अटल बिहारी वाजपेयी: कवि ‘अटल’ बता गए ‘अखंड भारत’ का शक्ति मंत्र
Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary
Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: अटल बिहारी वाजपेयी एक व्यक्ति नहीं, एक ऐसी प्रखर और मुखर सोच का नाम है, जिससे देश के लोग, राजनेता, कवि और पत्रकार समय-समय पर रोशनी लेते रहेंगे। वाजपेयी एक ऐसे करिश्माई राजनेता थे, जो ना सिर्फ भारतीय राजनीति के शिखर तक पहुंचे, बल्कि अपनी खास शैली से पक्ष-विपक्ष से लेकर आम लोगों के दिलों पर किसी चक्रवर्ती राजा की तरह राज किया।
शब्दों के जादूगर
वो शब्दों के जादूगर थे। हर बात बहुत नाप-तोल कर बोलते थे। आज उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि है। उन्होंने देश संसदीय राजनीति के हर दौर को देखा। आजाद भारत के बदलते रंग को देखा, लोगों के चरित्र और चेहरे में बदलावों को करीब महसूस किया। राजनीति में मर्यादाओं को भी तार-तार होते देखा, लेकिन मतभेदों को कभी मनभेद में नहीं बदलने दिया।
कविताएं करती थीं सीधा संवाद
वो भारत की आदर्शवादी राजनीति के आखिरी स्तंभ की तरह हैं। जिसके बाद प्रतिस्पर्धी राजनीति का ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसमें मर्यादा की लक्ष्मण रेखा मिटती जा रही है। सामाजिक ताने-बाने में दरार और अविश्वास की खाई भी चौड़ी हुई। ऐसे में अटल जी की पुण्यतिथि के मौके पर ये समझना भी जरूरी है कि वो किस तरह के भारत का सपना देख रहे थे। वो पूरी जिंदगी कैसी राजनीति आगे बढ़ाते रहे। किस तरह के समरस समाज की काया उनके मन-मस्तिष्क में थी? अटल जी की कविताएं भी उनके भाषणों की तरह ही लोगों से सीधा संवाद करती थीं। सीधा संदेश देती थीं। ऐसे में आज अटल जी की कविताओं के जरिए उनकी भारत भक्ति को समझने की कोशिश करेंगे।
अटल की ‘भारत भक्ति’
अटल बिहारी वाजपेयी की संसदीय राजनीति कई पड़ावों में गुजरी। उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी सबकी राजनीति को बहुत करीब से देखा। उन्होंने अपने संसदीय जीवन का बड़ा हिस्सा विपक्षी राजनीति के तौर पर बिताया। वो भारत निर्माण में मजबूत विपक्ष का महत्व और भूमिका अच्छी तरह समझते थे। ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी अपनी राजनीति यात्रा के दौरान कभी नेहरू की तरह संसदीय परंपराओं को आगे बढ़ाते दिखे, कभी इंदिरा गांधी की तरह कड़े फैसले लेते। कभी वे राजीव गांधी की तरह देश को विज्ञान-तकनीक में आगे बढ़ाते।
अटल जी का राष्ट्रवाद सबको जोड़ने का रास्ता दिखाता है
वो भारतीय राजनीति के सभी ध्रुवों के बीच एक ऐसा मिला-जुला रूप थे, जिन्हें गले लगाने में किसी को हिचक नहीं थी। अटल जी का राष्ट्रवाद सबको जोड़ने का रास्ता दिखाता है। संघर्ष की प्रेरणा देता है। राष्ट्रीय संकटों से निपटने के बीच कदम मिलाकर चलने की बात करता है। अटल जी का कवि मन अपनी सोच को शब्दों में पिरोने का मौका खोजता रहता था। भले ही तत्कालीन परिस्थितियों के हिसाब से कवि मन अटल ने शब्दों के जरिए अपने भाव रखे, लेकिन हर कवि की रचना और शब्द संसार को हर दौर अपने हिसाब से देखता है। उसके मायने निकलता है। उसमें भी जब अटल जी जैसा सुलझा हुआ राजनेता कवि हो, तो बात दूर तलक जाती है।
