विधायक से लेकर प्रधानमंत्री तक… ऐसा रहा चौधरी चरण सिंह का सियासी सफर
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को मिलेगा भारत रत्न
Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh: केंद्र की मोदी सरकार ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया। चरण सिंह के अलावा, पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव और हरित क्रांत के जनक एमएस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। इससे पहले, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी।
23 दिसंबर 1902 को हुआ चरण सिंह का जन्म
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ। उन्होंने 1925 में आगरा यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ ऑर्ट्स (एमए) और 1926 में कानून की डिग्री हासिल की। उनकी पत्नी का नाम गायत्री देवी था। उनके 6 बेटे थे, जिनमें अजित सिंह भी शामिल हैं। गायत्री देवी भी विधायक और सांसद थीं।
तीन बार जाना पड़ा जेल
चरण सिंह ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्हें दो बार जेल भेजा गया। चरण सिंह को 1930 में नमक कानूनों के उल्लंघन के आरोप में 12 साल के लिए जेल जाना पड़ा। इसके बाद सत्याग्रह आंदोलन के दौरान नवंबर 1940 में उन्हें एक साल के लिए जेल में डाल दिया गया। इसके बाद उन्हें अगस्त 1942 में फिर से जेल में डाल दिया गया। हालांकि, नवंबर 1943 में उन्हें रिहा कर दिया गया।
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छपरौली से पहली बार चुने गए विधायक
चौधरी चरण सिंह सबसे पहले 1937 में बागपत के छपरौली से विधायक चुने गए। उस समय उसकी उम्र 34 साल थी। इसके बाद वे 1946, 1952, 1962 और 1967 में यहीं से फिर से विधायक निर्वाचित हुए। चरण सिंह ने 1938 में विधानसभा में कृषि उपज बाजार विधेयक पेश किया था, जिसका उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा करना था। इस विधेयक को पंजाब ने 1940 में अपनाया था।
1967 में बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
चौधरी चरण सिंह पहली बार 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वे इस पद पर 17 फरवरी 1968 तक रहे। इसके बाद 18 फरवरी 1970 को चरण सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि, उनका यह कार्यकाल एक साल से भी कम का रहा। उन्हें 1 अक्टूबर 1970 को इस्तीफा देना पड़ा।
1977 में बने देश के गृह मंत्री
चौधरी चरण सिंह 24 मार्च 1977 में देश के गृह मंत्री बने। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कांग्रेस शासन के अधीन 9 राज्य विधानसभाओं को भंग करने के लिए मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था। हालांकि, सभी मुख्यमंत्री इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन फैसला चरण सिंह के हक में रहा। चरण सिंह ने 1 जुलाई 1978 को मोरारजी देसाई सरकार से मतभेद के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इसके बाद वे 1979 में फिर कैबिनेट में शामिल हुए और उप प्रधानमंत्री के साथ वित्त मंत्री बने।
28 जुलाई 1979 में बने प्रधानमंत्री
चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, बाद में इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) पार्टी के समर्थन वापस लेने से उन्हें 20 अगस्त 1979 को इस्तीफ देना पड़ा। उनका कार्यकाल महज 23 दिन का रहा।
लोकदल का गठन
चौधरी चरण सिंह ने 26 सितंबर 1979 को लोकदल का गठन किया। इसमें उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर), सोशलिस्ट पार्टी और उड़ीसा जनता पार्टी का विलय किया। हालांकि, बाद में इसके दो गुट हो गए। एक गुट चरण सिंह का खुद था तो दूसरे गुट में कर्पूरी ठाकुर, बीजू पटनायक और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे नेता शामिल थे। चरण सिंह ने 21 अक्टूबर 1984 को लोकदल, हेमवती नंदन बहुगुणा की डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता पार्टी के कुछ नेताओं का विलय करके एक नई पार्टी की स्थापना की, जिसका नाम उन्होंने दलित मजदूर किसान पार्टी रखा। हालांकि, बाद में इसका नाम बदलकर लोकदल रख दिया गया।
1987 में ली आखिरी सांस
चौधरी चरण सिंह ने 29 मई 1987 को आखिरी सांस ली। उन्हें किसानों का मसीहा भी कहा जाता है। उनके स्मारक का नाम किसान घाट रखा गया है। चरण सिंह ने यूपी में भूमि जोत अधिनियम लाने और मंत्रियों को मिलने वाले विशेषाधिकारों में भारी कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत सरकार ने 29 मई 1990 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट भी जारी किया। उनके जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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