Trendingind vs saIPL 2025Maharashtra Assembly Election 2024Jharkhand Assembly Election 2024

---विज्ञापन---

Nobel Prize Day : रवींद्रनाथ कुशारी से कैसे बने टैगोर? कैसा था साहित्य में उच्च सम्मान पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय का जमींदार के रूप में प्रदर्शन?

Nobel Prize Day ; Rabindranath Tagore The First Non EuropeanTo Get Nobel Prize in Literature : रवींद्रनाथ टैगोर को सिर्फ साहित्य के लिए ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक के तौर पर भी जाना जाता है। किसानों के उत्थान के लिए उन्होंने बहुत से कार्य किए।

कविवर रवींद्रनाथ टैगोर। -फाइल से
Nobel Prize Day : जिन रवीन्द्रनाथ टैगोर की लिखी कविता 'जन-गण-मन' को भारतीय राष्ट्रगान का सम्मान मिला हुआ है और चाहे कितना भी ऊंचा सिर हो, इसके बजते ही अपने आप झुक जाता है। इस महान रचना के रचनाकार रवीन्द्रनाथ टैगोर को समझना बड़ी 'टेढ़ी खीर' है। उन्होंने अपनी रचनात्मक प्रतिभा की बदौलत कवि, उपन्यासकार, नाटककार और समाज सुधारक सहित कई उपलब्धियां हासिल कीं। उनकी प्रतिभा ने 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार दिलाया। वह पहले गैर-यूरोपीय और पहले गीतकार थे जिन्हें यह पुरस्कार दिया गया। हालांकि एक ताज और भी था, जो महान बंगाली नोबेल पुरस्कार विजेता के सिर सजा और इसके बारे में कभी ज्यादा चर्चा नहीं हुई है। रवीन्द्रनाथ टैगोर एक जमींदार भी थे और रिकॉर्ड की मानें तो वह उस विभाग में भी काफी अच्छे थे। आज नोबेल पुरस्कार दिवस पर आइए, जानें कि लोगों के शासक के रूप में उनका प्रदर्शन कैसा था।

जन्मजात जमींदार नहीं थे रवीन्द्रनाथ टैगोर

रवीन्द्रनाथ टैगोर जन्मजात जमींदार नहीं थे। उनका उपनाम भी उनका अपना नहीं था। अविभाजित बंगाल (अब पश्चिमी बंगाल) के बर्दवान जिले में कुश नामक गांव के पिराली ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते रवीन्द्रनाथ टैगोर मूल उपनाम 'कुशारी' था। टैगोर तो उनके नाम के साथ बाद में जुड़ा, जो ठाकुर शब्द का अंग्रेजी अनुवाद है। थोड़ा इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलेगा कि एक बार महाराजा क्षितिसुरा ने परिवार के पूर्वज दीन कुशारी को कुश नामक एक गांव दिया था (रवीन्द्रनाथ टैगोर के जीवनी लेखक प्रभात कुमार मुखोपाध्याय की पुस्तक 'रवीन्द्रजीबानी ओ रवीन्द्र साहित्य प्रकाशक' के पहले खंड में उल्लेखित)। वह इसका प्रमुख बन गया और कुशारी के नाम से जाना जाने लगा। बरसों बाद एक धनी व्यापारी जयराम टैगोर चंदननगर में फ्रांसीसी सरकार के दीवान बन गए। उनके सबसे बड़े बेटे निलमोनी टैगोर अपने छोटे भाई दर्पनारायण टैगोर के साथ अनबन के बाद कोलकाता के जोरासांको में जा बसे और यहां ठाकुर बारी का निर्माण किया। इनमें से एक नाम द्वारकानाथ टैगोर था, जिन्हें उनके उपनाम राजकुमार से भी जाना जाता था। ब्रिटिश साझेदारों के साथ उद्यम स्थापित करने वाले भारत के पहले उद्योगपतियों में से एक इस शख्स ने टैगोर परिवार को असल मायनों में अमीर बनाया। उन्हीं के पोते को रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाम से जाना जाता है। यह भी पढ़ें: क्या होते हैं SPICE Bombs? भारत ने बालाकोट स्ट्राइक में इस्तेमाल किए थे, अब गाजा पर गिरा रहा इजरायल

