जाति या सम्मान… लोकसभा चुनाव 2024 में किधर रहेगा जाटों का ठाठ
Wrestlers Protest
देश में इस बार लोकसभा चुनाव 2024 काफी दिलचस्प होने वाला है। इस चुनाव में सिर्फ एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच ही मुकाबला रहेगा। कुछ लोकसभा सीटों को छोड़ा दिए जाए तो अधिकतर सीटों पर सिर्फ दो ही उम्मीदवार नजर आएंगे। एक प्रत्याशी इंडिया गठबंधन से रहेगा तो दूसरा एनडीए से। ऐसे में दोनों गठबंधनों के बीच काफी टफ लड़ाई देखने को मिलेगी। लोकसभा चुनाव से पहले कोई भी गठबंधन जाटों की नाराजगी के सामने नहीं आना चाहता है। आइये जानते हैं कि जाति या सम्मान... लोकसभा चुनाव में जाटों का ठाठ किधर रहेगा?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में जाटों की संख्या काफी ज्यादा है। यहां की 40 लोकसभा सीटों पर जाट समुदाय ही हार और जीत तय करता है। ऐसे में एनडीए हो या इंडिया गठबंधन कोई भी जाट समुदाय के गुस्से के सामने नहीं आना चाहता है। पहले संसद से जाति का मुद्दा निकला तो अब कुश्ती के अखाड़े से सम्मान का। दोनों ही मुद्दे सीधे-सीधे जाट समुदाय से जुड़े हुए हैं। हालांकि, अभी ये कहना मुश्किल है कि जाटों का वोट किस पार्टी को मिलेगा?
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जानें मोदी सरकार के खिलाफ जाटों ने कब-कब किया विरोध प्रदर्शन
किसान बिल को लेकर किसानों ने बहुत दिनों तक आंदोलन किया था। इस आंदोलन में ज्यादातर किसान हरियाणा के जाट समुदाय से थे। काफी दिनों तक यह मामला तूल पकड़ा रहा और अंत में मोदी सरकार को किसान बिल वापस लेना पड़ा। इसके बाद हरियाणा के जाट पहलवानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन किया था। उन्होंने भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। अदालत के आदेश पर बृजभूषण सिंह के खिलाफ मुकदमा तो दर्ज हुआ, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई।
पहलवानों के सामने झुकी सरकार
इस बीच भारतीय कुश्ती संघ चुनाव के नतीजे (WFI Election Results) आने के बाद फिर पहलवानों का मुद्दा गरमा गया है। बृजभूषण सिंह के करीबी संजय सिंह डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद बृजभूषण सिंह ने मीडिया के सामने कहा कि दबदबा है और दबदबा रहेगा। इसके बाद पहलवान और गुस्से में आ गए और साक्षी मलिक ने संन्यास लेने का ऐलान कर दिया था। साथ ही पहलवानों के समर्थन में कांग्रेस भी आ गई। अंत में केंद्र की एनडीए सरकार ने कुश्ती संघ की नई कार्यकारिणी को ही निलंबित कर दिया है।
कभी एनडीए तो कभी इंडिया के साथ नजर आ रहा जाट समुदाय
एक तरफ देश में अगले साल लोकसभा चुनाव चुनाव होने हैं तो दूसरी तरफ जाट समुदाय की नाराजगी थी। ऐसे में मोदी सरकार नहीं चाहती है कि एनडीए को 2024 के चुनाव में कोई नुकसान हो, इसलिए सरकार ने फटाफट डब्ल्यूएफआई की नई बॉडी को निलंबित करने का फैसला किया है। पहलवानों ने सरकार के इस फैसले को स्वागत किया है। अगर राजनीति समीकरण पर नजर डालें तो जाट समुदाय कभी एनडीए के साथ खड़ा नजर आ रहा है तो कभी इंडिया गठबंधन के साथ।
संसद से निकला था जाति का मुद्दा
यहां जाट समुदाय से जुड़े एक और मामले के बारे में भी जानना जरूरी है। संसद सत्र के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि मेरे जाट समुदाय और किसान समुदाय का मजाक बनाया जा रहा है। इसके बाद हरियाणा के कुछ जाटों ने उपराष्ट्रपति के समर्थन में प्रदर्शन भी किया था। उस समय ऐसा लग रहा था कि जाटों का झुकाव एनडीए की तरफ है, लेकिन उसके बाद डब्ल्यूएफआई चुनाव परिणाम से सारा खेल बिगड़ गया और जाट समुदाय सरकार के खिलाफ हो गया। भले ही एनडीए सरकार ने पहलवानों के पक्ष में फैसला लेते हुए संजय सिंह समेत सभी निर्वाचित सदस्यों को सस्पेंड कर दिया, लेकिन ये तो अब लोकसभा चुनाव में ही पता चलेगा कि जाट का ठाठ किधर रहने वाला है।
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