Rajasthan Deputy CM Oath Controversy: राजस्थान में शुक्रवार को भजनलाल शर्मा ने सीएम पद की शपथ ली। वहीं डिप्टी सीएम पद पर दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा ने शपथ ली। अब इसको लेकर विवाद शुरू हो गया है। शपथ समारोह के बाद डिप्टी सीएम पद की शपथ को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ओमप्रकाश सोलंकी ने कहा कि डिप्टी सीएम पद का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है इसलिए यह नियुक्ति रद्द की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता ओमप्रकाश सोलंकी ने तर्क देते हुए कहा कि डिप्टी सीएम मंत्री ही होता है, ऐसे में शपथ के दौरान उन्होंने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली जो कि टेक्निकली सही नहीं है दोनों की नियुक्ति को रद्द किया जाना चाहिए। इस बार राजस्थान के अलावा एमपी और छत्तीसगढ़ में भी दो-दो डिप्टी सीएम बनाए गए हैं। हालांकि डिप्टी सीएम पद की शपथ कभी नहीं ली जाती है। बल्कि यह केवल राजनीतिक पद होता है ऐसे में डिप्टी सीएम पद पर बैठने वाले केबिनेट मंत्री के समान ही होते हैं।
राजस्थान में पहले भी बनाए गए हैं डिप्टी सीएम
ऐसा नहीं है कि राजस्थान में पहली बार डिप्टी सीएम बनाए गए हैं। इससे पहले 1952 के पहले चुनाव में जब जयनारायण व्यास सीएम बने तो टीकाराम पालीवाल डिप्टी सीएम बनाए गए थे। 1993 में भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में हरिशंकर भाभड़ा डिप्टी सीएम बनाए गए थे। इसके बाद 2002 में अशोक गहलोत की सरकार में भी कमला बेनीवाल और बनवारीलाल बैरवा को डिप्टी सीएम बनाया गया था। इसके बाद 2018 में अशोक गहलोत जब दोबारा सीएम बने तो सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया गया था। इस दौरान सभी नेताओं ने डिप्टी सीएम पद की नहीं बल्कि कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली थी।
हाईकोर्ट खारिज कर चुका है कई याचिकाएं
अब आते हैं याचिका पर डिप्टी सीएम पद की शपथ को लेकर पहले भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर हुई हैं लेकिन कोर्ट इन्हें खारिज कर चुका है। अलग-अलग समय में कर्नाटक, पंजाब और बाॅम्बे हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर हुईं थीं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि डिप्टी सीएम को भी संविधान के आर्टिकल 164 (3) के तहत शपथ दिलाई जाती है। डिप्टी सीएम पद की शपथ से संविधान के किसी पद का उल्लंघन नहीं होता है।
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डिप्टी सीएम के पास होती हैं ये शक्तियां
संविधान के अनुच्छेद 163 (1) में लिखा गया है कि राज्यपाल को संविधान के अनुसार फैसले करने और सलाह देने के लिए सीएम के नेतृत्व वाली एक मंत्रिपरिषद् होगी। वहीं संविधान के अनुच्छेद 164(3) के तहत डिप्टी सीएम के पास केवल वे ही शक्तियां होती है जो एक मंत्री के पास होती है। ऐसे में यह पद केवल एक राजनीतिक नियुक्ति भर है। संविधान की नजर वो केवल एक मंत्री है।