28 वर्ष की उम्र में मिली थी यह जिम्मेदारी

1889 में 28 वर्ष की उम्र में रवीन्द्रनाथ टैगोर को 250 रुपए के मासिक वेतन पर प्रॉपर्टी मैनेजमेंट की जिम्मेदारी मिली। उस समय जमींदार क्रूरता, अहंकार, असहिष्णुता और कई अन्य बुराइयों के लिए जाने जाते थे। एक युवा जमींदार के रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर को उनके पिता देबेंद्रनाथ टैगोर ने ग्रामीण पूर्वी बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश) के अंदरूनी हिस्सों में जाकर रहने के लिए कहा था, जो सैकड़ों नदियों-नालों, खाड़ियों, दलदलों और दलदलों से घिरा हुआ था। हालांकि कोलकाता में अपने घर के शोर-शराबे और हलचल से दूर जाकर वह खुश नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपनी मानसिक और शारीरिक चुनौतियों पर काबू पाते हुए ग्रामीण बंगाल में गरीब लोगों के बारे में एक असामान्य धारणा स्थापित की। उनका कायाकल्प कार्यक्रम इस प्रस्ताव के साथ शुरू हुआ कि लोगों को सभी मामलों में न्याय पाने के लिए जिला या उप-विभागीय न्यायाधीशों की अदालत में जाने की जरूरत नहीं है। यह भी पढ़ें: Pilatus PC-7 MK II देश में पहली बार हुआ Crash, पर अमेरिका में ले चुका 5 की जान; जानें इसकी खासियतें और अचीवमेंट्स

नोबेल पुरस्कार में मिली रकम लगा दी सहकारी बैंक में

1897 में रवीन्द्रनाथ टैगोर को कांग्रेस के पबना प्रांतीय सम्मेलन में बतौर वक्ता आमंत्रित किया गया तो वहां उन्होंने साथी जमींदारों से आम लोगों के उत्थान के लिए काम करने को कहा। उन्होंने कहा कि अगर अधिकांश लोग जमींदारों, साहूकारों के लालच और कानून के हथियारों के संपर्क में रहेंगे तो उनकी जीवन स्थितियों में कभी सुधार नहीं हो सकेगा। उन्होंने नई प्रणालियां, नियम और वित्तीय संस्थान लाए और उनकी देखभाल का जिम्मा सहकारी समितियों को सौंपा। गरीब ग्रामीणों को धीरे-धीरे अपनी ताकत मिली। उन्होंने विकास और कल्याणकारी गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिए जिम्मेदार 'हितैषी सभा' नामक एक ग्राम कल्याण समिति का गठन किया। इसके अलावा सहकारी बैंकों की स्थापना की। ग्रामीणों से बैंक में 'कॉमन फंड' रखने और इस बैंक से प्राप्त ऋण का उपयोग करके अन्य सभी ऋण चुकाने का आग्रह किया, जिससे उन्हें कर्ज से मुक्ति मिली। ऐसे ही एक बैंक में टैगोर ने नोबेल पुरस्कार से मिले अपने पूरे 1,20,000 रुपए निवेश कर दिए। एक और Explainer: जानें क्यों आते हैं Cyclone और क्यों भारत के लिए खतरा बनते हैं? 5 तूफान, जो देश में मचा चुके तबाही

शेलैहदाह और पतिसार में दो प्रायोगिक कृषि फार्म स्थापित किए

एक जमींदार के रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने अधिकार के तहत रहने वाले किसानों के विकास के लिए बड़ा प्रयास किया, वहीं अपने बेटे रथींद्रनाथ को कृषि पर अध्ययन के लिए अमेरिका भेजा। वापसी के बाद रवींद्रनाथ ने शेलैहदाह और पतिसार में दो प्रायोगिक कृषि फार्म स्थापित किए। अमेरिका से आधुनिक कृषि उपकरण आयात किए गए थे और रथींद्रनाथ खुद ट्रैक्टर चलाते थे और किसानों को दूसरी मशीनों को संभालने की ट्रेनिंग दिया करते थे। इसी के साथ रवीन्द्रनाथ टैगोर शायद इकलौते ऐसे जमींदार थे, जिन्होंने किसानों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सीधे मिलने की अनुमति दी। उनका मानना था कि उनकी संपत्ति में जमींदार और किरायेदारों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। इसी वजह से आज भी पतिसार के लोग रवीन्द्रनाथ टैगोर कवि के रूप में नहीं, बल्कि 'बाबूमोशाय' के रूप में जानते हैं।


Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.