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Jagannath Rath Yatra 2025: कब से शुरू होगी जगन्नाथ रथ यात्रा, जानें तारीख, महत्व और पौराणिक कथा

Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। यह पर्व भक्ति, सेवा और समर्पण की भावना को जीवंत करता है। आइए जानते हैं, पुरी रथ यात्रा कब से आरंभ होगी, इसका महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?

भगवान जगन्नाथ जब मौसी के दर जाते हैं, तो बीमार पड़ जाते हैं, तब उन्हें दिव्य काढ़ा दिया जाता है।
Jagannath Rath Yatra 2025: ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा भारत के सबसे भव्य और आध्यात्मिक पर्वों में से एक है। यह केवल भक्ति, परंपरा और आस्था के एक अद्भुत पर्व काआयोजन नहीं, बल्कि एक महान सांस्कृतिक उत्सव है, जो विश्व भर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। 2025 में यह यात्रा 27 जून से आरंभ होगी और कुल 9 दिनों तक चलेगी। आइए जानते हैं इससे जुड़ी पूरी जानकारी, रोचक तथ्य और पौराणिक कथा।

रथ यात्रा 2025: तिथि और समय

हिंदू पंचांग के अनुसार, यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को शुरू होती है। 2025 में यह तिथि 27 जून को पड़ रही है। इस दिन से लेकर अगले 9 दिन तक पुरी नगरी भक्ति और उत्सव में डूबी रहती है। सुना बेशा, जो कि 6 जुलाई को है, को यह यात्रा समाप्त होगी, लेकिन इस यात्रा का पूर्ण समापननीलाद्री विजय के दिन यानी 8 जुलाई, 2025 को होगा। ये भी पढ़ें: गहने-आभूषण पहनने के लिए नाक और कान में कब करवाएं छेद, जानें धार्मिक मान्यताएं

रथ यात्रा का महत्व

इस पावन यात्रा में शामिल होकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ को खींचना बेहद पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि रथ खींचने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पर्व भक्ति, सेवा और एकता का अद्भुत संगम है।

रथ यात्रा की पौराणिक कथा

कहते है कि पूरी की रथ यात्रा सुभद्रा की इच्छा से शुरू हुई यात्रा है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा एक बार द्वारका से बाहर निकल कर नगर दर्शन करना चाहती थीं। उनके आग्रह पर भगवान जगन्नाथ यानी श्रीकृष्ण)और बलराम या बलभद्र के साथ रथ में बैठकर नगर भ्रमण पर निकलीं। तभी से यह परंपरा पुरी में हर साल निभाई जाती है।

रथों की खासियत

पूरी रथ यात्रा में कुल 3 रथ होते है। भगवान जगन्नाथ के रथ नंदीघोष के ऊंचाई 44 फीट 2 इंच होती है। वहीं, बलभद्र के रथ तालध्वज की ऊंचाई 43 फीट 3 इंच और देवी सुभद्रा के रथ की ऊंचाई 42 फीट 3 इंच होती है। इन रथों का निर्माण नीम की विशेष लकड़ी से किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में 'दारु' कहते हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि इनमें धातु या कील का प्रयोग नहीं होता। रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से शुरू हो जाता है।

छेरा पन्हारा

छेरा पन्हारा रथ यात्रा में सेवा की एक सबसे ऊंची मिसाल है, जिसमें पुरी के गजपति महाराज स्वयं सोने की झाड़ू से रथों के मार्ग की सफाई करते हैं। यह रस्म यह दर्शाती है कि भगवान के सामने सभी समान हैं, राजा भी और आमजन भी। यह अनुष्ठान दो बार होता है- प्रस्थान और वापसी के समय।

मौसी के घर गुंडीचा मंदिर यात्रा

रथ यात्रा के दौरान भगवान अपने भाई-बहन के साथ पुरी के गुंडीचा मंदिर जाते हैं, जो उनकी मौसी का घर माना जाता है। वहां 7 दिन ठहरने के बाद भगवान फिर जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं, जिसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है। ये भी पढ़ें: हथेली पर दिखें ये रेखाएं और चिह्न तो नसीब में पैसा ही पैसा, सफलता भी चूमेगी आपके कदम
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।


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