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Azadi Ka Amrit Mahotsav: भारत के ‘Bravehearts’, जिनका नाम सुन आज भी कांप जाता है दुश्मनों का दिल

नई दिल्ली: तिरंगे की आन-बान-शान के लिए हमारे देश की सेना सीमा पर तैनात हैं। हम चैन की नींद सोते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि बॉर्डर पर जवान प्रहरी बनकर डटे हुए हैं। हम आज आजाद हैं, इस आजादी को पाने में और इसे बनाए रखने के लिए कई रणबाकुरों अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। […]

नई दिल्ली: तिरंगे की आन-बान-शान के लिए हमारे देश की सेना सीमा पर तैनात हैं। हम चैन की नींद सोते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि बॉर्डर पर जवान प्रहरी बनकर डटे हुए हैं। हम आज आजाद हैं, इस आजादी को पाने में और इसे बनाए रखने के लिए कई रणबाकुरों अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। अपने खून के एक-एक कतरे से इस राष्ट्र की मिट्टी को सींचा। सियाचिन की बर्फीली घाटिया हों या फिर जैसलमेर की तपती रेत, समंदर की उफनती लहरें हों या फिर आसमान में आया तूफान हर मोर्चे पर हमारे वीर हमारी हिफाजत के लिए मुस्तैद हैं। देश 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस बार का स्वतंत्रता दिवस ( Independence day )खास है। देश आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है। केंद्र सरकार ने 'हर घर तिरंगा' अभियान लॉन्च किया है। आजादी के इस महापर्व पर हमें अपने वीर जवानों को याद करना होगा। हम जब भी महान तिरंगे के नीचे खड़े हों तो ये याद रहे कि इसके लिए कई वीरों ने अपनी जान निछावर कर दी। आजादी के इस मौके पर हम देश के उन 'Bravehearts' को याद कर रहें हैं, जिन्होंने मां भारती की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। नौशेरा का शेर ब्रिगेडियर उस्मान ब्रिगेडियर उस्मान जब देश के लिए शहिद हुए तो उनके 36वें जन्मदिन पर सिर्फ 12 दिन बचे थे। उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बीबीपुर गांव में हुआ था।  1948 की जंग में शहीद होने वाले सबसे बड़े भारतीय सैनिक अधिकारी थे। कहा जाता है कि वे अगर जिंदा होते तो देश के पहले सेना अध्यक्ष होते। आजादी के बाद भारत दो हिस्सों में बट गया। पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने की भरपूर कोशिश की। 1948 में देश की सरहद पर पाकिस्तान ने अघोषित लेकिन भीषण युद्ध छेड़ दिया। पाकिस्तान की सेना कश्मीर के कई इलाकों में घुस चुकी थी। पाकिस्तानियों को खदड़ने की जिम्मेदारी मिली ब्रिगेडियर उस्मान को। दिसंबर, 1947 में भारतीय सेना के हाथ से झंगड़ निकल जाने के बाद 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर उस्मान ने राणा प्रताप की तरह प्रण किया था कि वो तब तक नहीं सोएंगे जब तक झंगड़ को अपने कब्जे में नहीं ले लेते। जब झंगड़ दोबारा भारतीय सेना के नियंत्रण में आया तब ब्रिगेडियर उस्मान के सोने के लिए पलंग मंगवाया गया। 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तान ने फिर से हमला बोला। भारी गोलीबारी हुई। ब्रिगेडियर उस्मान अपने मोर्चे पर डटे रहे। इसी दौरान उस्मान के ठीक सामने 25 पाउंड का एक गोला आकर गिरा उनके पूरे शरीर पर छर्रे घुस गए। इस वीर ने झंगड़ को तो बचा लिया पर खुद शहीद हो गए। चीन के काल शैतान सिंह मेजर शैतान सिंह का जन्म जोधपुर, राजस्थान में 1 दिसंबर, 1924 को हुआ था। उन्हें 1962 में हुई भारत-चीन की जंग के लिए जाना जाता है। रेजांग ला की जंग, जहां भारत के 120 बहादुरों ने अचानक हमला करने वाली चीनी सेना के 1300 सैनिकों को मार गिराया था। जब चीन ने भारत में हमला किया उस वक्त न तो जवानों के पास ऐसे हथियार थे जो चीन के सामने टिक सकते, न भीषण ठंड से बचने के लिए कपड़े नहीं थे। लेकिन मेजर शैतान सिंह ने अपनी बटालियन के साथ जमकर लड़ाई लड़ी। 