Clean Up: ‘क्लीन-अप’ को मिला लॉस एंजिल्स फिल्म अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का खिताब, लूट ली लाइमलाइट
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Clean Up: कोविड-19 के दौरान सफाई कर्मियों के योगदान पर बनी डॉक्यूमेंट्री क्लीन-अप ने लॉस एंजिल्स फिल्म अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का खिताब जीत है।
क्लीन-अप ने जीता अवॉर्ड (Clean Up)
कोविड 19 जैसी विशाल महामारी से देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया जूझ रही थी। जानलेवा वायरस, सिर पर मंडराती मौत और इन्फेक्शन के खतरे से खुद को बचाने के लिए हर शख्स अपना जोर लगा रहा था। इस दौरान जहां एक तरफ करोड़ों लोग अपने घरों की चार दिवारी में रहकर खुद को इस वायरस से कोसों दूर रखने की फिराक में लगे हुए थे वहीं लाखों लोग ऐसे भी थे जो 24 घंटे इस वायरस के बीच में रहकर न सिर्फ अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम कर रहे थे बल्कि हर दिन लाखों लोगों से इकट्ठा हुए इंन्फेक्टेड सामान को उसके ठिकाने तक भी पहुंचा रहे थे। ये जानते हुए भी इस काम को करने के लिए उन्हें हर सेकंड अपनी जिंदगी को दांव पर लगाना पड़ रहा है।
लॉस एंजलिस में खूब बटोरी सुर्खियां
बस इसी दशा को पर्दे पर उतारने का काम किया है वैष्णवी वासुदेवन ने जिनकी डॉक्यूमेंट्री ने विदेश में खूब सुर्खियां बटोरने के साथ ही साथ लॉस एंजिल्स फिल्म अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री जीती है। बता दें कि क्लीन-अप डॉक्यूमेंट्री कोविड के दौरान सफाई कर्मचारियों की चुनौतीपूर्ण जर्नी को दर्शाती है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे फ्रंटलाइन वर्कर्स ने इस दौरान कचरे की असंख्या मात्रा को उठाया।
फ्रंटलाइन वर्कर्स पर बनी डॉक्यूमेंट्री
इस फिल्म में मुख्य रूप से वर्ली के एक ठेका मजदूर अविनाश पिल्लई को दिखाया गया है जो लॉकडाउन के दौरान पहले फ्रंटलाइन श्रमिकों में से एक थे। मुंबई ने अस्पतालों से कोविद -19 कचरे में वृद्धि देखी, जिसमें महत्वपूर्ण मात्रा में डिस्पोजेबल पर्दे, बेडशीट, दस्ताने, गाउन, दवाएं और फेस मास्क जैसी चीजों को उनके ठिकाने तक पहुंचाने में ऐसे लाखों श्रमिकों ने अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर अपनी ड्यूटी निभाई है।
कोविड के दौरान बनी फिल्म
निर्देशक और निर्माता वैष्णवी वासुदेवन ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में दिखाया कि कैसे कर्मचारियों ने हर दिन 10 हजार से ज्यादा संक्रमित कचरे के थैलों को निपटाया। वासुदेवन से इस बारे में बात करने के दौरान उन्होंने बताया कि ये कहानी साझा करना बेहद जरूरी थी। डॉक्यूमेंट्री को 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी की पहली और दूसरी लहर के चरम के दौरान मुंबई में फिल्माया गया था। फिल्म में शहर के पर्यावरणविदों, पल्मोनोलॉजिस्ट, देवनार के निवासियों और उन कार्यकर्ताओं के साक्षात्कार हैं जो क्षेत्र से जैव चिकित्सा अपशिष्ट भस्मक के स्थानांतरण की वकालत कर रहे हैं।
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