Who is Karsandas Mulji: आमिर खान के बेटे जुनैद खान की फिल्म 'महाराज' नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है, जो 162 साल पुरानी कहानी है। दरअसल, जब कोई भी इंसान, इंसानियत भूलकर बस अपने बारे में सोचे और लोगों का शोषण करने लगे, तब कोई ना कोई मसीहा जरूर आता है। साल 1862 में जब धर्म और आस्था के नाम पर एक प्रथा ने महिलाओं का शोषण किया, तब सामने आए महान सुधारक 'करसनदास मूलजी'। जी हां, वही करसनदास, जिन्होंने औरतों को उनका हक दिलाने के लिए अपनी हर एक चीज का त्याग किया। हालिया रिलीज फिल्म 'महाराज' में करसनदास की इसी कहानी को दिखाया गया है।
कौन थे Karsandas Mulji?
करसनदास मुलजी एल्फिंस्टन कॉलेज के पूर्व छात्र और गुजराती पत्रकार थे। करसनदास साहब स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति थे और हमेशा सच्चाई की राह पर चलते थे। करसनदास मुलजी एलफिंस्टन कॉलेज के छात्र समाज द्वारा चलाई जाने वाली गुजराती ज्ञानप्रसारक मंडली (ज्ञान के प्रसार के लिए गुजराती सोसायटी) के सक्रिय सदस्य थे। साल 1851 में उन्होंने बतौर पत्रकार काम शुरू किया। हालांकि ये उनके लिए इतना आसान नहीं था। जब धर्म के नाम पर उन्होंने महिलाओं के साथ हो रही ज्यादती को देखा तो उन्होंने धर्म के ठेकेदारों को ही ललकार दिया और आखिर में जीत हालिस की।
[caption id="attachment_760479" align="alignnone" ] Karsandas Mulji, junaid khan[/caption]
करसनदास ने ऐसा क्या किया, जो आज भी लोग उनकी तारीफ करते हैं?
दरअसल, बात है उस जमाने की जब लोगों में आस्था के लिए विश्वास नहीं बल्कि अंधविश्वास हुआ करता था। धर्म के सौदागर अपनी दुकान चलाने के लिए औरतों को मोहरा बनाते थे और अपनी वासना को शांत करते थे। जब करसनदास ने देखा कि धर्म के नाम पर औरतों का शोषण किया जा रहा है, तो ये उन्हें हजम नहीं हुआ और उन्होंने इसके खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया।
अंधविश्वास की लड़ाई
नतीजन एक इंसान अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने के लिए रणभूमि में अकेला खड़ा था और उसके सामने ना जाने कितनी चीजें ऐसी थी, जो उसे बार-बार झुका रही थी। हालांकि करसनदास ने कभी हार नहीं मानी और औरतों के हक की लड़ाई लड़ते रहे, जिससे 'चरण सेवा' जैसी कुप्रथाएं बंद हो गई और औरतों को मान-सम्मान से जीने का हक मिला।
करसनदास ने लड़ी महिलाओं के हक की लड़ाई
हालिया रिलीज फिल्म 'महाराज' में भी यही दिखाया गया कि जब करसन ने विधवा पुनर्विवाह, चरण सेवा और आस्था के लिए अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई, तो कैसे अंहकार और जिद्द ने उन्हें ललकारा, लेकिन वो कभी पीछे नहीं हटे और अपनी लड़ाई जारी रखी। हालांकि इस लड़ाई में भले ही उन्होंने कई चीजों का सामना किया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने करसन की मदद की और उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचने का हौसला बढ़ाया।
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