वाजपेयी जी की विदेश नीति साफ-सुथरी
अटल जी का राष्ट्रवाद सिर्फ आदर्शवादी नहीं व्यावहारिक भी था। उनके राष्ट्रवाद में विश्व बंधुत्व का भाव कूट-कूट कर भरा था। उसमें भारत की सरहद पर काली नजर रखने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने का माद्दा भी था, तो भारत की प्राचीन परंपरा के हिसाब से विश्व शांति और सद्भाव का संदेश भी। इसलिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही अटल जी अगर परमाणु परीक्षण का फैसला लेते हैं, तो पड़ोसी पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए बस से लाहौर भी जाते हैं। जब पाकिस्तान कारगिल में घुसपैठ करता है, तो वाजपेयी बगैर सरहद की लक्ष्मण रेखा पार किए दुश्मनों को खदेड़ने का भी फैसला लेते हैं। वाजपेयी जी की विदेश नीति जितनी साफ-सुथरी थी। उनकी कविता भी पड़ोसी देशों और दुनिया में हथियारों की रेस पैदा कर हथियारों का कारोबार करने वालों को भारत का पैगाम सीधा सुनाती थी।
मौजूदा राजनीति के 'लास्ट स्टेट्समैन'
अगर ये कहा जाए कि अटल जी मौजूदा राजनीति के लास्ट स्टेट्समैन थे तो गलत नहीं होगा। ये रुतबा अटल बिहारी वाजपेयी को इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने कभी भी गलत को सही नहीं कहा। अटल जी ने हमेशा इस बात का ख्याल रखा कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब के लिए क्या जरूरी है। भारत की राजनीतिक संस्कृति और समाज को जोड़ने के लिए जिस तरह की राह उन्हें ठीक लगी, उसी पर आगे बढ़े। उनकी राजनीति और समाज को लेकर समझ की झलक उनकी कविताओं में भी साफ-साफ झलकती है।
ताउम्र जारी रखा सियासी शिष्टाचार
अटल जी ने सियासी शिष्टाचार ताउम्र जारी रखा। संभवत: इसलिए राजनीति में उनका किसी से बैर नहीं रहा। सबसे संवाद, सबका सम्मान और सबके दुख-सुख में शामिल होना वाजपेयी की शख्सियत का बेजोड़ पहलू था। वो समाज में किसी तरह का बंटवारा नहीं चाहते थे। वह गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ाने वाले नेताओं की फेहरिस्त में सबसे चमकदार नाम हैं। भारतीय परंपरा में मृत्यु को जीवन का अंत नहीं पूर्णता कहा गया है, 16 अगस्त, 2018 को अटल जी ने आखिरी सांस ली और इस दुनिया से कूच गए गए। उन्होंने हर पल को खुलकर जीया। आदर्शों के साथ जीया। दिखावे से दूर रहे, जो बात एक राजनेता के रूप में कहीं कह पाए, उसे अपने कवि मन से कह दिया। एक राजनेता, एक कवि, एक पत्रकार, एक मित्र के रूप में जिंदगी में हर रोल पूरी शिद्दत से निभाते चले गए।
अटल जी की शख्यिसत हर किसी के लिए नजीर
वो कहा करते थे कि मेरी इच्छा है कि बगैर कोई दाग लिए जाऊं। लोग मेरी मृत्यु के बाद कहें कि अच्छे इंसान थे, जिन्होंने अपने देश और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने की कोशिश की। आज की तारीख में अटल जी की शख्यिसत और सियासत हर किसी के लिए नजीर है। वो उदार हिंदुत्व की सबसे मुखर परिभाषा हैं, जिसमें जाति-धर्म से अलग हर किसी के लिए प्यार और सम्मान भरा रिश्ता था।
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