Same Gender Marriage: समलैंगिक विवाह के खिलाफ असम-आंध्र प्रदेश और राजस्थान, 4 राज्यों ने मांगा समय
Supreme Court
Same Gender Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं पर बुधवार को 9वें दिन सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि असम, आंध्र प्रदेश और राजस्थान ने देश में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर हमें 7 राज्यों से जवाब मिला है। इन राज्यों की सरकारों ने इस मामले पर विचार करने के लिए समय की मांग की है।
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केंद्र ने 18 अप्रैल को लिखा था लेटर
बता दें कि केंद्र ने 18 अप्रैल को राज्यों को पत्र जारी कर समलैंगिक विवाह से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय देने को कहा था। असम, राजस्थान और आंध्र प्रदेश ने समान-लिंग विवाह को वैध बनाने का विरोध किया। जबकि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और सिक्किम की सरकारों ने जवाब देने के लिए और समय मांगा।
राजस्थान सरकार ने कहा- बिगड़ जाएगा सामाजिक ताना-बाना
केंद्र के पत्र के जवाब में राजस्थान सरकार ने कहा कि समलैंगिक विवाह सामाजिक ताने-बाने में असंतुलन पैदा करेगा और सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था के लिए दूरगामी परिणाम होंगे। असम ने कहा कि अगर इसकी अनुमति दी गई तो बहुत सारे पर्सनल लॉ प्रभावित होंगे।
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समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट से दूर रखा जाए
वहीं, मंगलवार को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट के दायरे से दूर रखा जाए। क्योंकि इससे इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा मिलेगा साथ ही किराए की कोस से जन्मे बच्चे के भविष्य को लेकर भी हमेशा आशंका बनी रहेगी।
केंद्र सरकार ने इस मामले में एक हलफनामा भी दायर किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्यों ने 19 जनवरी को अपनी बैठक में राय दी थी कि अधिनियम (एस) के तहत परिभाषित युगल की परिभाषा सही है। अधिनियम के तहत समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। वहीं, लिव-इन पार्टनर कानून से बंधे नहीं हैं और सरोगेसी के जरिए पैदा हुए बच्चे की सुरक्षा सवालों के घेरे में आ जाएगी।
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