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Explainer: भारत की पहली विंटर आर्कटिक एक्सपीडिशन… जानिए क्या है यह और क्यों है महत्वपूर्ण

India’s First Arctic Winter Expedition : दुनिया के सबसे कम एक्सप्लोर किए गए क्षेत्रों में से एक आर्कटिक के बारे में जानकारी जुटाने के लिए भारत ने अपनी पहली विंटर एक्सपिडीशन की शुरुआत की है। जानिए यह अभियान क्या है, कितना अहम है और इस दौरान भारतीय टीम क्या करेगी...

Himadri station during winter season (NCPOR)
India’s First Arctic Winter Expedition : विज्ञान के क्षेत्र में भारत उल्लेखनीय उपलब्धियां अर्जित कर रहा है और अब हमारा देश धरती के सबसे ठंडे इलाके को एक्सप्लोर करने जा रहा है। बीते मंगलवार को आर्कटिक में देश की पहली विंटर एक्सपीडिशन की शुरुआत की गई थी। इसके तहत नॉर्वे के स्वालबार्ड में पूरे साल ऑब्जर्वेशन की जाएगी। भारत की ध्रुवीय एक्सपीडिशन्स के लिए नोडल एजेंसी नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) का Ny-Alesund रिसर्च बेस पर एक रिसर्च स्टेशन है जिसका नाम हिमाद्रि है। यह नॉर्थ पोल से 1200 किलोमीटर की दूरी पर है। यह क्षेत्र का चौथा ऐसा रिसर्च स्टेशन होगा जहां पूरे साल लोग रहेंगे। इस रिपोर्ट में जानिए कि यह एक्सपीडिशन क्या है, इसका उद्देश्य क्या है और देश के लिए यह कितना अहम है... पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजिजू ने सोमवार को आर्कटिक क्षेत्र में विंटर साइंस एक्सपीडिशन को हरी झंडी दिखाई थी। इसके तहत हिमाद्रि पर पूरे साल भारत की मौजूदगी रहेगी। मंगलवार को चार वैज्ञानिकों की टीम इस रिसर्च स्टेशन के लिए रवाना हुई थी। यह एक्सपीडिशन और अन्य एक्सपेरिमेंट मार्च के अंत तक जारी रहेंगे। हर रिसर्च टीम एक महीना यहां गुजारेगी।

नाटकीय तरीके से गर्म हो रहा आर्कटिक

NCPOR के डायरेक्टर थंबन मेलोथ के अनुसार इस रिसर्च से नॉर्दर्न लाइट्स, सर्दियों के दौरान एटमॉस्फेयरिक इलेक्ट्रिसिटी और अन्य अध्ययनों के लिए जरूरी डाटा जुटाने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिक पोलर नाइट्स के दौरान एटमॉस्फेयरिक ऑब्जर्वेशन करेंगे, समुद्री बर्फ में बदलाव की निगरानी करेंगे और क्लाइमेट चेंज में तेजी व इसमें एयरोसोल्स की भूमिका का अध्ययन करेंगे। मेलोथ का कहना है कि आर्कटिक नाटकीय तरीके से गर्म हो रहा है और इसका असर पूरी दुनिया में देखने को मिला है। ऐसे में पूरे साल डाटा इकट्ठा करना और यह सुनिश्चित करना कि कोई नॉलेज गैप नहीं है बहुत जरूरी हो गया है। इस एक्सपीडिशन में पहली टीम बेंगलुरु के रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की है जो स्वालबार्ड में रेडियो फ्रीक्वेंसी एनवायरमेंट पर फोकस करेगी। इस टीम का नेतृत्व संस्थान में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग ग्रुप के गिरीश बीएस कर रहे हैं। बाकी टीम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियरोलॉजी पुणे, आईआईटी मंडी और एनसीपीओआर गोवा की हैं।

