What is Maharaj Libel Case: हाल ही में आमिर खान के बेटे जुनैद खान की फिल्म 'महाराज' रिलीज हुई है। अब भई ओटीटी पर कोई फिल्म रिलीज हो और दर्शक उसे इग्नोर कर दें, ऐसा तो नहीं हो सकता। 'महाराज' एक ऐसी फिल्म, जो 162 साल पुराने केस पर बनी है। जी हां, 162 साल यानी ये कहानी है 1862 की, जब धर्म और आस्था के नाम पर धर्म के ठेकेदार ही उसके भक्षक बन जाए, तो किसी ना किसी को तो सामने आना ही पड़ता है। 1862 में भी जब धर्म के रक्षक उसके भक्षक बन गए, तो धर्म की रक्षा करने के लिए सामने आए 'करसनदास मुलजी'। हालांकि ये लड़ाई इतनी आसान नहीं थी क्योंकि अंहकार और घंमड़ की ये आग कब जिद्द में बदल गई ये किसी को पता नहीं लगा और मामला जा पहुंचा कोर्ट तक।
Maharaj Libel Case क्या है?
महाराज मानहानि केस की बात की जाए, तो ये केस है साल 1862 का। 1862 में ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रेसीडेंसी में बॉम्बे उच्च न्यायालय का ये केस है, जिस पर बनी है फिल्म 'महाराज'। बता दें कि ये केस जदुनाथजी ब्रजरतंजी महाराज ने नानाभाई रुस्तमजी रानीना और करसनदास मूलजी के खिलाफ दायर किया था, जिसमें करसनदास मूलजी पर 50 हजार रुपये की मानहानि की बात कही गई थी।
जदुनाथजी महाराज ने क्यों लिया कोर्ट का सहारा?
दरअसल, जब धर्म की आड़ में 'महाराज' की हरकतें बंद नहीं हुई और प्रथा के नाम पर महिलओं के साथ हो रही ज्यादती को रोकने के लिए करसनदास ने महाराज को चेताया, लेकिन अंहकार और जिद्द की वजह से उन्हें ये समझ ही नहीं आया कि वो जो कर रहे हैं, असल में एक घिनौनी हरकत है। करसनदास की चेतावनी ने महाराज के घंमड़ पर सीधा वार किया और उन्होंने करसनदास के खिलाफ कोर्ट में केस दायर किया, जिसमें उन्होंने करसन से 50 रुपये की मानहानि की मांग की।
फिल्म महाराज
हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म 'महाराज' में भी इस केस की सच्चाई को दिखाया गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे धर्म की आड़ में महाराज अपनी वासना को शांत करते थे। जब ये सिलसिला चलता रहा और इसने प्रथा के नाम पर महिलाओं का शोषण शुरू कर दिया, तब रक्षक बनकर आए करसनदास मुलजी, जिन्होंने भले ही कितनी मुश्किलों का सामना किया हो, लेकिन अपनी लड़ाई लड़ी और औरतों को उनका हक दिलाया। इस केस पर जब सुनवाई हुई तो कोर्ट ने करसनदास मुलजी को मानहानि के इल्जाम से बाइज्जत बरी किया।
ईश्वर तक पहुंचने के लिए किसी माध्यन की जरूरत नहीं
वहीं, जज ने फैसला सुनाते हुए ना सिर्फ करसनदास के हक में फैसला सुनाया बल्कि जदुनाथजी महाराज के खिलाफ क्रिमिनल प्रोसिडिंग का भी सुझाव दिया। 'महाराज मानहानि केस' के कारण ही 'चरण सेवा' जैसी सेवाएं बंद हुई और कोई भी कानून से ऊपर नहीं ये मिसाल कायम हुई। आज जिस समाज में हम रह रहे हैं, वो करसनदास मुलजी जैसे महान सुधारकों की देन है, जो सिखा गए कि ईश्वर तक पहुंचने के लिए किसी माध्यम की जरूरत नहीं। धर्म भगवान बनने का नहीं अच्छा इंसान बनने का माध्यम है।
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