Jubilee Review: ‘जुबली’ में दिखा बंटवारे का दर्दनाक मंजर, हिंदी सिनेमा की सियासत पर बनी सीरीज
Jubilee Review
अश्वनी कुमार: जुबली प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई, लेकिन प्राइम वीडियो वालों ने ज्यादती की है, जुबली देखने वाले ऑडियंस के साथ।
वो इसलिए क्योंकि 5 एपिसोड के बाद ऐसा इंटरवल छोड़ा गया है, जो पूरे एक हफ्ते के बाद आने वाला है और यकीन मानिए इंतजार आपसे होगा नहीं, क्योंकि इस वेब सीरीज ने गाली-गलौज, सेक्स और हाई-फाई एक्शन की सारी बेचो टेक्नॉलॉजी छोड़कर, सिनेमा की वो कहानी दिखानी शुरू की है, जिससे आपको मोहब्बत हो जाएगी।
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बेहद खास है कहानी
इस सीरीज की कहानी के साथ सबसे खास बात ये है कि पूरी सीरीज, हिंदी सिनेमा के जादू और उन किस्सों पर बने हैं, जिनके बारे में आप सुनते रहे हैं कि अशोक कुमार ऐसे स्टार बने थे, किशोर कुमार ऐसे गुनगुनाया करते थे, राजकपूर का रोमांस ऐसा होता था।
मजेदार हो सकती है जुबली
यकीन मानिए, अगर इंडियन फिल्म्स और उसके अतीत के बारे में जानने का आपको जरा भी शौक है, तो जुबली आपके लिए बहुत मजेदार होने वाली है। जुबली के मेकर्स भले ही इस बात से ना इकरार करते हैं और ना ही इनकार करते हैं कि ये हिंदी सिनेमा को सितारों से रौशन करने वाले, पहले शानदार स्टूडियो- बॉम्बे टॉकीज की कहानी है। इसे भी फिल्मी दस्तूर की तरह ही देखिए, जहां रिश्ते साफ-साफ नजर आते हैं, बस ज़ुबानी कन्फर्म नहीं किए जाते।
विक्रमादित्य मोटवानी ने किरदारों का गढ़ा
बॉम्बे टॉकीज, जुबली में रॉय टॉकीज हो गया है। स्टूडियो मालिक हिमांशू रॉय, यहां श्रीकांत रॉय हो गए हैं। स्टूडियों और उनकी लाइफ पार्टनर- बेहद ग्लैमरस सुपरस्टार देविका रानी, इसमें सुमित्रा देवी हो गई है, यहां यूं कहें कि बहुत हद तक दोनों के इर्द-गिर्द घुमती कहानियों पर, डायरेक्टर विक्रमादित्य मोटवानी ने इन किरदारों को गढ़ा है।
जुबली की कहानी
भारत के बंटवारे और आजादी के दौर से शुरु होती है और बेहद करीने से दिखाती और सिखाती है कि सिनेमा कैसे, आज़ाद हिंदुस्तान के उम्मीदों, सियासत और हालात की परछाई बन गया था। रॉय टॉकीज के मालिक श्रीकांत रॉय को शिद्दत से अपने स्टूडियो के लिए एक स्टार की दरकार है, जो उनके स्टूडियों का चेहरा और आजाद हिंदुस्तान का पहला सुपरस्टार बन सके।
आज़ादी और पहचान खोने से झिझक रहा
ऑडिशन्स के बीच, लखनऊ के बेहद नामी थियेटर ऑर्टिस्ट जमशेद खान पर उनकी तलाश ठहरती है। मगर, जमशेद खान के मन में भूचाल चल रहा है, क्योंकि मुल्क में बंटवारे की आग सुलग रही है। दूसरी ओर जमशेद खान, बंबई जाकर ना तो अपनी आज़ादी और पहचान दोनों खोने से झिझक रहा है।
बड़े स्टार्स ने अपना स्क्रीन नाम बदला
जमशेद खान एक डायलॉग बोलता है, जो तब हिंदी सिनेमा के इस अंदाज की गवाही देता है... ये डायलॉग है ‘हम ठहरें मुसलमान। बंबई पहुंचते ही नाम, पहचान सब बदल दिया जाएगा’। इस दौर के तमाम एक्टर्स, जिसमें दिलीप कुमार, मधुबाला, मीना कुमारी जैसे बड़े स्टार्स ने अपना स्क्रीन नाम बदला था।
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सुमित्रा कुमारी और जमशेद खान के बीच अफेयर
श्रीकांत रॉय ने जमशेद खान को मनाने के लिए पहले, अपनी बीवी और सुपरस्टार सुमित्रा कुमारी को वहां भेजा, लेकिन देविका रानी के प्यार के किस्सों की तरह, सुमित्रा कुमारी और जमशेद खान के बीच अफेयर शुरु हो गया। अब श्रीकांत रॉय ने अपने बेहद ख़ास नौकर बिनोद दास को जमशेद और सुमित्रा दोनों को वापस लाने के लिए लखनऊ भेजा।
