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जरूरी है PCOS पर कंट्रोल करना, लापरवाही से बढ़ेगा कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज का खतरा!

Health And Wellness: पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम एक ऐसी कंडीशन है, जिसमें हार्मोन इंबैलेंस हो जाते हैं और शरीर में कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। इसलिए इसे समय रहते मैनेज करना चाहिए। 

पीसीओएस की समस्या Image Credit: Freepik
Health And Wellness: पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS), मेनोपॉज और प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादा वजन बढ़ने से जुड़े हार्मोनल इंबैलेंस वाली महिलाओं में ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल के लेवल के साथ मोटापा बढ़ने की संभावना होती है। ये सेल मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया है कि हार्मोनल इंबैलेंस के बारे में जानकारी होना महत्वपूर्ण है, जिसे प्रारंभिक लाइफस्टाइल में सुधार और दवा के साथ आसानी से किया जा सकता है। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में टाइप 2 डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल होने का खतरा ज्यादा क्यों होता है? दरअसल, हार्मोनल इंबैलेंस के कारण होता है। पीसीओएस में, महिलाओं में पुरुष हार्मोन (Androgen) का लेवल नॉर्मल से अधिक होता है, जो ओव्यूलेशन में बाधा डाल सकता है, मेंस्ट्रुअल साइकिल पर असर कर सकता है और ग्लूकोज और इंसुलिन मेटाबॉलिज्म में  बाधा कर सकता है, जो डायबिटीज को ट्रिगर कर सकता है। मेंस्ट्रुअल साइकिल के शुरुआती सालों में अनियमित, हार्मोन के उतार-चढ़ाव और इंबैलेंस से मेनोपॉज के लक्षण खराब हो सकते हैं, प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादा वजन बढ़ सकता है, जो बाद में भी बना रह सकता है और खराब कोलेस्ट्रॉल बढ़ा सकता है। इसीलिए रिप्रोडक्टिव हेल्थ से जुड़ी समस्याओं वाली महिलाओं के लिए इंसुलिन रेजिस्टेंस और सूजन पर जल्दी ध्यान देना जरूरी है ताकि बाद में पुरानी डायबिटीज और हार्ट डिजीज से बच सकें। [caption id="attachment_579572" align="alignnone" ] पीसीओएस Image Credit: Freepik[/caption]

पीसीओएस में कौन सा हार्मोन सबसे ज्यादा परेशान करता है? 

पीसीओएस में टेस्टोस्टेरोन का हाई लेवल शामिल होता है, जो सीधे इंसुलिन रेजिस्टेंस में योगदान कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि शरीर की सेल्स इंसुलिन के प्रभाव से कम रिएक्टिव हो जाती हैं। पेनक्रियाज ब्लड शुगर को कम करने के लिए इंसुलिन का ज्यादा प्रोडक्शन शुरू कर देता है। सालों से ज्यादा इंसुलिन पेनक्रियाज बीटा सेल्स पर दबाव डालता है जो इसे बनाते हैं और डैमेज हो सकते हैं। एक बार जब ये बीटा सेल्स विफल हो जाती हैं, तो इंसुलिन का उत्पादन कम हो जाता है और ब्लड शुगर का लेवल बढ़ने लगता है, जिससे टाइप 2 डायबिटीज खतरा होता है।

हार्मोनल इंबैलेंस पेट की चर्बी पर कैसे असर करता है? 

हाई टेस्टोस्टेरोन और पीसीओएस के अन्य हार्मोनल उतार-चढ़ाव आंत में करते हैं, जिसे हम पेट की चर्बी कहते हैं। इससे फैटी एसिड और सूजन वाले केमिकल निकलते हैं, जो इंसुलिन रेजिस्टेंस को खराब करते हैं और डायबिटीज के खतरे को और भी बढ़ा देते हैं। ये भी पढ़ें- झागदार पेशाब खतरे की घंटी! 5 लक्षण दिखते ही संभल जाएं

ब्लड शुगर बढ़ने के शुरुआती संकेत

पहले पीरियड की शुरुआत 12 साल की आयु से पहले तेजी से मेचुरीटी और हार्मोन चेंज का संकेत देता है, जो बाद में रिप्रोडक्टिव कैंसर और पुरानी बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है। प्रेगनेंसी  प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादा वजन बढ़ने से बाद में वजन कम करना कठिन हो जाता है और गर्भकालीन मधुमेह(Gestational Diabetes)/हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ जाता है। इससे प्रेगनेंसी के बाद टाइप 2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज होने की संभावना बढ़ जाती है। [embed] पेरिमेनोपॉज/मेनोपॉज मेनोपॉज तक हार्मोन में बदलाव समय के साथ दिल की बीमारी या ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम का संकेत दे सकता है। पीसीओएस  इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ डिसऑर्डर में हार्मोन इंबैलेंस शामिल है, जो सूजन और मेटाबॉलिक चेंजेस को ट्रिगर कर सकता है।

इन संकेतों और लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए? 

  • मेंस्ट्रुअल साइकिल के बदलावों पर ध्यान दें।
  • तेजी से वजन बढ़ना जिसे कंट्रोल करना मुश्किल है, चेहरे या शरीर पर ज्यादा बाल, मुंहासे या सिर पर पतले बाल पीसीओएस का संकेत दे सकते हैं।
  • ऐंठन और पेल्विक दर्द का बढ़ना भी संकेत दे सकता है।
Disclaimer: उपरोक्त जानकारी पर अमल करने से पहले डॉक्टर या हेल्थ एक्सपर्ट की राय अवश्य ले लें। News24 की ओर से कोई जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।


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