आर्कटिक को एक्सप्लोर करना जरूरी है

आर्कटिक धरती का सबसे कम एक्सप्लोर किए गए क्षेत्रों में है जिसके बारे में बहुत कम जानकारी है। इसका एक बड़ा हिस्सा बर्फ से ढका समुद्र है। जलवायु परिवर्तन से बर्फ का यह कवर कम होता जा रहा है और वैज्ञानिकों का मानना है कि आर्कटिक के पर्यावरण को और भविष्य में बाकी दुनिया पर इसके असर को समझने के लिए इस क्षेत्र का अध्ययन करना जरूरी है। पिछले 100 साल की अवधि कै दौरान आर्कटिक के तापमान में औसतन चार डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। क्षेत्र में समुद्री बर्फ हर दशक में 13 प्रतिशत की दर से कम हो रही है। क्लाइमेट चेंज पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल के मुताबिक अगर ऐसा ही होता रहा तो इस क्षेत्र से बर्फ खत्म होने में 20 साल का समय भी नहीं लगेगा।

चुनौतियों से भरा आर्कटिक एक्सप्लोरेशन

आर्कटिक में सबसे बड़ी चुनौती है एक्स्ट्रीम क्लाइमेट। यहां की जलवायु बहुत कठिन है और महीनों तक यहां अंधेरा छाया रहता है। इसके अलावा ध्रुवीय भालू भी काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं। Ny-Alesund में फरवरी सबसे ठंडा महीना रहता है जब तापमान माइनस 14 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। वहीं सबसे गर्म महीना जुलाई का रहता है जब तापमान पांच डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहता है। मेलोथ कहते हैं कि अंटार्कटिक में परिस्थितियां ज्यादा मुश्किल होती हैं और एक्सप्लोरेशन के लिए वह ज्यादा दूर है लेकिन आर्कटिक ज्यादा चुनौती भरा है क्योंकि यहां स्वतंत्र स्टडीज के लिए सीमित जगह है। आर्कटिक सर्कल के ऊपर का इलाका आर्कटिक काउंसिल बनाने वाले आठ देशों का हिस्सा है। ये देश अमेरिका, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और रूस हैं। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से रूसी आर्कटिक बाकी दुनिया की पहुंच से फिलहाल बाहर है।

आर्कटिक में भारत ने अब तक क्या किया

इस क्षेत्र में भारत की पहली एक्सपीडिशन साल 2007 में हुई थी। पांच वैज्ञानिकों ने माइक्रोबायोलॉजी, एटमॉस्फेयरिक साइंसेज और जियोलॉजी का अध्ययन करने के लिए इंटरनेशनल आर्कटिक रिसर्च फैसिलिटीज का दौरा किया था। देश के स्थायी स्टेशन हिमाद्रि पर जुलाई 2008 में काम शुरू हुआ था। आर्कटिक में रिसर्च संबंधी गतिविधियों के लिए हिमाद्रि जरूरी लैबोरेटरी सपोर्ट उपलब्ध कराता है। यह पोलर नाइट्स के दौरान ऑब्जर्वेशन के लिए सुविधाओं से लैस है जो 24 घंटे से ज्यादा अवधि तक चलती हैं। अत्यधिक मुश्किल मौसम के दौरान जरूरी विशेष उपकरण और ट्रांसपोर्ट व्यवस्थाएं भी यहां मौजूद हैं। भारत सरकार ने अपनी आर्कटिक पॉलिसी पिछले साल पेश की थी जिसका लक्ष्य क्षेत्र में और रिसर्च स्टेशन और सैटेलाइट ग्राउंड स्टेशन बनाना है। अभी तक केवल 10 देश ऐसे हैं जिनके इंटरनेशनल आर्कटिक रिसर्च बेस पर स्थायी केंद्र हैं। ये भी पढ़ें: क्या डोनाल्ड ट्रंप अब लड़ पाएंगे राष्ट्रपति चुनाव?  ये भी पढ़ें: चीन में भूकंप आने से क्यों मचती है इतनी तबाही? ये भी पढ़ें: दाऊद इब्राहिम को क्यों बचाता रहता है पाक?  ये भी पढ़ें: कोरोना का नया वैरिएंट JN.1 कितना खतरनाक?


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