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Indian Police Force Opinion: ओरिजिनल नहीं कहानी, सीरीज में दिखी ‘बादल’ की झलक

Indian Police Force: बॉबी देओल की फिल्म से ली गई 'इंडियन पुलिस फोर्स' की कहानी। आखिर कैसे बदली 'जरार' और 'बादल' की कहानी?

ओरिजिनल नहीं Indian Police Force की कहानी। फोटो आभार- सोशल मीडिया
Indian Police Force Opinion, (नैन्सी तोमर): हाल ही में प्राइम वीडियो पर सिद्धार्थ मल्होत्रा की वेब सीरीज 'इंडियन पुलिस फोर्स' रिलीज हुई है। इस सीरीज को लेकर लोगों में पहले ही बहुत क्रेज देखने को मिल रहा था। वहीं, अब लोग घर बैठे इसका आनंद ले रहे हैं। बता दें कि रोहित शेट्टी की इस सीरीज का ये पहला सीजन है, जिसके 7 एपिसोड है। इस सीरीज को लोगों ने अपने-अपने हिसाब से रिव्यू दिया है। भले ही रोहित शेट्टी कितने भी दावे करें, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि इस सीरीज की कहानी बॉबी देओल की फिल्म (बादल) से मिलती-जुलती है। वेब सीरीज 'इंडियन पुलिस फोर्स' में दिल्ली पुलिस का जबरदस्त हौंसला और एक्शन दिखाया गया है, जो ये साबित करता है कि भले ही दुश्मन कितना ही बड़ा और शातिर क्यों ना हो? जब बात देश की हिफाजत या फिर अपने वतन के लोगों पर आती है, तो फिर क्या हिंदु क्या मुस्लमान। सब अपने वतन पर मर मिटने के लिए तैयार रहते हैं। यह भी पढ़ें- Hrithik Roshan से पहले वो सितारे, जो बने ‘एयरफोर्स ऑफिसर’

'इंडियन पुलिस फोर्स' की कहानी

रोहित शेट्टी की इस सीरीज की कहानी की बात करें तो इसमें दिखाया गया है कि दिल्ली में उस दिन धमाका किया जाता है, जब दिल्ली पुलिस अपने Raising Day का जश्न मनाने के लिए तैयार है। दिल्ली में हुआ ये धमाका ना सिर्फ आम लोगों पर किया जाता है बल्कि दिल्ली पुलिस के दिल पर किया जाता है, जिससे ना सिर्फ कबीर (सिद्धार्थ मल्होत्रा) और विक्रम (विवेक ऑबराय) बल्कि पूरी दिल्ली पुलिस का खून खौल उठता है। पूरे देश में गूंजी एक धमाके की गूंज ये धमाका सिर्फ दिल्ली में ही नहीं रूकता बल्कि इसकी गूंज देश के कई अलग-अलग शहरों में भी सुनाई देती है और ना जाने कितने मासूम अपनी जान से हाथ धो बैठते है। दिल्ली पुलिस अपने दिल पर हुए वार का बदला लेने में जुटी रहती है और फिर दिल्ली को एक और बड़ा झटका मिलता है। ऑफिसर विक्रम इस ऑपरेशन में अपनी जान गवां देते हैं, जिससे ना सिर्फ दिल्ली पुलिस बल्कि एक बच्चे से उसका पिता और पत्नी से उसका पति और एक दोस्त से उसका दोस्त छीन जाता है।

एक इंसान ने ली कितनों की जान?

अब इस ऑपरेशन को रोकने के लिए कहा जाता है और फिर एक और धमाके की गूंज से देश हिल उठता है। इस धमाके ने एक बार फिर से ऑफिसर कबीर को ललकारा और वो इस जड़ को खत्म करने के लिए सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं। एक अकेला सिपाही जब देश के गद्दारों से बदला लेने पर उतर आए तो भला देशवासी उसका साथ कैसे ना दें।

दुश्मन को पकड़ने की तैयारी फिर शुरू

अपने मिशन को लेकर बुलंद हौंसले और पाक इरादे से फिर एक टीम बनाई जाती है और देश के दुश्मन को पकड़ने की तैयारी फिर शुरू होती है। क्या कोई सोच सकता है कि इतने धमाके और इतनी जानें कोई अकेला इंसान ले सकता है, तो इसका जवाब है हां.............।

मजहब के नाम पर किया जाता है अपना उल्लू सीधा

ठीक उसी तरह जैसे फिल्म 'बादल' में बादल (बॉबी देओल) एक मासूम से बच्चे से आंतकवादी बन जाता है। इस फिल्म में दिखाया जाता है कि कैसे एक छोटा और मासूम बच्चा, जिसे दुनिया और आंतक की कोई समझ नहीं होती, कैसे उसके हाथ में हथियार थमा दिया जाता है। वैसे ही 'इंडियन पुलिस फोर्स' में 'जरार' को 'हैदर' बना दिया जाता है। कैसे मजहब के नाम पर एक मासूम बच्चे से अपना उल्लू सीधा कराया जाता है, ये तो रफीक जैसे लोग ही जानते है।

एक जैसी है 'जरार' और 'बादल' की कहानी

'इंडियन पुलिस फोर्स' में 'जरार' और 'बादल' में 'बादल' की कहानी एक जैसी है। ये दोनों ही किरदार आपस में बहुत मेल खाते हैं। दो बच्चे लेकिन कहानी दोनों की एक जैसी, दोनों ही अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए हथियार उठा लेते हैं, लेकिन इस आग में वो भूल जाते हैं कि देश सबसे पहले हैं। अपने वतन से गद्दारी मतलब अपने आप से गद्दारी।


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