लखनऊ से बिनोद वापस आया
मगर लखनऊ से बिनोद वापस आता है, सुमित्रा वापस आती है.... जमशेद खान, जिसे सुपरस्टार मदन कुमार बनना है, वो गुम हो जाता है। बिनोद दास, नया मदन कुमार बन जाता है, जिसे सुमित्रा कुमारी हमेशा नौकर ही मानती हैं, स्टार नहीं।
जमशेद खान की दीवानी
इस कहानी में एक दो और किरदार हैं एक जय खन्ना और दूसरा निलोफर कुरैशी। जय खन्ना, खन्ना थियेटर ग्रुप का वो नौजवान, जो जमशेद खान को अपने कराची थियेटर ग्रुप में शामिल करवाने लखनऊ आता है। दूसरी निलोफर कुरैशी, लखनऊ की वो तवायफ़, जो अपनी हर अदा की क़ीमत दुनिया से वसूलती है मगर जमशेद खान की दीवानी है।
लोग मरते हैं और जमशेद खान गुमशुदा हो जाता है
बंटवारे की आग के बीच, परिवार बिछड़ते हैं, देश छूटता है, लोग मरते हैं और जमशेद खान गुमशुदा हो जाता है। अपने प्यार को तलाशने क लिए सुमित्रा कुमारी हर ताकत लगाती है, मगर नाकामयाब रहती है। जय खन्ना अपने परिवार के साथ रिफ्यूजी कैंप में पनाह लेता है। निलोफर भी फिल्मी गलियों में दाखिल होती है। अब सबकी राह टकराती है।
सिनेमा का सुनहरा दौर
आज़ादी के बाद की सियासत, अमेरिका और रूस का फिल्मों के जरिए, भारत की राजनीति मे दखल सब कुछ जुबली का हिस्सा है। साथ ही शानदार सेट्स, कमाल के कॉस्ट्यूम, बेहतरीन कास्टिंग, जबरदस्त बैकग्राउंड स्कोर और सबसे बढ़कर अमित त्रिवेदी के कंपोज किए हुए गाने, आपको सिनेमा के सुनहरे दौर में लेकर जाते हैं।
हिंदी सिनेमा के गोल्डेन एरा का सबसे बड़ा जश्न
विक्रमादित्य मोटवानी की खूबी बस इतनी नहीं है कि 40 और 50 के दशक में जब हिंदी सिनेमा परवान चढ़ रहा था, तब की कहानियों पर जुबली बना दी, बल्कि सच ये है कि राइटर अतुल सबरवाल के साथ मिलकर, विक्रमादित्य ने तब के सिनेमा का ऐसा संसार रच दिया है, जो वाकई हिंदी सिनेमा के गोल्डेन एरा का सबसे बड़ा जश्न बन गया है।
अच्छी कहानी के लिए अच्छे कलाकार की जरूरत होती है, स्टार की नहीं
परफॉरमेंस तो पूछिए ही नहीं, विक्रमादित्य मोटवानी की जुबली साबित करती है कि अच्छी कहानी के लिए अच्छे कलाकार की जरूरत होती है, स्टार की नहीं। बिनोद दास बने अपारशक्ति खुराना को देखकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे कि क्या कमाल ऑर्टिस्ट है।
अदिति राव हैद्री ने अपने करियर का बेस्ट किरदार निभाया
जय खन्ना बने सिद्धांत गुप्ता में तो जैसे कई सुपरस्टार समाए हुए हैं, क्या कमाल अदाकारी है उनकी। सुमित्रा कुमारी बनी अदिति राव हैद्री ने अपने करियर का बेस्ट किरदार निभाया है, एक सुपरस्टार के तौर पर उनकी मजबूती और मायूसी जैसे परफेक्ट बैलेंस है। बंगाल सुपरस्टार प्रसेनजीत चैटर्जी, श्रीकांत रॉय बनकर इनते इंप्रेसिव लगे हैं कि आप उन्हे और देखना चाहेंगे। निलोफर कुरैशी बनी वामिका गब्बी कमाल हैं।
जुबली को 4 स्टार
फाइनेंसर और डिस्ट्रीब्यूटर शमशेर सिंह वालिया बने राम कपूर के तो कहने ही क्या और अरुण गोविल ने अपने छोटे से रोल में कमाल का असर छोड़ा है। श्वेता बासू प्रसाद, रत्ना बासू के कैरेक्टर में जैसे खो गई हैं। जुबली में शानदार परफॉरमेंस, बेहतरीन कहानी, इसके खूबसूरत सेट्स, सिनेमा से मोहब्बत करने वालों के लिए ये बहुत खास हो सकता है, जुबली को 4 स्टार।
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