अमेरिका से अधिकारियों की एक टीम भारत के साथ ट्रेड डील पर बातचीत के लिए दिल्ली आई हुई थी. दोनों देशों ने दो दिन की बातचीत के बाद कहा कि हम समझौते को लेकर ठीक-ठाक जगह पहुंच गए हैं. इसी दौरान संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर का बयान भी आया. उन्होंने कहा कि भारत की ओर से अभी तक का सबसे अच्छा ऑफर हमें मिला है. हालांकि, साथ ही उन्होंने कहा कि भारत एक मुश्किल चुनौती भी है. अब सवाल यह पैदा होता है कि जब अमेरिका को लगता है कि भारत सबसे अच्छा ऑफर दे रहा है. तो फिर ट्रेड डील कहां अटक रही है. ऐसा अमेरिका, भारत से क्या मांग रहा है, जिसकी वजह से इस समझौते को अमली जामा नहीं पहनाया जा सक रहा. हम बताएंगे, कि इस ट्रेड डील में क्या पेच फंस रहा है.
क्या चाहता है अमेरिका
अक्सर किसी दो देशों में कोई भी समझौता होता है, तो उनका मानना होता है कि ट्रेड बढ़ेगा तो दोनों देशों को फायदा होगा. लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का नजरिया कुछ अलग है. ट्रंप देखते हैं कि किसी भी डील से अमेरिका को क्या फायदा होगा. अमेरिका भारत पर हावी होना चाहता है. लेकिन अमेरिका के दबाव का भारत पर कोई असर होते नहीं दिख रहा. भारत-अमेरिकी ट्रेड डील की बात करें, तो अब देखना ये होगा कि कौन किसे कितना फायदा देगा. ट्रेड डील पर बातचीत के बीच ही पीएम मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भी बातचीत हुई थी. लेकिन अभी भी ट्रेड डील फाइनल नहीं हुई. देखना ये भी होगा कि दोनों में से कौन देश किस पर ज्यादा निर्भर है. यानी अमेरिका को भारत के बाजार की ज्यादा जरूरत है, या भारत को अमेरिकी बाजार की.
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अमेरिका की मांगें?
- अमेरिकी एग्रीकल्चर और डेयरी प्रोडेक्ट्स के लिए भारत अपना मार्केट खोले
- US डेयरी प्रोडेक्ट्स को भी भारतीय मार्केट में मिले एंट्री
- मक्का, सोयाबीन, गेहूं, सेब और अन्य फल या एग्री प्रोडेक्ट्स पर टैरिफ कम हो
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भारत क्यों नहीं खोल रहा मार्केट
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत की इकॉनमी में करीब 16 फीसदी योगदान खेती और उससे जुड़े सेक्टरों का है. भारत खुद एक कृषि प्रधान देश है. यहां करोड़ों छोटे किसान हैं. जिनकी आजीविका का साधन खेती ही है. अमेरिकी के एग्री प्रोडेक्ट्स काफी सस्ते हैं. अगर अमेरिकी प्रोडेक्ट्स भारत के मार्केट में आते हैं तो उसका सीधा असर भारत के किसानों पर पड़ेगा. ऐसे में भारत बिल्कुल नहीं चाहता कि भारत के किसानों को कोई नुकसान हो.
डेयरी प्रोडेक्ट्स पर क्या एतराज
भारत अमेरिका के डेयरी प्रोडेक्ट्स के लिए भी अपना मार्केट नहीं खोलना चाहता. क्योंकि डेयरी इंडस्ट्री से भी लाखों परिवार जुड़े हुए हैं. इससे भी लाखों लोगों का घर चलता है. अगर अमेरिका के सस्ते प्रोडेक्ट्स भारत में आते हैं तो उससे इन पर असर पड़ेगा. अमेरिका अपने डेयरी किसानों को भारी सब्सिडी देता है. इसकी वजह से उनके प्रोडेक्ट्स सस्ते हैं. ऐसे में भारत के छोटे किसान उनके सामने कहीं टिक नहीं पाएंगे.
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धार्मिक एंगल क्या है?
भारत का मानना है कि अमेरिका के डेयरी प्रोडेक्ट्स शाकाहारी नहीं है. अगर वे भारत के मार्केट में आते हैं तो इससे धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं. अमेरिका में गायों को मांस और हड्डी का चूरा मिला हुआ चारा खिलाया जाता है. ऐसे में भारत उस दूध को 'मांसाहारी' मानता है. भारत की मांग है कि आप हमें यह साबित करके दें कि आपके डेयरी प्रोडेक्ट्स पूरी तरह से शाकाहारी हैं. जहां भारत में गाय को पवित्र माना जाता है, वहां यह कदम सही नहीं होगा.
वहीं, भारत को अमेरिका के डेयरी प्रोडेक्ट्स में पाए जाने वाले ग्रोथ हार्मोन की भी चिंता है. भारत का मानना है कि इसका भारतीयों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. इसके अलावा, भारत जेनेटिक रूप से मॉडिफाई- यानी आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य फसलों को मंजूरी नहीं देता है. अमेरिका में मक्का और सोयाबीन की फसलें पूरी तरह से जेनेटिक रूप से मॉडिफाई हैं.
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क्यों अड़ा भारत?
इसे सियासी तौर पर देखें तो भारत में किसान वोटर्स की संख्या बहुत ज्यादा है. मोदी सरकार साल 2020 में तीन कृषि कानून लेकर आई थी, लेकिन इसका पूरे देश में खूब विरोध हुआ था. हजारों किसानों ने दिल्ली में महीनों तक डेरा डाले रखा. आखिर सरकार को झुकना पड़ा. फिर सरकार ने दिसंबर 2021 में इन कानूनों को वापस ले लिया. ऐसे में अगर अमेरिका की ट्रेड डील से किसानों पर कोई भी असर पड़ता है तो मोदी सरकार फिर किसानों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती. क्योंकि भारत का मार्केट अगर यूएस प्रोडेक्ट्स के खुलता है तो इसका सीधा असर भारत के किसानों पर पड़ेगा. इसकी पूरी संभावना है कि किसान इसका विरोध करेंगे और विपक्ष को भी सरकार को घेरने का एक मौका मिल जाएगा.