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Explainer: पंचायत 4 में चुनाव क्यों हार गईं प्रधानजी की पत्नी? मंजू देवी पर कैसे भारी पड़ी क्रांति

Explained Why Manju Devi Lost Panchayat Election: प्राइम वीडियो पर बहुचर्चित वेबसीरीज पंचायत का सीज़न-4 आखिरकार रिलीज़ हो गया। चौंकाने वाली बात यह है कि चुनावी अखाड़े में प्रधानजी की पत्नी मंजू देवी हार गईं। क्रांति देवी फुलेरा की नई प्रधान बन गईं। सवाल यह है कि मंजू देवी चुनाव क्यों हारी? क्रांति देवी की किन रणनीतियों ने उन्हें फुलेरा गांव का प्रधान बनाया।

'पंचायत सीजन 4' की रिलीज को लेकर प्राइम वीडियो ने बड़ा ऐलान किया है। (Photo Credit- Instagram)
Explained Why Manju Devi Lost Panchayat Election: प्राइम वीडियो पर पंचायत सीजन 4 की रिलीज से पहले लोगों ने फुलेरा पर बहुत उम्मीदें लगाई थीं, शो स्ट्रीम हुआ तो फुलेरा गांव एक बार फिर राजनीति, हास्य और रोमांस से गुलजार हो गया। शो में सचिव जी अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार ), मंजू देवी (नीना गुप्ता) और बृज भूषण दुबे उर्फ ​​प्रधान जी (रघुबीर यादव) जैसे किरदार वापस आए। शो को फैंस की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं मिलीं। कुछ दर्शकों ने इस बात की सराहना की कि शो का मूल स्वाद बरकरार रहा, जबकि अन्य लोगों ने महसूस किया कि 'पंचायत' को खास बनाने वाली दिल को छू लेने वाली भावनाएं और रिश्ते प्रधान चुनाव के जबरदस्त राजनीतिक ड्रामे के कारण पीछे छूट गए। मुख्य बात यह रही कि चुनावी अखाड़े में प्रधानजी की पत्नी मंजू देवी हार गईं। उनके चुनाव हारने के कई कारण हैं जो कहानी और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं से सामने आते हैं।

काम आई क्रांति देवी की रणनीति

पंचायत सीजन 4 की कहानी इस बार मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच प्रधानगी के चुनाव पर आधारित थी। पंचायत चुनाव शुरू होते ही हल्का-फुल्का शो अचानक सत्ता के खेल, कड़वाहट और विश्वासघात से भर जाता है। क्रांति देवी और उनकी टीम ने आक्रामक और चतुराई भरी रणनीति अपनाई, जैसे मुफ्त में आलू-लौकी बांटना, बिजली जाने पर जेनरेटर चलाना। मंजू देवी की रणनीति, जैसे चार-लेन रोड और एयरबैग वाली साइकिल के वादे, ग्रामीण जनता को उतना आकर्षित नहीं कर पाईं। इस सारी अराजकता में कई प्रशंसक शो की आत्मा से चूक गए।

मंजू देवी की रणनीति में कमी

चुनाव जीतने के लिए मंजू देवी और उनकी टीम ने भरपूर कोशिश की। स्कूल का शौचालय साफ किया, लेकिन कुछ दृश्यों में उनकी रणनीति कमजोर और नाटकीय लगी। क्रांति देवी के गुट के साथ उनकी भिड़ंत को दर्शकों ने अनावश्यक और कम प्रभावी माना। मंजू देवी की हार से ऐसा नहीं लगता कि यह सफर खत्म हो गया है। पंचायत कार्यालय के बाहर मंजू देवी की जगह उसका नाम लगा दिया जाता है

दर्शकों की उम्मीदों का दबाव

पहले तीन सीजन में मंजू देवी का किरदार एक मजबूत और प्रिय सरपंच के रूप में स्थापित था। दर्शकों को उम्मीद थी कि वह फिर से जीतेंगी, लेकिन लेखकों ने कहानी को नया दिशा देने के लिए उनकी हार को चुना, जिससे कुछ दर्शकों को निराशा हुई। मंजू देवी की हार कहानी में नया ट्विस्ट लाने, क्रांति देवी की चतुर रणनीति और लेखकों के अप्रत्याशित दृष्टिकोण का परिणाम थी। हालांकि, यह फैसला कई दर्शकों को पसंद नहीं आया।

कहानी की सादगी का अभाव

कई दर्शकों और समीक्षकों ने कहा कि सीजन 4 में पहले की सादगी और हास्य की कमी थी। मंजू देवी की हार और चुनावी नाटक कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। इससे मंजू देवी का किरदार भले ही मजबूत रहा, लेकिन कहानी का प्रभाव कम हुआ। हालांकि, मंजू देवी की हार के बावजूद, नीना गुप्ता की शानदार अदाकारी ने उनके किरदार को सीजन की जान बनाए रखा। दर्शकों ने उनकी परिपक्व अभिनय और व्यंग्यात्मक संवाद अदायगी की तारीफ की, जिसने हार के बावजूद उनके किरदार को यादगार बनाया।


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