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महाराजा रणजीत सिंह कौन? जिनका सोने का सिंहासन अंग्रेजों के कब्जे में, संसद में उठी मांग- भारत वापस लाओ

Maharaja Ranjit Singh Gold Throne: आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने लंदन के म्यूजियम से महाराजा रणजीत सिंह का सोने का सिंहासन वापस लाने की मांग की है। उन्होंने मोदी सरकार से अपील की है कि वे भारत के महान योद्धा की विरासत को भारत लाएं। उन्होंने यह मांग राज्यसभा में उठाई।

राघव चड्ढा ने मोदी सरकार से अपील करते हुए राज्यसभा में मांग उठाई।
Gold Throne of Maharaja Ranjit Singh: शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का सोने का सिंहासन लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम से भारत लाने की मांग उठाई गई थी। आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने यह मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि वे यह मांग कर रहे हैं, क्योंकि इससे न सिर्फ पंजाब, बल्कि पूरे देश की आस्था और धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं। मोदी सरकार ब्रिटिश सरकार से बात करके उस सिंहासन को भारत लाने की कोशिश करे, क्योंकि वह सिहांसन भारत का है और उसे भारत के पास ही होना चाहिए। उनकी बहादुरी, उनके आदर्शों और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों के टेक्स्ट बुक का हिस्सा बनाकर बच्चों को उनके बारे में बताया जाना चाहिए। महाराजा रणजीत सिंह जब गरजते थे तो बड़े-बड़े योद्धाओं की रूह कांप उठती थी। उन्होंने पंजाब पर करीब 40 साल राज किया। पाकिस्तान तक उनकी चर्चा होती है। पाकिस्तान में उनकी प्रतिमा भी लगी है। उनके राज में जाति और धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं होता था। BBC वर्ल्ड हिस्ट्री ने महाराजा रणजीत सिंह को Greatest Leader of All Time का खिताब दिया हुआ है। ऐसे महान योद्धा से जुड़ी विरासत अपने पास होनी ही चाहिए।  

सिख समुदाय के संस्थापक और पहले महाराज

भारतीय इतिहास में दर्ज रिकॉर्ड के अनुसार, महाराजा रणजीत सिंह सिखों के पहले महाराज थे। उन्होंने 1801 से 1839 तक पंजाब में राज किया। उनके जन्म की तारीख और मृत्यु की तारीख को लेकर मतभेद हुआ था, इसलिए विवाद को देखते हुए सिख समुदाय ने फैसला लिया कि उनका जन्मदिवस 2 नवंबर और 13 नवंबर दोनों दिन मनाया जाएगा। उनकी बरसी भी 27 जून और 29 जून को मनाई जाएगी। चेचक की बीमारी होने के कारण उन्होंने अपनी बाईं आंख खो दी थी। महाराजा रणजीत सिंह के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के सरदार थे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद 12 साल की उम्र में रणजीत सिंह को सरदार बना दिया गया। 19वीं शताब्दी में उन्होंने पिता के साथ अफगानों के खिलाफ यद्ध लड़ा था। 21 साल की उम्र में पंजाब के महाराज घोषित किए गए। महाराजा रणजीत सिंह का निधन 59 साल की उम्र में हुआ था। अपने जीवनकाल में उन्होंने 23 हिंदू, सिख, मुस्लिम महिलाओं से शादियां की।  

पाकिस्तान में लगी रणजीत सिंह की प्रतिमा

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, महाराजा रणजीत सिंह अनपढ़ थे। उन्हें उनकी माता राज कौर ने पाला, लेकिन 13 साल की उम्र में उनकी जान लेने की कोशिश हुई थी, लेकिन उन्होंने हमलावर को ढेर कर दिया था। 16 साल की उम्र में उनकी शादी मेहताब कौर से हुई थी। उनके 40 साल के शासनकाल में किसी को भी मौत की सजा नहीं दी गई। वे इतने उदार दिल के थे कि युद्ध जीतने के बाद हारने वाले राजा को कोई जागीर दे दिया करते थे, ताकि वह जीवन बिता सके। महाराजा रणजीत सिंह ने ही पंजाब के अमृतसर में बने सिखों के पवित्र धार्मिक स्थल श्री हरमंदिर साहिब (गोल्डन टेम्पल) का जीर्णोधार करवाया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के गुंबद पर सोने का पत्र 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने ही चढ़वाया था। महाराजा रणजीत सिंह को बीमारी के कारण 1838 में लकवा हो गया था, लेकिन 27 जून 1839 को बीमारी से लड़ते-लड़ते वे हार गए। उनकी समाधि पाकिस्तान के लाहौर में है, जहां हर साल महाराजा रकी बरसी और जन्मदिवस पर समागम होते हैं। भारत से भी श्रद्धालुओं का जत्था जाता है। 27 जून 2019 को उनकी 180वीं पुण्यतिथि पर लाहौर में माई जिंदियन हवेली के बाहर उनकी प्रतिमा लगाई गई थी, जिसके उद्धाटन समारोह में भारतीय सिखों का जत्था भी शामिल हुआ था।


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