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पत्नी के साथ जबरन संबंध रेप मानने का समाज में दिखेगा असर, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया जवाब

hearing on marital rape case: पत्नी के साथ रेप को अपराध घोषित करने के फैसले पर केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया गया है। सरकार ने कहा है कि फैसले का सामाजिक प्रभाव पड़ेगा। मामले में जितने भी याचिकाकर्ता हैं, उनकी ओर से भी जल्द सुनवाई के लिए न्यायालय पर […]

hearing on marital rape case: पत्नी के साथ रेप को अपराध घोषित करने के फैसले पर केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया गया है। सरकार ने कहा है कि फैसले का सामाजिक प्रभाव पड़ेगा। मामले में जितने भी याचिकाकर्ता हैं, उनकी ओर से भी जल्द सुनवाई के लिए न्यायालय पर दबाव डाला गया है। ये लोग एक साल से फैसले का इंतजार कर रहे हैं। मामले में वकील करुणा नंदी ने सीजेआई धनंजय वाई चंद्रचूड़ के सामने सूचीबद्ध डेट्स की मांग की है। जिसके बाद सीजेआई ने जवाब दिया है कि संविधान पीठ के मामले निपटाने के बाद कोर्ट इन मामलों की सुनवाई कर सकती है। अक्टूबर के बीच में इसको संविधान पीठों की स्थिति देखने के बाद सूचीबद्ध किया जा सकता है। मांग ये भी की गई है कि मामला अगर सूचीबद्ध कर दिया जाता है तो सुनवाई पर बहस के लिए दो दिन का समय केंद्र को दिया जाए। लेकिन नंदी ने कहा कि दलीलें पेश करने के लिए याचिकाकर्ता को कम से कम 3 दिन चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि फैसले के सामाजिक प्रभाव होंगे। यह भी पढ़ें-जस्टिन के पिता का भी सख्त रहा रवैया, आखिर क्यों भारत के खिलाफ बेरुखी दिखाता है ट्रूडो परिवार? वहीं, जुलाई में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने रेप में पति को छूट के संबंध में निर्णय किए जाने की बात कही थी। क्योंकि तब अनुच्छेद 370 पर सुनवाई हो रही थी। जिसके बाद ही इस मामले को सूचीबद्ध करने पर सहमति बनी थी। इसके बाद भी सीजेआई ने नए संविधान पीठ के मामलों को सूचीबद्ध किया, जिसके कारण मैरिटल रेप के मामलों में देरी हुई। कोर्ट के पास काफी याचिकाएं हैं, जो धारा 375 के अपवाद से रिलेटेड हैं। यह किसी भी व्यक्ति को पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने पर रेप के आरोपों से छूट देती है। मामले में जनहित याचिकाएं भी दाखिल हैं, जो पतियों के उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के खिलाफ सुरक्षा की वैधता को चुनौती दे रही हैं। मई 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसला लिया था, जो अंतिम निर्णय के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास लंबित है।

दिल्ली हाईकोर्ट के जजों के थे अलग विचार

दिल्ली हाईकोर्ट के जज भी 2022 के फैसले को लेकर एक-दूसरे से असहमत थे। एक न्यायाधीश ने माना था कि बिना सहमति पति का यौन संबंध बनाना नैतिक रूप से सही नहीं है। इसके लिए जो अभियोजन है, उसको प्रतिकूल बनाने की जरूरत है। दूसरे जज ने कहा था कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यह अभियोजन किसी कानून का उल्लंघन नहीं करता है। सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे व्यक्ति ने अपील दाखिल की थी, जिसके खिलाफ पत्नी से रेप का आरोप था। उस केस में कर्नाटक हाईकोर्ट ने मार्च 2022 के फैसले को मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद कर्नाटक की तत्कालीन भाजपा सरकार ने नवंबर में हलफनामा दायर कर पति के खिलाफ केस चलाने का समर्थन किया था।

गर्भपात अधिनियम का दिया गया था हवाला

वहीं, 16 जनवरी को कोर्ट ने कार्यवाही को सुचारू बनाने के लिए वकीलों के सहयोग के लिए पूजा धर और जयकृति एस जडेजा को नोडल वकील नियुक्त किया था। जिसके बाद इस एसजी मेहता ने चिंता व्यक्त की थी कि इसका सामाजिक प्रभाव पड़ेगा। जिसके बाद केंद्र और राज्यों के साथ उन्होंने परामर्श किया। लेकिन इसके बाद भी केंद्र की ओर से कोई हलफनामा इसको लेकर दाखिल नहीं किया गया था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सितंबर 2022 को फैसला दिया था। जिसमें कहा था कि पति अगर जबरन संबंध बनाता है तो उसे विवाहित महिला के गर्भधारण के आधार पर गर्भपात अधिनियम के तहत रेप माना जा सकता है।


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