राज बचाने में जुटे सीएम गहलोत, तो रिवाज कायम रखने के लिए वसुंधरा ने लगाई ताकत, पढ़ें 6 हाॅट सीटों का विश्लेषण
Rajasthan Assembly Election 2023 Hot Seat
Rajasthan Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले कई दिग्गज चुनाव मैदान में जोर आजमाइश में जुटे हैं। प्रदेश में वोटिंग से पहले पीएम मोदी समेत कई कांग्रेस के कई दिग्गज नेता रैलियां और रोड शो कर माहौल अपने पक्ष में करने में जुटे हैं। इस बीच में प्रदेश में 25 नवंबर को मतदान होना है। सबके जेहन में एक ही सवाल है कि क्या प्रदेश में राज बदलने का रिवाज कायम रहेगा या फिर गहलोत एक बार फिर सत्ता में वापसी करेंगे।
कांग्रेस ने कल जारी किए अपने घोषणा पत्र में कई बड़े वादे किए हैं। इससे एक दिन पहले भाजपा ने भी अपना सकंल्प पत्र जारी किया जिसमें लोक-लुभावने वादों की भरमार रही। कुल मिलाकर राजनीतिक चौसर बिछ चुकी है। अब मतदाताओं की बारी है वे किसके पक्ष में अपना फैसला सुनाते हैं।
राजस्थान में सरकार किसकी बनेगी? इसका फैसला 3 दिसंबर को होगा, लेकिन कांग्रेस-भाजपा के नेता चुनाव के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। सीएम गहलोत और वसुंधरा राजे ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। वहीं इन दोनों नेताओं के अलावा सचिन पायलट से लेकर राजेंद्र राठौड़ तक सभी दिग्गज नेता सर्दियों के मौसम में भी जमकर पसीना बहा रहे हैं। इन सबके बीच कैसा है राजस्थान की 6 हाॅट सीटों का हाल आईये जानते हैं इस विश्लेषण के जरिए।
1. सरदारपुरा
जोधपुर की सरदारपुरा एक शहरी सीट है। यह सीट सीएम गहलोत की परंपरागत सीट रही है। सीएम गहलोत नामांकन के बाद एक भी दिन प्रचार करने वहां नहीं गए। कांग्रेस के कार्यकर्ता घर-घर जाकर चुनाव प्रचार में जुटे हैं। प्रचार में जुटे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कहा कि जादूगर को अपनी सीट से चिंता करने की जरूरत नहीं है। यहां की जनता ने उनको रिवाज बदलने केे लिए छोड़ दिया है। वहीं इस सीट से भाजपा ने प्रो. महेंद्र राठौड़ को प्रत्याशी बनाया है जो कि इसी महीने से नौकरी से सेवानिवृत हो रहे हैं। हालांकि इस सीट से सीएम गहलोत की जीत तय मानी जा रही है।
2. झालरापाटन
वसुंधरा राजे झालावाड़ की झालरापाटन सीट से 1998 से चुनाव लड़ती आ रही है। पूर्व सीएम भैंरोसिंह उन्हें धौलपुर सीट से यहां लाकर चुनाव लड़वाए थे। ऐसे में यहां से उनकी जीत तय मानी जा रही है। यहां से कांग्रेस ने नए प्रत्याशी रामलाल चैहान को मैदान में उतारा है। यहां से उनकी जीत तय मानी जा रही है। इस बीच वसुंधरा पूरे प्रदेश में भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में रैलियों को संबोधित कर रही है। हालांकि पार्टी ने अभी उनको सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया है। फिर भी उन्हें भरोसा है कि चुनाव जीतने के बाद एक बार फिर सेहरा उनके सिर पर ही बंधेगा।
3. टोंक
पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट टोंक सीट से चुनाव मैदान में हैं। इस बार भाजपा ने उनके सामने अजीत मेहता को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने 2018 में सचिन पायलट को टोंक सीट से चुनाव लड़ने भेजा था। इससे पहले यह सीट भाजपा की सेफ सीट मानी जाती थी, लेकिन पायलट के लड़ने से यहां समीकरण बदल गए हैं। हालांकि स्थानीय गुर्जर युवाओं में उनको सीएम नहीं बनने को पार्टी के खिलाफ गुस्सा है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा इस चुनाव को बाहरी बनाम स्थानीय का बनाकर लड़ ही है। ऐसे में पायलट फिलहाल अपनी सीट पर ही जमे हुए हैं और घर-घर जाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
4. नाथद्वारा
राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष और कांग्रेस के कद्दावर नेता सीपी जोशी के सामने इस मेवाड़ के स्वाभिमान की चुनौती है। इस बार उनका मुकाबला मेवाड़ राजपरिवार के पूर्व सदस्य विश्वराज सिंह से हैं। इस बीच विश्वराज सिंह लगातार चुनाव मैदान में जुटे हैं। वहीं सीपी जोशी भी लगातार अपने पक्ष मेें माहौल बनाने में जुटे हैं। जोशी लंबे समय से इस सीट से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। ऐसे में यह चुनाव उनकी प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है। वैसे भी राजस्थान में विधानसभा अध्यक्ष पद पर रह चुके नेताओं का करियर अक्सर डांवाडोल ही रहता है।
5. लक्ष्मणगढ़
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का मुकाबला इस बार भाजपा के दिग्गज नेता रहे और कुछ समय पहले ही कांग्रेस से भाजपा में आए सुभाष महरिया से हैं। डोटासरा इस सीट से लगातार तीन बार से जीतते आ रहे हैं। दोनों के बीच कांटे की टक्कर हैं। सुभाष महरिया के उतरने से मुकाबला कड़ा हो गया है। ऐसे में से डोटासरा अन्य प्रत्याशियों के लिए प्रचार करने नहीं जा पा रहे हैं।
6. तारानगर
इस सीट पर मुकाबला इस बार काफी रोचक हो गया है। यहां भाजपा ने इस बार दिग्गज नेता राजेंद्र राठौड़ की सीट बदलकर तारानगर से मैदान में उतारा है। इससे पहले वे चूरू से चुनाव लड़ते आए हैं। उनका मुकाबला इस सीट से तीन बार के विधायक नरेंद्र बुढ़ानिया से होने जा रहा है। उन्होंने पांच साल पर स्थानीय स्तर पर खूब का काम राए हैं। जाट बहुल होने के साथ ही इस सीट पर मुस्लिमों की भी अच्छी खासी संख्या है। ऐसे में राठौड़ फंस गए हैं और वे दूसरी जगहों पर प्रचार करने नहीं जा पा रहे हैं।
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