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दिल्ली में सबसे पहले क‍िसके घर पहुंची थी बिजली, टेलीफोन और कार? यमुना पर बने लोहे पुल के लिए द‍िए थे अंग्रेजों को पैसे

इस हवेली के माल‍िक इतने अमीर थे क‍ि अंग्रेज भी उनसे आर्थ‍िक मदद लेते थे. द‍िल्‍ली की यमुना नदी पर बना लोहे का पुल बनाने के ल‍िए भी इन्‍होंने ही पैसे देकर अंग्रेजों की मदद की थी.

चुन्‍नामल द‍िल्‍ली के सबसे अमीर शख्‍स थे और उनसे अंग्रेज भी उधार लेते हैं.

देश की राजधानी और द‍िल, द‍िल्‍ली को हर व्‍यक्‍त‍ि अलग नजर‍िए से देखता है. क‍िसी के ल‍िए चांदनी चौक के पराठे वाली गली, तो क‍िसी के ल‍िए राजनीत‍ि का गढ़. कि‍सी के सस्‍ती शॉप‍िंग का मौका तो क‍िसी के ल‍िए नौकरी का. लेक‍िन द‍िल्‍ली की एक हवेली है, ज‍िसने द‍िल्‍ली को बदलते देखा है. पुराने खयालातों से न‍िकलकर, नए मॉडर्न रंगों में ढलते देखा है. ये वही 128 कमरों वाली हवेली है, जहां द‍िल्‍ली में सबसे पहले ब‍िजली, टेलीफोन और कार पहुंची. इस हवेली के माल‍िक इतने अमीर थे क‍ि अंग्रेज भी उनसे आर्थ‍िक मदद लेते थे. द‍िल्‍ली की यमुना नदी पर बना लोहे का पुल बनाने के ल‍िए भी इन्‍होंने ही पैसे देकर अंग्रेजों की मदद की थी. आइये आपको उस शख्‍स के बारे में बताते हैं:

द‍िल्‍ली में सबसे पहले क‍िसके घर पहुंची ब‍िजली?

ज‍िस हवेली या घर की हम यहां बात कर रहे हैं, वह सेठ चुन्‍नामल की थी. यह हवेली करीब 200 साल पुरानी है, जिसे सेठ राय चुन्नामल ने बनवाया था. सेठ चुन्नामल का कपड़ों का कारोबार था. दिल्ली लंदन बैंक में उनका बड़ा शेयर भी था. आप यूं समझ लीज‍िए क‍ि वो एक बड़े साहूकार थे, जो राजा-महाराजाओं और यहां तक क‍ि अंग्रेजों को भी उधारी देते थे. ब्रिटिश काल में द‍िल्‍ली नगर न‍िगम के पहले आयुक्‍त बनने वाले सेठ चुन्नामल ही थे.

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दिल्ली में सबसे पहले बिजली कनेक्शन और कार खरीदने वाले चुन्‍नामल ही थे. सबसे पहला टेलीफोन कनेक्शन भी उनकी चुन्नामल हवेली में ही लगा था.

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फतेहपुरी मस्जिद ही खरीद डाली
सेठ चुन्नामल द‍िल्‍ली के सबसे अमीर शख्‍स थे. ये तब की बात है जब, भारत को आजादी नहीं म‍िली थी. साल 1857 में अंग्रेज, सड़कें चौड़ी करने के ल‍िए फतेहपुरी मस्जिद को तोड़ना चाहते थे और वहां स‍िस्‍टमेट‍िकली दुकानें बनाना चाहते थे. सेठ चुन्नामल ने उस समय 19000 रुपये देकर अंग्रेजों से फतेहपुरी मस्जिद को खरीद लिया.

हालांक‍ि उस वक्‍त मस्‍ज‍िद बच गया, लेक‍िन 1877 में अंग्रेजों ने फिर से फतेहपुरी मस्जिद को वापस ले लिया. इसके बदले में सेठ चुन्नामल को चार गावों की जागीरदारी दी गई.


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