अपनी फिल्मों और गानों में देश के प्रति प्यार दिखाने वाले मनोज कुमार के दिल में दिल्ली के प्रति बहुत प्यार रहा। बंटवारे के दर्द ने उनकी सोच को गहराई दी। वह परिवार समेत मात्र 10 साल की उम्र में पाकिस्तान से भारत आकर दिल्ली में बस गए थे। शुरुआत में उनका परिवार विजय नगर के गुरु तेग बहादुर नगर में शरणार्थी के रूप में रहा।
बाद में दिल्ली के राजेंद्र नगर में उनका घर बना। उनकी शिक्षा और करियर की नींव यहीं रखी गई। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी की। दिल्ली में ही उनकी मुलाकात शशि गोस्वामी से हुई, जो बाद में उनकी पत्नी बनीं। 1980 के दशक के अंत में मनोज कुमार ने अपने बेटे कुणाल गोस्वामी के लिए करोल बाग के नजदीक एक फास्ट फूड रेस्टारेंट भी खोला था।
क्या कहते हैं हिंदू कॉलेज के प्रोफेसर?
हिंदू कॉलेज के प्रोफेसरों ने बताया कि मनोज कुमार पढ़ाई के साथ-साथ अभिनय, कविता और देशभक्ति के रंगों में डूबे रहते थे। जब साथी छात्र क्रिकेट या चाय की चर्चा में मगन होते तो उस समय मनोज कुनार चुपचाप लाइब्रेरी के किसी कोने में बैठकर भगत सिंह या गांधी पर कुछ पढ़ रहे होते या फिर खुद कोई संवाद लिख रहे होते। प्रोफेसर रतन लाल बताते हैं कि उनके हावभाव उसकी आवाज और उनके शब्दों में कुछ ऐसा असर था कि एक बार सुनने के बाद भुला नहीं जा सकता था।
दिल्ली की सड़कों पर भविष्य के किस्से
मनोज कुमार उस युवा का नाम रहा है जो दिल्ली शहर के इतिहास से लेकर भविष्य तक के किस्से अपनी सड़कों पर समेटे चलता है। इसी शहर में एक शरणार्थी कैंप से निकलकर एक किशोर मन में अपने सपनो की गठरी लिए घूमता था। विजय नगर में रहते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से उसी किशोर ने सपनों की उड़ान भरी। कॉलेज की एक पुरानी इमारत की सीढ़ियां पर बैठने वाला यह दुबला-पतला लड़का जिसकी आंखों में कुछ करने का जज्बा था। वह लड़का हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी थी। जिसने फिल्मी दुनिया पर अभिनेता मनोज कुमार के नाम से राज किया।
क्या कहते हैं हिंदू कॉलेज के प्रोफेसर?
हिंदू कॉलेज के प्रोफेसरों ने बताया कि मनोज कुमार पढ़ाई के साथ-साथ अभिनय, कविता और देशभक्ति के रंगों में डूबे रहते थे। जब साथी छात्र क्रिकेट या चाय की चर्चा में मगन होते तो उस समय मनोज कुमार चुपचाप लाइब्रेरी के किसी कोने में बैठकर भगत सिंह या गांधी पर कुछ पढ़ रहे होते या फिर खुद कोई संवाद लिख रहे होते। हिंदू कॉलेज के एनुअल डे पर जब उन्होंने पहली बार मंच पर मैं भारत हूं कविता सुनाई थी।
उस समय पूरा हाल कुछ देर के लिए शांत हो गया था। न कोई ताली, न कोई शोर, बस एक ठहराव जैसे लोग उसकी आंखों में बसे भारत को देख रहे हों। उस दिन किसी ने नहीं सोचा था कि यही लड़का एक दिन सिनेमा के परदे पर भारत बन जाएगा। मनोज कुमार के करीबी रहे सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री जितेंद्र सिंह शंटी ने बताया कि मनोज कुमार को जब भी मौका मिलता था। वह दिल्ली में कार्यक्रमों में जरूर पहुंचते थे। वह कहते थे कि शरीर भले मुंबई में है, लेकिन आत्मा दिल्ली में रहती है।