1300 चीनी सैनिकों को ढेर करने के बाद उन्होंने देश को अलविदा कहा। कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध की कहानी कैप्टन विक्रम बत्रा के बिना नहीं कही जा सकती। कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। कैप्टन बत्रा से दुश्मन भी थर-थर कांपते थे। उनकी बहादुरी के किस्से आज भी लोगों को सुनाए जाते हैं। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा की बटालियन द्रास में थी। और कैप्टन बत्रा को प्वाइंट 5140 को फिर से अपने कब्जे में लेने का आदेश मिला। बत्रा ने प्वाइंट 4875 पर आसानी से कब्जा कर लिया। उसके बाद उनकी टीम को 17,000 फीट की ऊंचाई पर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने का काम सौंपा गिया। पाकिस्तानी फौज ऊंचाई पर थीं और बर्फ से ढ़कीं चट्टानें 80 डिग्री पर तिरछी थीं। कैप्टन बत्रा और उनके सिपाहियों ने चढ़ाई शुरू की। गोलियां बरसाते हुए वे आगे बढ़ते गए। उन्होंने ग्रेनेड फेंककर पांच पाकिस्तानी को मार गिराया लेकिन एक गोली आकर सीधा उनके सीने में लगी। वे वहीं शहीद हो गए। हालांकि उनकी टीम ने प्वाइंट 4875 चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। कैप्टन मनोज कुमार पांडे कैप्टन मनोज कुमार पांडे कारगिल हीरो थे। गोरखा राइफल की पहली बटालियन के कैप्टन मनोज पांडे बटालिक सेक्टर में तैनात थे। जुबार टॉप पर कब्जे की कहानी सुन रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मनोज पांडे दुश्मन की गोलीबारी के बीच भी आगे बढ़ते रहे। कंधे और पैर में गोली लगने के बावजूद दुश्मन के पहले बंकर में घुसे। सीधी लड़ाई दो दुश्मनों को मार गिराया और पहला बंकर नष्ट किया। कैप्टन मनोज अपने घावों की परवाह किए बिना एक बंकर से दूसरे बंकर में हमला करते रहे।आखिरी बंकर पर कब्जा करने तक वे बुरी तरह जख्मी हो चुके थे। वह शहीद हो गए। कैप्टन पांडे की इस दिलेरी ने अन्य प्लाटून और बटालियन के लिए मजूबत बेस तैयार किया, जिसके बाद ही खालूबार पर कब्जा किया गया। इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च मेडल परम वीर चक्र दिया गया। सर्जिकल स्ट्राइक के हीरो लांस नायक संदीप सिंह भारत ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को मारा। सर्जिकल स्ट्राइक कर भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया की ये नया भारत है। अपनी रक्षा के लिए दुसरे देश में भी घुसकर दुश्मनों को मार सकता है। सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाने वाले लांस नायक संदीप सिंह ने शहीद होने के पहले तीन आतंकियों को मार गिराया था। रविवार के दिन कुपवाड़ा के तंगधार में आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की। सेना ने मोर्चा संभाला और मुठभेड़ में सेना ने 24 घंटे में पांच आतंकी मार गिराए थे। इस गोलीबारी में एक गोली संदीप सिंह के सिर में जा लगी। उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उन्होंने आखिरी सांस ली।            


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