीजेपी के लिए भी ओबीसी कोटे की मांग को नजरअंदाज आसान नहीं है।
पिछले तीन लोकसभा चुनावों में ओबीसी वोट प्रतिशत की बात करें तो 2009 में 22% ओबीसी वोट बीजेपी को मिला था। वहीं, काग्रेस को 24% ओबीसी वोट हासिल हुआ था, जबकि क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को 54% फीसदी ओबीसी का साथ मिला था।
2014 में 34 प्रतिशत ओबीसी वोट बीजेपी के साथ गया, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 15% ओबीसी वोट हासिल हो सका।
क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को 51% फीसदी ओबीसी का साथ मिला।
2019 में बीजेपी के लिए ओबीसी का वोट प्रतिशत तेजी से बढ़ते हुए 44% तक पहुंचा। वहीं, कांग्रेस को 2019 में भी सिर्फ 15% ओबीसी वोट मिल सका। क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को मिलने वाला वोट प्रतिशत भी घटकर 41% हो गया।
2023 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव... 2024 में लोकसभा के चुनाव और 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव तय हैं। ऐसे में हर पार्टी, हर समुदाय को साधने की तैयारी कर रहा है और महिला आरक्षण बिल के साथ ओबीसी समुदाय का हितैषी बनने की होड़ शुरू हो चुकी है।
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