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‘बहादुर सिपाही की मौत मरुंगा’; मां-बाप को आखिरी खत लिखा और 700 दुश्मनों के खदेड़कर दिया बलिदान

Major Somnath Sharma Birth Anniversary: आज मेजर सोमनाथ शर्मा की बर्थ एनिवर्सरी है। इस मौके पर उनकी बहादुरी का वह किस्सा पढ़ते हैं, जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया गया था।

पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा
Brave Soldier Of India Major Somnath Sharma: सामने मौत दी, लेकिन दिल में जोश और देशभक्ति का ऐसा जज्बा था कि रणभूमि में जाने से पहले मां-बाप को आखिरी खत लिखा। इसके बाद दहाड़ते हुए दुश्मन के खेमे में घुस गए। गोलियां चलाते हुए आगे बढ़ते रहे, सामने से भी गोलियां की बौछारें हो रही थीं, लेकिन कदम डममगाए नहीं। श्रीनगर से दुश्मनों को खदेड़कर ही आखिरी सांस ली। यह कहानी है, भारतीय सेना के उस वीर जवान की, जिसे देश का पहला परमवीर चक्र मरणोपरांत दिया गया। जानिए उन Major Somnath Sharma के बारे में, जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया...  

25 साल की उम्र में बलिदान हुए सोमनाथ शर्मा

सैन्य रिकॉर्ड के मुताबिक, 31 जनवरी 1923 को जन्मे और 25 साल की उम्र में 3 नवंबर 1947 को बलिदान हुए। पिता मेजर अमर नाथ शर्मा थे। भाई लेफ्टिनेंट जनरल सुरिंदर नाथ शर्मा और बहन मेजर कमला तिवारी थीं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा निवासी सोमनाथ 22 फरवरी 1942 को आर्मी की 8वीं बटालियन, 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट (चौथी बटालियन, कुमाऊं रेजिमेंट) में भर्ती हुए थे। 1947 के भारत पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने श्रीनगर में कब्जा नहीं होने दिया था। करीब 700 दुश्मन नापाक इरादे लेकर भारतीय सीमा में घुसे थे, लेकिन भारत मां के 50 बहादुर बेटों ने दुश्मन को मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया।

रणभूमि में जाने से पहले मां-बाप को खत लिखा

मेजर सोमनाथ को पता था कि कभी भी रणभूमि में जाना पड़ा सकता है। इसलिए वे परिवार के नाम लेटर लिखते रहते थे। दोस्तों से कहा करते थे कि जब भी मौत आ जाए तो लेटर घर पोस्ट कर देना। ऐसा ही एक लेटर उन्होंने मां-बाप के नाम लिखा था, जिसे पढ़कर उनकी खुद की आंखों में आंसू आ गए थे। इसमें उन्होंने लिखा कि मम्मी-पापा अपना फर्ज निभा रहा हूं। मौत का डर भी है, लेकिन जब गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिया उपदेश याद करता हूं तो वह डर खत्म हो जाता है। आत्मा अमर है तो क्या फर्क पड़ता है, अगर नश्वर शरीर मिट जाए। आपको डरा नहीं रहा, लेकिन मर गया तो बहादुर सिपाही की मौत मरुंगा। आपका सिर झुकने नहीं दूंगा। भारत मां के लिए बलिदान होऊंगा, इससे ज्यादा खुशकिस्मती और क्या होगी?

बडगाम की लड़ाई, 6 घंटे दुश्मनों से लड़ते रहे

भारत-पाक युद्ध चल रहा था। 3 नवंबर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की कंपनी को कश्मीर घाटी के बडगाम गांव में गश्त पर जाने के आदेश मिले। हॉकी मैच में चोट लगने से बाएं हाथ में प्लास्टर था, लेकिन वे मिशन पर गए। बडगाम के रास्ते दुश्मन घुसपैठ कर रहे थे। 2 टुकड़ियां मेजर सोमनाथ की कंपनी ए-ऑफ-4 कुमाउं और दूसरी कैप्टन रोनाल्ड वुड की डी-ऑफ-1 पैरा कुमाउं थी। 500 से 700 दुश्मनों ने हमला किया। एक मोर्टार शेल में विस्फोट हुआ और वे घायल हो गए। मरने से पहले हेडक्वॉर्टर संदेश भेजा कि दुश्मन 50 यार्ड दूर है। चारों ओर से गोलियां चल रहीं, लेकिन एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे। करीब 6 घंटे साथियों को कवर देते हुए और रि-एन्फोर्समेंट पहुंचते ही दम तोड़ दिया।


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